मंगलवार, 16 जुलाई 2024

वो सदमे में ही रहा होगा शायद

वो सदमे में ही  रहा होगा शायद

उसने कुछ नहीं कहा होगा शायद

कितना शोर और कितना धुआं था

उसने कुछ देखा सुना होगा शायद

लगी थी हाट सब कुछ बिक रहा था

कुछ छुपा और कुछ दिख रहा था 

वे सब आये थे जो सब खरीद लेते है

उनसे कुछ भी ना बचा होगा शायद

जो लोग जीत कर घरो को लौटे है

वहा तों  जश्न हो रहा होगा शायद  .

उधर वो जो ख़ाली उदास बैठा है 

वो मेले में लुट गया होगा शायद

है मेला या दंगा हमारा भ्रम तों नहीं

घर नहीं कही ठहर गया होगा शायद

इससे अच्छा तों अपना  पनघट था

ओ फिसलने से डर गया होगा शायद

समंदर तों हमेशा ही इतना गहरा था

किनारे पर धोखा हुआ होगा शायद|

सीख लिया समंदर की सवारी करना

कहा पहुंचोगे ना सोचा होगा शायद .

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