गर्म हवायें बहुत तपिश थी
कितनी काली अंधियारी थी
जुल्म ज़्यादती शोषण कितना
और ग़ुलामी की ज़ंजीरे
फिर वो रोटी बटी हर जगह
गोली और धमाके गूंजे
बिन तैयारी ही था सब कुछ
थाली में थे गए परोसे ख़ुद के बेटे
टुकड़े टुकड़े में ख़त्म हुआ सब
हाँ गोली तो फेल हो गयी
पर बोली को जगा गयी थी
बहुत दिनो की चुप्पी थी फिर
फिर गूंजा था जोश सभी का
फिर आया था होश सभी को
पर बाक़ी वो भूल नही की
एक लँगोटी वाला आगे
पीछे पूरा देश चला था
ये हथियार कुछ नया नया था
दुनिया हतप्रभ दुश्मन हतप्रभ
इस हथियार का ना जवाब था
पर जुल्मों का ना हिसाब था
करो या मरो का नारा था
चौरी चौरा ने रोक दिया ये
फिर न कभी ये दोबारा था
ना मारेंगे ना मानेगे
युद्ध का नया ये नारा था
सत्य अहिंसा का प्रयोग था
सत्याग्रह और असहयोग था
जिसका सूरज ना डूबा था
चली अहिंसा डूब गया वो
छटा अंधेरा सूरज निकला
आज हवाये कुछ ठंडी थी
पर बँटवारे की आबाजे
कान के पर्दे फाड़ रही थी
धरती अपनी चिंघाड़ रही थी
फिर फ़क़ीर ही निकला बाहर
जान हथेली पर फिर लेकर
कैसे कैसे थी शांति आयी
पर बहुतो को कहा थी भाई
वहाँ प्रार्थना हाथ जुड़ा था
आतंकी सामने खड़ा था
जिसने कल तक साँस न ली थी
उसने गोली खूब चलायी
इंगलिश गोली इंगलिश पिस्टल
हाँ कायर को खूब थी भाई
फिर से सूरज डूब गया था
फिर हवाये गर्म हुयी थी
आज का मौसम फिर वैसा है
वही अंधेरा वही कालिमा
पर फ़क़ीर वो नही यहाँ है
अब मौसम को कौन बचाए
कौन उगाए फिर सूरज को
ठंडी हवाये कौन चलाए
इंतज़ार है इंतज़ार हाँ इंतज़ार है ।
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