सोमवार, 22 अप्रैल 2024

कभी समन्दर के किनारे खड़े होकर दूर देखा है आप ने

समय हो तो मेरी ये कविता भी पढिये --

कभी 
समन्दर के किनारे 
खड़े होकर 
दूर देखा है आप ने 
लगता है कि 
कुछ ही दूर पर 
आसमान मिल रहा है 
समन्दर से 
पर जब आगे बढ़ते है 
नाव से या जहाज से 
तो वो मिलन 
और दूर चला जाता है 
वैसी ही होती है 
कुछ जिंदगियां 
और कुछ के भविष्य 
इच्छाये ,खुशियाँ और आशाएं ।
मैं भी 
ताक रहा हूँ टुकुर टुकुर 
दूर से दूर तक 
बहुत दिनों से 
और भाग रहा हूँ लगातार 
की आसमान को छू लूँ  ।
पर
या तो आसमान छल करता है 
या 
मेरा पुरुषार्थ ही जवाब दे जाता है 
और
हाथ भी तो छोटे पड़ जाते है मेरे ।

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