तुम पढ़ लो
वो कविता
जो
मैंने लिखा ही नही
तुम देख लो
वो चित्र
जो
मैंने बनाया ही नही
तुम बस जाओ
उन साँसों में
जो
मैंने ली ही नही
तुम आ जाओ
मेरे घर में
जो
कही है ही नही
पर
तुम आ सकते हो
सपने में मेरे
जिसकी
सुबह याद नही रहती
छोड़ो सब
आ जाओ
और बैठ जाओ
मेरे सामने ताकि
निहार सकूँ मैं तुम्हें
जब तक
मैं मैं हुँ और तुम तुम हो ।
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