बहुत दिनो से
चिडिया ना चहकी आंगन मे
बहुत दिनो से
कोयल ना कूकी पेड़ो से
बहुत दिनो से
मोर नही नाचा सावन मे
बहुत दिनो से
ना फूल खिला है मेरे मन मे
क्या है ये सब
सफर अन्त का
या मुरझाता मन
तन तो भला भला दिखता है
पर शायद मन घायल है
बहुत दिनो से
कोई गाना याद न आया
बहुत दिनो से
यादे भी तो कुंद पडी है
बहुत दिनो से
सारी घडिया बंद पडी
बहुत दिनो से
सभी खिड़कियां बंद पडी है
दरवाजे से हवा रोशनी
सब बाहर है
बतियाए तो किससे आखिर
खिसियाये तो किस पर आखिर
सलवट जितनी है बिस्तर पर
उससे ज्यादा मन कर भीतर
बहुत दिनो से ।
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