बहुत दिनों पर गाँव गया था पर ये मेरा गाँव नहीं था
बहुत दिनों पर गाँव गया था
पर ये मेरा गाँव नहीं था .
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ ,
कहा गया वो?
सब कुछ बदला नया नया था
सुनते थे सड़के बननी है ,
पूरे गाँव को वो जोड़ेगी .
वो चकरोड बहुत चौड़ा था ,
पगडण्डी सा अब दिखता है .
वो मेरा चकरोड कहा है ?
वो पोखर ,तालाब ,गड़हिया
जो गाँव के तीन तरफ थे
उनसे पूरा गाँव हरा था ,
पशु नहाते ,सभी तैरते ,
मछली पर सबका ही हक़ था .
अब तों वहा मकान बने है
या फिर है रस्ते लोगो के .
सबके घर को तों रस्ते थे ,
सबके पास मकान थे अपने .
फिर ये सब क्या नया नया है .
वो रस्ते और तालाब कहा है ?
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ .
उत्तर वाला नाला सदा भरा रहता था,
दक्षिण में नहर सरकारी .
चारो ओर दिखती थी
इतनी धान की क्यारी
.कहा गए वो ?.
वो पाकड़ का पेड़
जहा खेला करते थे
और
खुला खलिहान
या दालान किसी का,
सब सबका था .
एक बार पड़ा था सूखा ,
कई घरो में अन्न नही था
पर जिनके घर हुआ था आलू
वो भून पंहुचा देता था
जिसका भी गन्ना पेरा जाता
भरी बाल्टी गन्ने का रस
उस घर वो भिजवा देता था .
कोई नहीं मरा था भूखा
नहीं रुका था काम किसी का
बसवारी के बांस सभी के ,
छानी मड़ैया ,सरपत सबका . .
सब थे छवाते साथ उठाते
और मड़ैया उठ जाती थी.
वो मिले जुले स्वर और हाथ कहा है,
मिलके उठाना की आवाजे कहा गयी वो .
बरामदे का कुआँ
कितना ठंडा कितना मीठा,
पता था सबको .
और
द्वार पर बड़ा सफ़ेद फूलो वाला
मौलश्री का पेड़ खड़ा था .
जो राही इस राह से आता
रुक कर निश्चित पानी पीता,
पेड़ कि छाया में सुस्ताता
और फिर जाता.था
देख कर कितना सुख मिलाता था .
कहा गया वो ?
पहले जब थे शहर से आते
पूरा गाँव अपना लगता था
बहुत लोग मिलने आते थे ,
हाल पूछते ,साथ बैठते ,
घर आने को कह जाते थे .
जिसका भी जो रिश्ता था
कह जाता था
भाभी ,चाची या बुला रही है ,
बहुत दिनों से नही है देखा,.
आजी कहती दुबले क्यों हो ,
दूध नही मिलता है ,पीलो!
गाँव के चारो तरफ बगीचे
लदे आम से ,
मेरे घर आम नहीं था
तब काका ने भिजवाया था .
कहा गए वे लोग
जो ऐसा करते थे,
वे सारे बाग़ कहा है ?
वे दोनों स्कूल पूरब में लडके,
पश्चिम में लड़की पड़ने जाती थी
दूर से आती थी आवाजे पढ़ने वाले बच्चो कि .
अब नहीं आ रही
सबके घर एक चारपाई ,बिस्तर
अलग रखा था ,
गाँव कि बारातो और मेहमानों को .
जिसके घर भी दूध दही या सब्जी होती ,
आ जाती थी
सब मेहमान सभी के थे तब . .
और अब खुली गई दूकाने सब चीजो की,
कोई किसी को कुछ ना देता ,
सब बाजार से आ जाता है .
वो अपनापन और वे रिश्ते,
मेहमानों के लिए रखे सामान कहा गए वो ?
सबने रस्ता बंद कर दिया,
खोदे गड्ढे कि भाई को राह मिले ना . .
सबकी नाली बंद कर दिया
या मुह उल्टा मोड़ दिया है
सबके दरवाजे पर कीचड़ ,
राह में कीचड़ ,मन में कीचड़
सबका घर जाना मुश्किल है .
पर संतोष सभी को ये है ,
अपना पडोसी परेशान है ,
कैसे ब्याहेगा वो बिटिया
वो था गाँव जहा बाराते
शादी वाले घर तक जाती थी ..
