कृष्ण ने उठाया था गोवर्धन
बचाने को उन लोगो को
जिनको खड़ा कर दिया था
सबसे बडी सत्ता के खिलाफ
बस यही तो कहा था कृष्ण ने
कि उसे क्यो भोग लगाते हो
जो खाता ही नही है
जिसे भूख ही नही है
और उदर भी नही है
केवल वास लेता है वो
उसे खिलाओ जिसे भूख है
जिसे जरूरत है
लाओ मुझे खिलाओ, मैं खाऊंगा
कितना कमजोर था देवत्व
की तुरन्त हिल जाता था उनका आसन
और कितना क्रोध भरा था इनमें
कैसे और क्यो देवता माने इन्हें
जो सहज इंसान भी नही
बरसा दिया क्रोध उन सभी पंर
जिन्हें खड़ा किया था कृष्ण ने
सत्य के साथ
पर कृष्ण भी तो कृष्ण थे
प्रेम किया तो खूब किया
राजनीति किया तो खूब किया
युध्द भी खूब करवाया
खूब मरवाया और खूब बचाया
खड़े हो गए यहाँ भी कृष्ण
अपनो के साथ
और उठा लिया गोवर्धन
अपनी छोटी सी उंगली पर
वो छोटी सी उंगली
और उतना बड़ा पहाड़
कैसे टिक पाया होगा
और कैसे उठाया होगा
कितनी दुखी होगी उनकी उंगली
शायद आज भी दर्द कर रही वो उंगली
पर असम्भव को संभव करने का नाम
ही कृष्ण है शायद
लगता है की वो पहाड़ नही
बल्कि पुरुसार्थ रहा होगा
संकल्प रहा होगा इरादा रहा होगा
और अडिगता रही होगी
और आंख में आंख डाल कर
खड़े हो गए होंगे कृष्ण
सबसे आगे उंगली उठाकर चुनौती देते हुए
और उनके संकल्प के सामने
नही टिक पाया होगा इतना उथला से इंद्र
और भाग खड़ा हुआ होगा
खूब तालियां बजी होंगी
नाचे होंगे लोग कृष्ण को उठा कर कंधे पर
गोपिया रीझ गयी होंगी कितनी
और देख रही होंगी कनंखियो से
कृष्ण को
कृष्ण ने भी जरूर देखा होगा
अठखेलियाँ
और मंद मंद मुस्कराए होंगे कृष्ण
पर कृष्ण तुम कितने लंबे विश्राम पर हो
या
अपने गुण,अपनी जिम्मेदारी भूल गयो हो
देखो कितने नकली देव
क्या क्या जुल्म कर रहे है तुम्हारे लोगों पर
तुम्हारी गोपिकाओं तुम्हारे बच्चो से
क्या क्या सलूक हो रहा है कृष्ण
तुम इतने बेदर्द तो नही हो सकते
की लोगो का दर्द ही भूल जाओ
आ जाओ न कृष्ण
भारत ही नही दुनिया को
एक और महाभारत की जरूरत है
और जरूरत हैं आज के संदर्भ में
एक नए ज्ञान और उपदेश की
कब आवोगे कृष्ण
और ये महापर्वत कब उठावोगे
अपने इरादे और न्याय की
उंगली पर ।
आओ न कृष्ण , अब उठ जाओ
आ भी जाओ न कृष्ण ।
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें