गुरुवार, 26 सितंबर 2019

क्या सचमुच वो बादलो पर रहता है ?

क्या सचमुच वो
बादलो पर रहता है ?
क्या सचमुच वो हमे                              
देखता रहता है ?
क्या
ये उसके ही आँसू है
जो
बारिश की शक्ल मे                      जमीन पर आते है ?
और
हमे भिगोकर
छू लेना चाहते है ?
क्या सचमुच ?
तो छू क्यो नही लेते आकर
हमारे पास सचमुच ?

जब तुम थे

जब तुम थे

जब तुम थे न
सब सुबह उठ जाते थे
और
मैं भी अलसाया सा
पर
अब तो
दोपहर हो जाती है
कइ बार
जब तुम थे ना
घर
कितना साफ रहता था
रहता तो
अब भी साफ ही है
पर
जब तुम थे न
तो
डायनिंग टेबल
खाली रह्ती थी
जब तक खाना न लगे
पर
अब वो भरी है
हर उस चीज से
जिसकी
मुझे जरूरत होती है
और
तुम्हारे बिना
भूलने का डर रहता है
जब तुम थे न
किचेन
कितना भरा होता था
तमाम सामान से
पर
अब बस चाय की पत्ती
और
चीनी
या
कुछ
बहुत दिनो के रखी चीजे
जब तुम थे न
सुबह के नाश्ते से
रात तक
रोज
कुछ नया मिलता था
भूखा
अब भी नही रहता हूँ मैं
बस अक्सर
खाना भूल जाता हूँ
दोपहर को
और
कभी रात मे भी
जब तुम थे न
बिस्तर की चादर
बदल जाती थी
कितना एस यू एस टी हूँ ना
कि
नही बदल पाता हूँ
काफी दिन तक
बाकी सब कुछ वही है
जहा तुम छोडकर गये थे
मैं भी और मेरी आदते भी
और सब यादे भी
तुम्हारा तकिया भी
बिस्तर पर वही रखा है
बस सुबह उठना
और
अपना ध्यान रखना ही
भूल गया हूँ मैं ।
जब तुम थे न
अच्छे भले ठहाके गूजते थे
पता नही क्यो
सन्नाटा ही सन्नाटा है
जब तुम थे न
कितने सक्रिय और
जीवन्त थे तुम
पर
ईश्वर ने दीवार पर
टांग दिया
और
तस्वीर को आधा फ़ाड़ कर ।

बारिश की छुवन


बारिश की छुवन

सुबह से हो रही है
लगातार
मूसलाधार बारिश
नही निकला
मैं घर से आज
झाँक रहा हूँ
खिडकी से लगातार
कभी जाकर
खड़ा हो जाता हूँ
दरवाजे पर
और
हाथ बाहर निकाल कर
महसूसता हूँ
बारिश की छुवन को
और
यादो की
किसी छुवन को भी
बारिश ने भिगो दिया है
यादो की चादर को
कभी कांन मे
एक आवाज आती है
अब तो आप को
गरम हलुवा
और
पकौड़ी चाहिये न
कितने कप बना दूँ
चाय या काफी
वरना फिर कहेंगे
कि
हलुवा खाते खाते
और
उसके बाद कहेंगे
कि
पकौड़ी खाते खाते
ठंडी हो गयी चाय तो !
इसलिए एक बार ही
बना कर ले आते है
थर्मस मे
और
पकौड़ी आलू की
या
और चीजो की भी ?
चौक कर देखता हूँ
कांन बेकार हो गये है
आप के जाने के बाद
हर वक्त जब तक
सो नही जाता हूँ
आप की तमाम आहटे
पर सच तो
वैसे
आप के जाने के बाद
बेटी ने भी पूरी तरह
आप का सिखाया निभाया
जब भी बारिश होती
वही बरामदा वही कुर्सिया
और
वो लेकर आ जाती
वही सब कुछ
कुछ कुछ वही स्वाद
खुली आंखो का सपना
टूट गया
उठा धीरे से
डगमगते कदमो से
और
बिजली के केतली मे
गरम कर दिया पानी
उसमे डाल दिया
एक रेडीमेड चाय का पाउच
ले लिया
एक मुट्ठी मे चना
और
आकर बैठ गया हूँ
बारिश के सामने
दरवाजा खोल कर
और
महसूस कर रहा हूँ
वही सब
कितनी यादो के थपेडे
दस्तक दे रहे है आज ।
बिल्कुल चिंता मत करिये
हम बहुत अच्छी तरह है
और
बहुत खुश है ।
देखिये न बारिश मे
चाय लिए बैठे है
पकौडे और हलुवा
अब अच्छा नही लगता
वरना
वो भी बना ही लेते ।
आइये
थोडा बारिश मे भीगा जाये
नही नही
नुक्सान कर देगी ये बारिश
बीमार कर देगी
एक ही बीमारी क्या कम है
जो छीन ले गयी
जिन्दगी से जिन्दगी ।

शनिवार, 7 सितंबर 2019

लोकतंत्र के खम्भे

सत्ता ने कहा
मीडिया से
थोडा झुक जाओ
पर
कुछ घुटने के बल
चलने लगे
और
आधिकतर तो
लेट कर रेगने लगे ।
और
इस तरह
चौथा खम्भा
लेटकर खुद
सत्ता के रास्ते की
पगडंडी बन गया ।
सत्ता ने कहा
व्यव्स्थापिका से
हद मे रहो
और वो
संगम की जमुना
हो गयी
और कार्यपालिका
रूपी गंगा मे
विलीन हो गयी
तीसरा खम्भा भी
सरस्वती की तरह
भीतर भीतर
घुल-मिल रहा है
अब
सब खम्भो की
जिम्मेदारी
खुद जनता के
कन्धो पर है
क्योकी
आज़ादी
मुफ्त मे नही मिलती
फ्रीडम इस नॉट फ़्री ।