जिस गाँव में सबकी बिटिया सबकी थी ,
कहा गया वो ?
कल सुना
की फला की बबुनी भाग गयी,
गाँव के लिए बात नयी .
वो शहर में ,पढ़ी थी कम
और बढ़ी थी ज्यादा ,
खूब सिनेमा देख रही थी .
हिरोइन बनने चली गयी
या फिर रिश्तो में ही छली गई वो .
कुछ आदर्श गाँव के ,
बिना बड़ो के पांव नहीं बाहर जाते थे , कहा गए वो ?
पहले भी बजार लगता था
और लगती थी कुछ दूकाने ,
बढ़ते बढ़ते गाँव मुहाने आ पहुची है .
पूरा गाँव बाजार बन गया
कही खो गया,
ढूढ़ रहा हूँ कहा गया वो ?
सबकी शान इसी में मुक़दमे
किसके कितने कैसे जीते ,
सब कुछ हो बर्बाद हमारा
पर पडोसी कि बर्बादी
मजा आ गया . .
पहले तों गाँव के बूढ़े ही सब कुछ थे,
उनका ही फरमान बड़ा था
पहले शाम बैठके पर बैठक होती थी.
कुछ बुजुर्ग मानस गाते थे .
बड़े चाव से रामचरित वे समझाते थे .
वे बैठके चाय कि दूकान खा गई .
अब गाँव मुहाने
देसी की दुकान खुल गई
और पूरा गाँव तरन्नुम में है .
अब बहस है लाल पारी की,
किसमे मजा है ज्यादा
देसी में या अंग्रेजी में .
वो किस्से ,वो मानस ,वो चौपाई
और बुजुर्गो कि वे बहसे
कहा गए वे ?
घर ,खेत और द्वार वही
पर नहीं है
गाँव वाले वो चाचा ,वो प्यारे बाबा .
जब भी मै बीमार होता था ,
कोई सवारी नहीं गाँव में
और शहर भी दस कोस था .
मेरे बाबा कंधे पर बैठाते,
शहर को जाते ,
इलाज कराते
और शाम ढले गाँव आ जाते
अब गाड़ी है ,सब कुछ है
पर नहीं है तों मेरे बाबा
उनको तों भगवान ले गए .
उनका प्यार ,उनकी डांट,
उनका कन्धा याद आ रहा
ढूढ़ रहा हूँ
कहा गए वो .
वही गाँव है
पर भूतो का डेरा लगता
नहीं कही वो बाबा चाचा
और वो आजी .
गाँव तों है
पर इंसानों का नहीं बसेरा .
चौबे जी का घर
कितनी रौनक रहती थी,
घास उग गई .
दीवार गिर गई
छत पर है जाले ही जाले
और भी घर है ,
मेरा भी है
जिनमे लटके है बस ताले.
शहर में दो कमरे सपना है
यहाँ बीस कमरों का घर अपना है
लेकिन कुछ है जो बिला गया है
ढूढ़ रहा हूँ जिसकी खतिर
बार बार हम गाँव आते थे,
कहा गया वो ?
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ मेरे गाँव को ,
खलिहानों को ,
मछली वाले तालाबो को .
बूढ़े बरगद और मौलश्री कि छाव को ,
बर्फ से ठंढे मीठे पानी वाले उस कुए को
भुट्टे तोड़ते थे खेतो में
फूट और ककड़ी खा जाते थे .
वो जामुन वाला पेड़ ,
बगीचा आम कि डाली ,
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ '
जांघिया नाच दिखाने वाली
उस टोली को ,
रामायण हो या शादी हो ,
गैस जलाते ,तम्बू लगाते ,बाजा बजाते इस्माइल को ढूढ़ रहा हूँ .
लाज हया
और
हसी ठिठोली में मर्यादा ,
शादी में गाली भी तों गाई जाती थी '
थोडा कहा समझाना ज्यादा वाली भाषा ,
पंचायत पर दंड बैठको वाला अखाडा ,
लाखी पाती वाले खेले ,
कभी कही ,कभी कही के मेले ,
सुथनी और जलेबी गुड की ,
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ ,
कोई मुझे मेरा गाँव बता दो ,
कहा रुक गए पाव बता दो .
बहुत दिनों पर गाँव गया था
ढूढ़ ना पाया मेरे गाँव को ,
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ .