तवायफ भी कभीं शरम से पेशा छोड़ देती है
कभी गुस्से में होती हैं तो घुंघरू तोड़ देती है
सियासत की बेशर्मी का आलम देखिये साहेब
ये अपने कर्मो से तवायफ को पीछे छोड़ देती है ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
मंगलवार, 8 जनवरी 2019
तवायफ और सियासत
गुरुवार, 3 जनवरी 2019
बाण पर बाण
कुछ लोगों के शरीर ही नही
बल्कि आत्मा तक पर
इतने बाण लग चुके होते है
जमाने के
कि
कोई और बाण
लगने की जगह ही
नही बची होती है ।
अगर कोई चलेगा
तो
बाण पर ही लगेगा
और
उसे और गहरे तक
पैबस्त ही कर देगा न
घाव
और
कितना गहरा हो जाता है
ऐसे में
और
दर्द भी कितना बढ़ जाता है
उस बाण से ।
बेचारा हिरन ।
कभी कभी
कोई दर्द
अचानक
आप को
कितना
बेचैन कर देता है
खाने भी नही देता
और
सोने भी नही देता
और
कितना जगा देता है
रात तक
या
पूरी रात
और
बेचारे निरीह
उस
हिरन की तरह
जिसे
बाण लगा हो
या लगी हो गोली
और
वो
पलट कर
उसी को
चाटता है
अज्ञानता से
बिना जाने
की
ये
उसकी मौत है
बेचारा हिरन
और
बेचारा
अगर
भावुक इंसान हो
तो बोली
गोली से ज्यादा
लगती है न
कितना दर्द देती है
सहा भी नही जाता
रहा भी नही जाता ।
खैर
वेचारा हिरन ।
और बेचारा
??..????
कोई दर्द
अचानक
आप को
कितना
बेचैन कर देता है
खाने भी नही देता
और
सोने भी नही देता
और
कितना जगा देता है
रात तक
या
पूरी रात
और
बेचारे निरीह
उस
हिरन की तरह
जिसे
बाण लगा हो
या लगी हो गोली
और
वो
पलट कर
उसी को
चाटता है
अज्ञानता से
बिना जाने
की
ये
उसकी मौत है
बेचारा हिरन
और
बेचारा
अगर
भावुक इंसान हो
तो बोली
गोली से ज्यादा
लगती है न
कितना दर्द देती है
सहा भी नही जाता
रहा भी नही जाता ।
खैर
वेचारा हिरन ।
और बेचारा
??..????
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