हम कितना बोलते है रोज
और
हमारा शरीर सुनता है और
मानता है हर बात
पर
कभी कभी शरीर का कोई अंग
थोडा सा बोल देता है
तो
नही सुन पाते है हम
और
किस कदर पस्त हो जाते है ।
फिर दवाई चीर फाड और
पता नही क्या क्या ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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