सोचता हूँ
मैं फिर बच्चा हो जाऊ
जो कुछ नही जानता
सोचता हूँ
उड़ जाऊँ नील गगन मे
पक्षी बन कर
सोचता हूँ
खूब खाऊँ
परेशान हो जाऊँ
सोचता हूँ
खूब चलूँ
और थक जाऊँ
कि नीद आ जाये
शान्त शान्त गहरी
सोचता हूँ
भाग जाऊँ
अपने से दूर कही
जहा कोई जानता न हो
सोचता हूँ
रम जाऊँ
किसी भी इश्क मे
की रश्क न रहे
पर
ये भी क्या जिन्दगी
न ये किया न वो किया
एलान कर दूँ
कि सब किया हा सब किया
सोचता हूँ
फिर से
पकड लाऊं
खोया हुआ हमसफर
और फिर बंद हो जाऊँ
अपने दिल के राजमहल मे ।
और
सोचने मे क्या जाता है ।
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