आज शमशान घाट पर
बैठा देख रहा था
और सोच रहा था
जीवन का सच
वो पैसे के पीछे भागते रहे
बहुत कमाया
पर
जीवन तो नही बचा पाये
उन्होने लकडी ली ढेर सारी
और
घी के कनस्तर के कनस्तर उडेल दिये
पर चिता बड़ी मुश्किल से
बड़ी देर मे जली
और
वो बस किसी तरह जला पाया
पर चिता धधक कर जल उठी
कितने कन्धे थे उसके साथ जो गरीब था
पर सिर्फ नौकर साथ थे
जो अमीर था
शमशान भी समाज का आइना है
कोई औरत या बेटी अकेली
या दो ले आते है अपने को
ठेल पर डाल कर
और
गिड़गिड़ाते है मदद को
तो किसी की भीड
भर देती है शमशान को
यद्द्पि जलते दोनो है
लकडी मे
पर
किसी के पास चन्दन
तो किसी के पास कुछ भी नही
शमशान भी गैर बराबरी का स्थान है
समाज दिखता है यहा
और समाज का सच
जिन्दगी का सच तो होता ही है
कि
खाली हाथ बिना जेब
नंगे जल जाना है यहा सभी को ।
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