ये नया फरमान है
नये जमाने का
कितना भी दर्द हो
किसी को
कुछ नही सुनाने का
रख दे कोई गर्दन पर
और
कोई सीने पर पाँव
फिर भी नही चिल्लाने का
ना दिल न भाव तुम पत्थर हो
बस इतना समझं जाने का
चाहे घुट कर मर जाने का
पर हरगिज़ नही बताने का ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें