बहुत उदास है दिन
राते तो उदास ही है
काफी दिनों से
पर आगोश में नीद के
उदासी खो जाती है कही
पर दिन की उदासियाँ
और एकाकीपन
इनसे जूझना नहीं आता
अपने से भाग जाने की
कला नहीं सीख पाया मैं
अभिमन्यु की तरह
एक कला से महरूम
रह गया मैं भी
वो चक्रव्यूह तोड़ने को
था आतुर
और मैं तलाश रहा हूँ
कोई चक्रव्यूह
जिसमें एकाकीपन और
उदासी का एहसास न हो ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
शुक्रवार, 31 मई 2019
बहुत उदास है दिन
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