आदरणीय Udaypratap Singh जी की चार पंक्तियाँ पढ कर हमने भी लिख दिया चार ही पंक्तियाँ---
गलत जा रहे थे और गलत जा रहे है
टोका तो हमको उंगली दिखा रहे है
गड्ढे मे गिरोगे चमचे ताली बजाएंगे
हम तो दुखी होंगे और आसू बहायेंगे ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
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