रविवार, 6 अक्टूबर 2024

तुम जेल में ठूस दिये जाओगे

तुम जेल में ठूस दिये जाओगे 

तुम्हे हथेलियां फैलाए रहना था 
पर
तुम उंगलियों को मोड़ने लगे 
और 
अंगूठे को दबा लिया उनके बीच 
क्या तुम नही जानते इसे मुट्ठी कहते है
और 
मुठिया प्रतिरोध का प्रतीक होती है 
तुम लोग मुठिया लहरावोगे 
फिर भी तुम्हे डर नहीं लगता है
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे ।

तुम ऊंची आवाज में बोलने लगे 
सत्ता और सियासत को तोलने लगे 
पूछ रहे हो सवाल अपने हालत के 
शब्द चुन रहे हो अपने खयालात के 
फिर तुम्हें डर नहीं लगता है 
उनकी गोली पहले घुटने पर 
और फिर कनपटी पर लगती है ।
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे।

तुम मांग रहे हो हक ये जुर्रत 
तुम मांग रहे हो घर ये जुर्रत 
तुम मांग रहे हो रोटी ये जुर्रत 
तुम मांग रहे अवसर ये जुर्रत 
क्या तुम्हे डर नही लगता 
कि नक्सलवादी कहलावोगे
तुम अज्ञात में जला दिए जावोगे 
फिर भी बच गए तो 
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे। 

तुम लिख रहे हो कहानी,कविता 
तुम कर रहे हो प्रहसन या नाटक 
तुम बना रहे हो इशारे की पेंटिंग 
तुम गढ़ रहे हो क्रांति की मशाल 
फिर भी तुम डर नही लगता 
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे।