दिल ,दिमाग़ ,कलम कीबोर्ड
साथ नही दे रहा है कुछ भी
बहुत कुछ बोलना चाहता हूँ
पर आवाज फँस जा रही है
जब भी कलम उठाता हूँ
अपने बोझ से गिर पडती है
दिल में जो झांकता हूँ
तो बस अंधेरा दिखता है
दिमाग़ पर ज़ोर देता हूँ
सर ज़ोर से फटने लगता है
कीबोर्ड पर उँगलिया रखता हूँ
तो उँगलियाँ झुलस जाती है
ये क्या दौर आ गया है मौला
रहम कर रहम कर रहम कर ।
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