कुछ लाशे कितनी भारी होती है
उठाना मुश्किल हो जाता है
और
बार बार कंधे बदलने पडते है
या
फिर गाडी पर ले जाना पडता है
पर
खुद की लाश को ढोना तो
कितना मुश्किल होता है ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें