आओ न कृष्ण ।
कृष्ण आज तुम्हारे घर पर हूँ
मथुरा वृंदावन में
और तुम्हें ढूढ रहा हूँ ,
तुम कहा हो कृष्ण
ना मथुरा मे मिले
ना गोवर्धन के आसपास
ना यमुना के किनारे
और ना गोकुल ,
ना नन्दगाँव ,बरसाने मे
तब कहा हो कृष्ण
निधिवन और मधुवन भी सूना है
भागकर गये थे द्वारका
क्या वही कही बिला गये कृष्ण
पर लोग तो तुम्हे यहा ढूढ रहे है
कब आवोगे कृष्ण
या अब तुम हो ही नही
तुमने रचा था महाभारत
या तुम सचमुच नही चाहते थे वो युद्द
तो फिर हुआ कैसे वो युद्ध
क्या सिर्फ तुम्हारे उपदेश के लिये
कि सामने जो भी है
मत देखो कौन है बस उसे मारो
और
लाशो से पटी धरती को देख
शायद युधिष्ठिर कांप उठे थे
तुम भी कांपे थे क्या कृष्ण
तुम तो इश्वर थे
अवतार थे विष्णू के
फिर क्यो नही रोक पाये
अपनो का ही वीभत्स वध
क्यो नही रोक पाये धूत क्रीड़ा
क्यो नही रोक पाये एक नेत्रहीन का अपमान
क्यो नही रोक पाये भरी सभा मे स्त्री का अपमान
क्यो नही रोक पाये वो वध
चाहे अभिमन्यु का हो या जयद्रथ का
वो छल से किया गया वध
तो क्या तुम भी सर्फ दर्शक थे
या मिथ्या है कि तुम इश्वर हो
वरना !
तो क्या तुम इन अनैतिकताओ के
सारथी बनकर खो बैठे थे अपना देवत्व
और शक्तिया
और हो गये थे अशक्त
तभी तो भागना पड़ा तुम्हे
अपनी प्यारी नगरी छोडकर
क्या तभी तुम शिकार हो गये एक बहेलिए के
अगर हा तो एक बार प्रकट होकर ये बता दो
ताकी करोड़ों लोगो का भ्रम टूट सके
अगर ना तो भी प्रकट होकर बता दो
कि तब क्यो हुआ वो सब
और एलान कर दो
कि अब
वैसा कुछ भी नही होगा कृष्ण
तुम्हारी नगरी मे मुझे इन्तजार है
तुम्हारे आने और एलान करने का ।
आओ न कृष्ण ।
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