ये शरीर भी कितना बेईमान है
पर खुद को समझता महान है
पर कही भी सरेंडर कर जाता है
कही अकड़ता कही शिथिल पड़ जाता है
मच्छर भी काट ले तो बाप रे बाप
कांटा भी चुभ जाये तो हाय ही हाय
जरा सा टूट जाये तो औकात बताता है
इश्क मे कदमो मे लेट जाता है
नफरत मे अपनी औकात बताता है
कितनी बड़ी बड़ी बाते बनाता है
दूसरो से डरता है अपनो को सताता है
बड़ी से बड़ी डीँग हाकता है
मौका पडने पर लुढक जाता है
जी हा पर शरीर तो शरीर है
कोई मन ,दिल दिमाग और आत्मा तो नही
जो इसे जैसे चलाते है वैसे चल जाता है
शरीर बस पुतला है जिसमे दिल है
शरीर एक अस्तित्व है जिसमे दिमाग है
शरीर को बस शरीर ही रहने दो
इसे कम्प्यूटर और गड़ित मत बनाओ
इसका अपने दिमाग से प्रयोग करो
और कुछ बुरा हो जाये यो भूल जाओ
चलो शरीर का भरपूर उपयोग करो
इसका जितना हो सके प्रयोग करो
तभी शरीर शरीर रहेगा दौडेगा खेलगा
जी हा इसकी भाषा को समझो तो
फिर ये खूब खूब और बहुत खूब बोलेगा ।
अपने शरीर को खूब प्यार करो
दूसरे के शरीर से भी मत इंकार करो ।
क्योकी शरीर नितांत क्षणभंगुर है जल जायेगा
फिर क्या पता कब आप की किस्मत मे वापस आयेगा ।
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