तुम जेल में ठूस दिये जाओगे
तुम्हे हथेलियां फैलाए रहना था
पर
तुम उंगलियों को मोड़ने लगे
और
अंगूठे को दबा लिया उनके बीच
क्या तुम नही जानते इसे मुट्ठी कहते है
और
मुठिया प्रतिरोध का प्रतीक होती है
तुम लोग मुठिया लहरावोगे
फिर भी तुम्हे डर नहीं लगता है
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे ।
तुम ऊंची आवाज में बोलने लगे
सत्ता और सियासत को तोलने लगे
पूछ रहे हो सवाल अपने हालत के
शब्द चुन रहे हो अपने खयालात के
फिर तुम्हें डर नहीं लगता है
उनकी गोली पहले घुटने पर
और फिर कनपटी पर लगती है ।
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे।
तुम मांग रहे हो हक ये जुर्रत
तुम मांग रहे हो घर ये जुर्रत
तुम मांग रहे हो रोटी ये जुर्रत
तुम मांग रहे अवसर ये जुर्रत
क्या तुम्हे डर नही लगता
कि नक्सलवादी कहलावोगे
तुम अज्ञात में जला दिए जावोगे
फिर भी बच गए तो
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे।
तुम लिख रहे हो कहानी,कविता
तुम कर रहे हो प्रहसन या नाटक
तुम बना रहे हो इशारे की पेंटिंग
तुम गढ़ रहे हो क्रांति की मशाल
फिर भी तुम डर नही लगता
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे।