किस-किस के आगे शीश झुकाना पड़ता है,
दिल पर कितना बोझ उठाना पड़ता है
काम नहीं चलता अब दीप जलाने से,
हर जुगनू को भोग लगाना पड़ता है
रूह बहुत दुख पाती ऐसे जीने से,
यारो जीते जी मर जाना पड़ता है.
नौकरशाही मौज उड़ाती रहती है
जनता को कर्ज़ चुकाना पड़ता है
हमने भी देखे हैं रंग सियासत के,
चोरो तक का साथ निभाना पड़ता है ।
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें