रविवार, 6 अक्तूबर 2024

तुम जेल में ठूस दिये जाओगे

तुम जेल में ठूस दिये जाओगे 

तुम्हे हथेलियां फैलाए रहना था 
पर
तुम उंगलियों को मोड़ने लगे 
और 
अंगूठे को दबा लिया उनके बीच 
क्या तुम नही जानते इसे मुट्ठी कहते है
और 
मुठिया प्रतिरोध का प्रतीक होती है 
तुम लोग मुठिया लहरावोगे 
फिर भी तुम्हे डर नहीं लगता है
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे ।

तुम ऊंची आवाज में बोलने लगे 
सत्ता और सियासत को तोलने लगे 
पूछ रहे हो सवाल अपने हालत के 
शब्द चुन रहे हो अपने खयालात के 
फिर तुम्हें डर नहीं लगता है 
उनकी गोली पहले घुटने पर 
और फिर कनपटी पर लगती है ।
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे।

तुम मांग रहे हो हक ये जुर्रत 
तुम मांग रहे हो घर ये जुर्रत 
तुम मांग रहे हो रोटी ये जुर्रत 
तुम मांग रहे अवसर ये जुर्रत 
क्या तुम्हे डर नही लगता 
कि नक्सलवादी कहलावोगे
तुम अज्ञात में जला दिए जावोगे 
फिर भी बच गए तो 
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे। 

तुम लिख रहे हो कहानी,कविता 
तुम कर रहे हो प्रहसन या नाटक 
तुम बना रहे हो इशारे की पेंटिंग 
तुम गढ़ रहे हो क्रांति की मशाल 
फिर भी तुम डर नही लगता 
तुम जेल में ठूस दिये जावोगे।

रविवार, 22 सितंबर 2024

पेड़ो का जंगल ही हमें बचाएगा

जंगल कितना अच्छा लगता है 

हरा भरा ,तरह तरह के पेड़ पौधों वाला 

कितनी शीतलता देता है जंगल 

कुछ जंगल डरावने भी होते है 

फिर भी मानवता के लिए जरूरी होते है 


आजकल भी उग रहे है काफी जंगल 

सीमेंट के बालू के कंक्रीट के 

ये भी रंग बिरंगे होते है 

पर ये ज्यदातर डरावने होते  है 

वो जंगल देते है आक्सीजन 

और ये उगल रहे है जहरीली गैस 


वो जंगल भी हिलता है आंधी आने पर 

पर डर नही लगता है 

हा अक्सर टूट जाति है कुछ डालिया 

उखड जाते है कुछ कमजोर  पेड़ 

ये जंगल भी हिलता है बड़ी जोर से 

जब जमीन में कोई आंधी चलती है 

और डरा देता है मानवता को 


कभी ज्यादा  तेज काँप गयी धरती तो 

वो पेड़ का जंगल ख़त्म करते जा रहे है हम  

और उगाते जा रहे है कंक्रीट का जंगल 

पेड़ो का जंगल ही हमें बचाएगा 

और कंक्रीट का जंगल हमें मिटाएगा 

ये हमें कब समझ में आएगा | 


गौर से देखिये छोटे बच्चे और माँ बाप को

आप कभी गौर से देखते है 

किसी छोटे बच्चों और उनके माँ पिता  को

एक दुसरे से कितना प्यार होता हैं 

जब तक बच्चे बच्चे रहते  है 

जरा महसूस करिए दूर से उस प्यार करते 


बच्चों का मचलना रूठना मनाना 

दूर भागना ,एक दुसरे को खोजना 

न मिलने पर परेशान होना 

नाम लेकर या मम्मा पापा चिल्लाना 

एक दूसरे को ढूढना  

मिलने पर गुस्सा या प्यार उड़ेल देना 


नहीं देखते आप ये सब दृश्य गौर से

तो अब से जरूर देखा करिये

इन द्र्श्यो में जवाब है जिंदगी के 

जी बहुत सारे जवाब आज के और कल के भीं 

इन दृश्यों में जीवन हैं

ये जीवन के लिए जरूरी है । 


सोमवार, 16 सितंबर 2024

मेरी रहा में कांटे

मेरी राहो में कांटे 
जिसने भी बिछाये 
जब वो मेरे पांव में चुभे 
और 
जोर से चीखा मैं दर्द से 
जरूर उनके कानो के 
परदे भी हिले होंगे
और दुख रहे होंगे अभी तक 
दोस्त 
मेरा घाव शायद जल्दी भर जायेगा 
क्योकी बेजान कांटे से हुआ है 
पर तुम्हारा नहीं भर पायेगा जल्दी 
क्योकि 
इंसानी चीख से घायल हुए हो तुम ।
इंसान की जब भी निकलती है चीख 
या कराह 
वो छलनी कर देती है अंदर तक 
और दीखती भी नहीं 
पर 
अचेतन में हथौड़े की तरह 
चोट करती रहती है जिंदगी भर ।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

तुमने ऐसा क्यों करवाया था कृष्ण

कृष्णा 
तुमने ऐसा क्योंकि करवाया था 
क्यों कहा था कोई अपना नहीं 
देखो सब मरे है 

तुम रोक भी तो सकते थे 
महा शक्तिशाली हो या थे तुम 
तब 
तुमने अपनो से अपनो को क्यो मरवाया था 

पहले झुक कर प्रमाण करो 
फिर मार दो 
ये क्यों सिखलाया था कृष्णा 

देखो ने फिर क्या हुआ 
बापू को भी उसने पहले प्रणाम किया 
और उन्हें मार दिया कृष्णा 

और आज तो कुछ पाने को 
अपनो को मार देने की बाढ़ आ गई है
तुमने वो नही करवाया होता 
क्या तब भी ये सब हो रहा होता 
जरा सोचो कृष्ण और सोचो 
कि क्या तुम अब ये रोक सकते हो ?

बुधवार, 11 सितंबर 2024

वो किस कदर कंगाल है

मेरी बात --

अपने बच्चे 

पिता के दर्द और तकलीफ में 
क्या खूब संतुलन 
बैठाती हुई बेटी 
पिता के दुख में 
मरहम लगाती हुई बेटी 
दूर नौकरी की मजबूरी 
फिर भी 
भाग कर आती हुई बेटी 
पिता के दर्द से 
छटपटाती हुई बेटी 

नौकरी , कैरियर 
और 
पिता की तड़प में 
संतुलन बैठाता हुआ बेटा 
पिता की तकलीफ को
कम करने को 
फड़फड़ाता हुआ बेटा 
अपनी नींद और भूख भूल 
पिता ही पिता में 
पूरा मन लगाता हुआ बेटा 

नही हो धन दौलत 
पद और प्रतिष्ठा
पर ऐसा पिता तो 
कितना मालामाल है 
होंगे उनके 
और 
उनके बच्चो के पास
धन, दौलत, पद
प्रतिष्ठा ,सब कुछ 
पर 
ये सब नही है 
तो वो बाप 
किस कदर कंगाल है ।

बहुत दिनों पर गांव गया था

बहुत दिनों पर गाँव गया था पर ये मेरा गाँव नहीं था

बहुत दिनों पर गाँव गया था 
पर ये मेरा गाँव नहीं था .
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ ,
कहा गया वो?

सब कुछ बदला नया नया था
सुनते थे सड़के बननी है ,
पूरे गाँव को वो जोड़ेगी .
वो चकरोड बहुत चौड़ा था ,
पगडण्डी सा अब दिखता है .
वो मेरा चकरोड कहा है ?

वो पोखर ,तालाब ,गड़हिया 
जो  गाँव के तीन तरफ थे
उनसे पूरा गाँव हरा था ,
पशु नहाते ,सभी तैरते ,
मछली पर सबका ही हक़ था .
अब तों वहा मकान बने है 
या फिर है रस्ते लोगो के .
सबके घर को तों रस्ते थे ,
सबके पास मकान थे अपने .
फिर ये सब क्या नया नया है .
वो रस्ते और तालाब कहा  है ?
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ .

उत्तर वाला नाला सदा भरा रहता था,
दक्षिण में नहर सरकारी .
चारो ओर दिखती थी 
इतनी धान की क्यारी 
.कहा गए वो ?.

वो पाकड़ का पेड़ 
जहा खेला करते थे
और 
खुला खलिहान 
या दालान किसी का, 
सब सबका था .

एक बार पड़ा था सूखा ,
कई घरो में अन्न नही था
पर जिनके घर हुआ था आलू 
वो भून पंहुचा देता था
जिसका भी गन्ना पेरा जाता
भरी बाल्टी गन्ने का रस 
उस घर वो भिजवा देता था .
कोई नहीं मरा था भूखा 
नहीं रुका था काम किसी का 

बसवारी के बांस सभी के ,
छानी मड़ैया ,सरपत सबका . .
सब थे छवाते साथ उठाते 
और मड़ैया उठ जाती थी.
वो मिले जुले स्वर और हाथ कहा है,
मिलके  उठाना की आवाजे कहा गयी वो .

बरामदे का कुआँ 
कितना ठंडा कितना मीठा, 
पता था सबको .
और 
द्वार पर बड़ा सफ़ेद फूलो वाला 
मौलश्री का  पेड़ खड़ा था .
जो राही इस राह से  आता 
रुक कर निश्चित पानी पीता,
पेड़ कि छाया में सुस्ताता 
और फिर जाता.था
देख कर कितना सुख मिलाता था .
कहा गया वो ?

पहले जब थे शहर से आते 
पूरा गाँव अपना लगता था
बहुत लोग मिलने आते थे ,
हाल पूछते ,साथ बैठते ,
घर आने को कह जाते थे .
जिसका भी जो रिश्ता था 
कह जाता था
भाभी ,चाची या बुला रही है ,
बहुत दिनों से नही है देखा,.
आजी कहती दुबले क्यों हो ,
दूध नही मिलता है ,पीलो!
गाँव के चारो तरफ बगीचे 
लदे आम से ,
मेरे घर आम नहीं था 
तब काका ने भिजवाया था .
कहा गए वे  लोग 
जो ऐसा करते थे, 
वे सारे  बाग़ कहा है ?

वे दोनों स्कूल पूरब में लडके, 
पश्चिम में लड़की पड़ने जाती थी
दूर से आती थी आवाजे पढ़ने वाले बच्चो कि .
अब नहीं आ रही 
सबके घर एक चारपाई ,बिस्तर 
अलग रखा था ,
गाँव कि बारातो और मेहमानों को .
जिसके घर भी दूध दही या सब्जी होती ,
आ जाती थी 
सब मेहमान सभी के थे तब . .

और अब खुली गई दूकाने सब चीजो की,
कोई किसी को कुछ ना देता ,
सब बाजार से आ जाता है .
वो अपनापन और वे रिश्ते,
मेहमानों के लिए रखे सामान कहा गए वो ?

सबने रस्ता बंद कर दिया, 
खोदे गड्ढे कि भाई को राह मिले ना  . .
सबकी  नाली  बंद कर दिया 
या मुह उल्टा मोड़ दिया है
सबके दरवाजे पर कीचड़ ,
राह में कीचड़ ,मन में कीचड़ 
सबका घर जाना मुश्किल है .
पर संतोष सभी को ये है ,
अपना पडोसी परेशान है ,
कैसे ब्याहेगा वो बिटिया 
वो था गाँव जहा बाराते 
शादी वाले घर तक जाती थी ..
जिस गाँव में सबकी बिटिया सबकी थी ,
कहा गया वो ?

कल सुना 
की फला की बबुनी भाग गयी,
गाँव के लिए बात नयी  .
वो शहर में ,पढ़ी थी कम 
और बढ़ी थी ज्यादा ,
खूब सिनेमा देख रही थी .
हिरोइन बनने चली गयी 
या फिर रिश्तो में ही छली गई वो .
कुछ आदर्श गाँव के ,
बिना बड़ो के पांव नहीं बाहर जाते थे , कहा गए वो ?

पहले भी बजार लगता था
और लगती  थी कुछ दूकाने ,
बढ़ते बढ़ते गाँव मुहाने आ पहुची  है .
पूरा गाँव बाजार बन गया 
कही खो गया,
ढूढ़ रहा हूँ कहा गया वो ?

सबकी शान इसी में मुक़दमे 
किसके कितने  कैसे  जीते ,
सब कुछ हो बर्बाद हमारा 
पर पडोसी कि बर्बादी 
मजा आ गया . .
पहले तों गाँव के बूढ़े ही सब कुछ थे,
उनका ही फरमान बड़ा था
पहले शाम बैठके पर बैठक होती थी.
कुछ बुजुर्ग मानस गाते थे .
बड़े चाव से रामचरित वे समझाते थे .
वे बैठके चाय कि दूकान खा गई .
अब गाँव मुहाने 
देसी की दुकान खुल गई 
और पूरा गाँव तरन्नुम में है .
अब बहस है लाल पारी की, 
किसमे मजा है ज्यादा 
देसी में या अंग्रेजी में .
वो किस्से ,वो मानस ,वो चौपाई 
और बुजुर्गो कि वे बहसे 
कहा गए वे ?

घर ,खेत और द्वार वही 
पर नहीं है 
गाँव वाले वो चाचा ,वो प्यारे बाबा .
जब भी मै बीमार होता था ,
कोई सवारी नहीं गाँव में 
और शहर भी दस कोस था .
मेरे बाबा कंधे पर बैठाते,
शहर को जाते ,
इलाज कराते 
और शाम ढले गाँव आ जाते
अब गाड़ी है ,सब कुछ है 
पर नहीं है तों मेरे बाबा 
उनको तों भगवान ले गए .
उनका प्यार ,उनकी डांट,
उनका कन्धा याद आ रहा
ढूढ़ रहा हूँ 
कहा गए वो .

वही गाँव है 
पर भूतो का डेरा लगता 
नहीं कही वो बाबा चाचा 
और वो आजी .
गाँव तों है 
पर इंसानों का नहीं बसेरा .
चौबे जी का घर 
कितनी रौनक रहती थी,
घास उग गई .
दीवार गिर गई 
छत पर है जाले ही जाले
और भी घर है ,
मेरा भी है 
जिनमे लटके है बस ताले.
शहर में दो कमरे सपना है 
यहाँ बीस कमरों का घर अपना है
लेकिन कुछ है जो बिला गया है
ढूढ़ रहा हूँ जिसकी खतिर 
बार बार हम गाँव आते थे, 
कहा गया वो ?

मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ मेरे गाँव को ,
खलिहानों को ,
मछली वाले तालाबो को .
बूढ़े बरगद और मौलश्री कि छाव को ,
बर्फ से ठंढे मीठे पानी वाले उस कुए को
भुट्टे  तोड़ते थे खेतो में 
फूट और ककड़ी खा जाते थे .
वो जामुन वाला पेड़ ,
बगीचा आम कि डाली ,
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ '

जांघिया नाच दिखाने वाली 
उस टोली को ,
रामायण हो या शादी हो ,
गैस जलाते ,तम्बू लगाते ,बाजा बजाते इस्माइल को ढूढ़ रहा हूँ .

लाज हया 
और 
हसी ठिठोली में मर्यादा ,
शादी में गाली भी तों गाई जाती थी '
थोडा कहा समझाना ज्यादा वाली भाषा ,
पंचायत पर दंड बैठको वाला अखाडा ,
लाखी पाती वाले खेले ,
कभी कही ,कभी कही के मेले ,
सुथनी और जलेबी गुड की ,
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ ,
कोई मुझे मेरा गाँव बता दो ,
कहा रुक गए पाव बता दो .
बहुत दिनों पर गाँव गया था 
ढूढ़ ना पाया मेरे गाँव को ,
मै पागल सा ढूढ़ रहा हूँ .

मंगलवार, 10 सितंबर 2024

वो चीखती रही तुम चीरते रहे

जब तुम लौट कर घर जाते 
और पुकारते ही अपनी बेटी को 
आजा बेटी कैसी हो पापा की बेटी 
पर वो भी किसी पापा की बेटी थी 

कहते हो अपनी बहन से 
बहना जरा पानी पिला दे 
और चाय भी बन दे
जब तुम लौट कर घर जाते 
और पुकारते ही अपनी बेटी को 
आजा बेटी कैसी हो पापा की बेटी 
पर वो भी किसी पापा की बेटी थी 

कहते हो अपनी बहन से 
बहना जरा पानी पिला दे 
और चाय भी बन दे
पर वो भी तो किसी की बहन थी 

कहते हो अपनी मां से 
मां बड़ी भूख लगी है 
वो भी तो किसी की मां बनी होती 

कैसे कर लेते हो कन्या पूजन 
वो भी तो कन्या ही थी 
कैसे कर लेते देवी की पूजा 
वो भी तो देवी ही थी 

हा वो,हा वो ! 
जिसे थोड़ी पहले तुम रौंद कर आए हो 
अपने जैसे ही राक्षस दोस्तो के साथ 
वो भी पुकार रही थी 
कोई मुझे बचा लो 
कोई तो मेरा भाई बन जाओ 

पर क्या हुआ था तुम लोगो 
नही सुनी थी उसकी चीख 
वो चीखती रही और तुम चीरते रहे ।

कहते हो अपनी मां से 
मां बड़ी भूख लगी है 
वो भी तो किसी की मां बनी होती 

कैसे कर लेते हो कन्या पूजन 
वो भी तो कन्या ही थी 
कैसे कर लेते देवी की पूजा 
वो भी तो देवी ही थी 

हा वो,हा वो ! 
जिसे थोड़ी पहले तुम रौंद कर आए हो 
अपने जैसे ही राक्षस दोस्तो के साथ 
वो भी पुकार रही थी 
कोई मुझे बचा लो 
कोई तो मेरा भाई बन जाओ 

पर क्या हुआ था तुम लोगो 
नही सुनी थी उसकी चीख 
वो चीखती रही और तुम चीरते रहे ।

आओ न कृष्णा

सुनो कृष्णा ! 

देख रहे हो तुम्हारे घर में क्या हो रहा है कृष्ण 
रोज़ सीताओं का अपहरण हो रहा है 
और रोज़ हर गली और मोड पर 
द्रौपदी का चीर हरण हो रहा है कृष्णा 

तब तो सिर्फ़ साडी खींचने पर तुम आ गए थे कृष्णा 
और 
बचा लिया था लाज द्रौपदी की 
पर अब कहा हो तुम कृष्णा 

क्या तुम्हें बलात्कार होती गोपियों का
आर्द्र स्वर सुनाई नहीं दे रहा है 
या कान बंद कर लिया है तुमने 

तब यमुना को जहरीला कर रहा था वो सर्प 
तो तुमने उसके फ़न नाथ दिए थे कृष्णा 
आज आकर देखो गंगा जमुना क्या हाल है 
क्या उन्हें तुम यो ही छोड दोगे कृष्णा 

कितनी महाभारत हो रही है भारत में 
पर तुम नहीं हो कृष्णा 
कहा सो रहे हो कृष्ण ? 
या 
ड़र गए हो कलियुगी लोगों से तुम भी कृष्णा? 
फिर तुम कैसे ईश्वर हो या हो अवतार  कृष्णा 

तुमने ही कहा था की जब जब 
पृथ्वी पर जुल्म बढ़ेगा, तुम आवोगे कृष्णा 
क्या तुम कह कर भूल गए कृष्णा 
या भूलने का नाटक कर रहो कृष्णा 

आओ न और फूक दो अपना शंख कृष्णा 
और 
दिखा दो चक्र सुदर्शन की ताक़त  पापियों के ख़िलाफ़ कृष्णा 

अगर अब भी नही आवोगे कृष्णा 
तो लोग तुमने अवतार और ईश्वर मानने से इनकार से कर देंगे कृष्णा 
और मान लगे की तुम सिर्फ़ 
किसी कथा के काल्पनिक पात्र भर हो कृष्णा 

तब क्या करोगे  कृष्णा ? 
आओ ना 
और बता दो की तुम सचमुच में हो कृष्णा ।

हारता मैं भी नही हूं

जिनका कद छोटा है 
वे पैर उचका कर मिलते है 
वे नही सकते है कर्म से मुकाबला 
वे भीतरघात करते है 
वे अपनाते है सारे हथकंडे 
और वे ही जीत जाते है 

पर हारता मैं भी नही हूं 
मेरे पास बची रहती है मेरी सच्चाई 
मेरा आत्मसम्मान और मेरा जमीर 
जो जीता नही जा सकता 

खुश रहो तुम अपना सफर करो 
पाप का और छल का 
मैं भी खुश हूं अपनी अच्छी नीद से ,अपनी बेफिक्री से अपनी हालत से ।

शनिवार, 7 सितंबर 2024

कहो राम तब क्यो आये थे

कहो राम तब क्यो आये थे
अब चुप होकर क्यो बैठे हो
बहुत थके हो तुम लंका से
या फिर क्यो रूठे रूठे हो
रूठे हो खुद से या कैकेयी से
या मंथरा से या अपनी माँ से
जो तुम्हरी खातिर लड़ी नही
और राजपाठ को अड़ी नही
यदि खुद से रूठे तो अच्छा है
ये  रूठना  फिर  सच्चा  है
फिर मर्यादित कैसे होते
ये सवाल भी बहुत बड़ा है 
तब तो केवल एक था रावण
अब रावण की फौज खड़ी हैं
तब तो थी  छोटी  सी लंका
अब की लंका बहुत बड़ी है
तब क्या सब बहुत बुरा था
अब क्या रामराज्य आ गया 
सोचो तब क्यो तुम आये थे
और अब क्यो उदासीन हो
आते तो तुम अब भी लेकिन
मंदिर मस्जिद पर आते हो
या  त्यौहार में आ जाते हो
या फिर प्रचार में आ जाते हो

क्या कमाल था वो पत्थर थी 
तुमने उसमे जान डाल दी
बहुत डरा था नाव लिए वो
वो नाव जो वही खड़ी थी

अज्ञात से युद्ध ?

अज्ञात से युद्ध  ?

बम,मिसाइल ,गोलियां ,गोले 
और 
संगीन किसी को नहीं पहचानती है 
क्योंकि उनके दिल नही होता 
उनके दिमाग नही होता 
वो खुद से कुछ नही करती 
कोई और चलाता है इन्हे 
ये गुलाम है किसी दिमाग के 
ये गुलाम है किसी उंगली के 
पर इंसान चाहे किसी देश का हो 
चाहे कोई भाषा बोलता हो 
और 
चाहे जिस बिल्ले वाली वर्दी पहने हो 
उसके तो आंखे होती है 
दिल और दिमाग भी होता है 
फिर कैसे कहर बन टूट पड़ता है
दूसरे इंसान पर 
जिसे खुद जानता भी नहीं 
जिससे उसकी दुश्मनी भी नही ?
फिर कैसे चलनी कर देता है उसे 
कैसे घोप देता है संगीन 
या उड़ा देता है बम से
बिना विचलित हुए 
क्या नही दिखता सामने उसे 
अपना भाई या बेटा 
नही कर पाता है कल्पना 
एक उजड़े घर की 
एक विधवा पत्नी , टूटे मां बाप
और अनाथ बच्चों की
चाहे सामने वालो के हो 
या ख़ुद के 
कैसे इतना बेदर्द और क्रूर हो जाता है 
कोई भी हाड़ मांस का जीवित इंसान ? 
युद्ध में कोई नहीं जीतता 
सब केवल हारते है 
और बर्बाद हो जाते है मुल्क 
उससे ज्यादा इंसानियत
युद्ध जमीन पर नही 
औरत की  देह 
और 
बच्चो के जीवन पर लड़ा जाता है 
और अंत में खत्म हो जाता है युद्ध 
एक मेज पर चाय के साथ वार्ता से 
तो पहले ही क्यों न 
रख दी जाए ये मेज और चाय 
इंसान की मौत और युद्ध के बीच में ।
आइए मेज पर बात करे हर दिन हर वक्त ।

जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही

जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही 

लोग आत्महत्या कैसे कर लेते है 
कितना तकलीफदेह होता है 
जान कर जान देना
जहर पिया तो उसका डर 
गोली चलाने मे कांपते हाथ 
और 
उसके दर्द का एहसास 
नस काटी तो दर्द 
और 
बहते खूँन की दहशत 
और 
फासी लगाया तो कितनी हिम्मत 
गर्दन लटक जाने 
सांस घुट जाने की तकलीफ ।
कैसे हिम्मत आती है 
और 
कर लेने के बाद 
आखिरी क्षणो मे 
सब किया वापस हो जाये
का ख्याल आता है क्या 
क्या तब जिन्दगी से
प्यार महसूस होता है ?
क्या तब इच्छा होती है 
कि 
लड़ले अंतिम लडाई पर ये नही ।
क्या ये क्या वो 
पर ये सब बतायेगा कौन ?
न ये न वो ।
और 
पीछे छूटो का दर्द
असहाय स्थिति
अनिश्चित कल 
और 
मौन मौन बस मौन ।
मत करो ऐसा 
जिसका कोई जवाब नही 
जिसका कल कोई हिसाब नही ।
लडो और खूब लडो 
क्योकी जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही 
अपनो की भी अमानत है ।

कौन लाएगा उजाला भारत की जिन्दगी मे ।

दीपावली पर 
बड़े शहरो मे 
दुकानो पर 
महंगी गाडिया 
जगह 
कम पड़ जाती है 
और 
दिये उदास 
पडे रहते है 
जमीन पर 
गरीब 
एक दिया भी 
नही खरीद पाता है 
सेंसेक्स और शेयर 
उछल रहा है 
और 
सोना चाँदी भी 
पर 
एक और चीज 
उछल रही है 
किसानो और 
बेकारो की 
आत्महत्या की संख्या 
सचमुच आज भी 
एक ही देश मे दो है 
एक 
10 फीसदी इंडिया 
वैभव से संपन्न 
जिन्हे देख कर 
तय होती है योजनाये 
और आँकड़े 
दूसरा 
90 फीसदी भारत 
बदहाल और उपेक्षित
मिली थी रात को 
12 बजे आज़ादी 
पर 
90 फीसदी भारत 
की जिन्दगी मे 
आज भी अन्धेरा है ।
कौन लाएगा उजाला 
भारत की जिन्दगी मे ।

आखिर ये जंग क्यो ?

आखिर ये जंग क्यो ?

कम या ज्यादा 
बर्बाद दोनो हो रहे है 
रुस भी और युक्रेन भी 
इंसान ही मर रहे है 
रुस मे और युक्रेन मे भी 
एक दूसरे को मारने वाले
एक दूसरे को जानते तक नही है 
पर मारे जा रहे है
एक दूसरे को 
टूट रहे है घर,पुल,सड़के
कारखाने ,स्कूल और अस्पताल 
बन रहा है मलवे का ढेर 
सिंचित हो रही है 
लहू से जमीन दोनो की
जंग ने हमेशा लहू पिया 
और 
तबाह किया सब कुछ 
जंग नही थी तब क्या नही था
जंग से क्या मिला है  
आखिर ये जंग क्यो ?

रातें कितनी स्याह होतीहै

रातें 
कितनी स्याह होतीहै 
क्यो होती है 
इतनी स्याह रातें 
ज्यो ही सूरज 
पच्छिमी की खोह में 
डुबकी लगाता है 
पूरब से फैलने लगती है 
स्याह रात 
टिमटिमाते हुई 
रोशनियां भी 
जुगनू से ज्यादा 
कुछ नही होती 
कितनी भयानकता 
समेटे होती है स्याह रात 
जिंदगी गर्त हो जाती है 
धीरे धीरे इसके आगोश में 
और 
कितना अकेलापन 
तारी हो जाता है 
जिसमे जिंदगी 
सवाल बन जाती है 
इन सवालो का 
कोई जवाब नही होता 
खुद से ही बाते करना 
खुद को तसल्ली देना 
खुद के अकेलेपन से लड़ना 
और लड़ते लड़ते 
नीद के लिए लड़ना 
ताकि आंख बंद कर 
अनदेखा कर सके 
इस स्याह अंधेरे को 
और अकेलेपन को 
पर 
कितना स्याह है सब कुछ 
चलो आंखे बंद कर लेते है 
और 
सोच लेते है 
की 
अकेले नही है हम 
तमाम सूरज उग गए है 
हमारी जिंदगी में ।
उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

बम और मिसाइलो के दिमाग नही होता

बम और मिसाइलो के दिमाग नही होता 
बम और मिसाइलो के दिल भी नही होता 
नही जानते बम की वो क्या करते है 
लाशे देख कर मिसाइलों के आसू नही निकलते 
इन्हे नही पता कि घर या बस्ती कैसे बसती है 
कोई हथियार इंसान को नहीं पहचानता है 
इनके धमाके ये खुद नही सुन पाते है 
फट जाने पर उनके खून नही निकलता है 
पर इन्हे चलाने वाले हाथ तो सब जानते है ।

चंदा तुमने कितना भरमाया सालो साल

चंदा तुमने कितना भरमाया सालो साल 
इंसा तुमको समझ न पाया सालो साल 
स्त्री का व्रत हो या रोजा हो मुस्लिम का 
सबने ही तुमसे शक्ति पाया सालो साल 

मां ने बच्चो को भरमाया सालो साल 
भूखे को रोटी बतलाया सालो साल 
चरखा बुढिया कात रही है समझे थे 
चादनी रात में खीर बनाया सालो साल 

( पूरा करना है )

सूरज तुम दिल्ली की सत्ता

सूरज तुम दिल्ली की सत्ता 
आये थे अहंकार में चूर 
गर्म लावा अहंकार का 
सब रहते है शांत
सहते है ताप तुमारा
नही मिलाते आंखे तुमसे
इंतजार करते है
जब ठंडे हो जागोगे तुम 
अब तुम्हारी शाम हो गई 
अब स्वीकार करो चुनौती 
आंख मिलाओ अब तुम सबसे
क्यों छुपने को भाग रहे हो 
डूब रहे हो तुम पश्चिम में 
फिर वो अहंकार था कैसा 
जो उठता है वही डूबता
क्या ये तुमको पता नही था 
इसलिए मदमस्त बहुत थे 
देखो अब तुम अस्त हो रहे 
डूब रहे हो किसी खोह में 
फिर जब आना सोच कर आना 
तुम भी अंतिम सत्य नही हो ।

जीवन पानी और बालू में कही खो गया ।

मैं कूद गया जीवन की नदी में 
और 
नदी का पानी सड़क पर जा पहुंचा 
नदी खाली हो गई 
सड़क नदी बन गई 
जीवन पानी और बालू में कही खो गया ।

आतंकित है मानवता

क्या सत्ता और न्याय मिलकर 
ऐसी नई सज़ाये शुरु कर सकते है ? 
जीभ काट देने की सज़ा ? 
आंख फोड देने की सज़ा ? 
कलम तोड़ देने की सज़ा ? 
कीबोर्ड हटा देने की सज़ा?  
अक्षर खत्म कर देने की सज़ा ?
अशिक्षित रहने की सज़ा ?
दिमाग निकाल लेने की सज़ा ? 
वो सत्ता किसकी होगी 
वो न्याय किसका होगा 
आतंकित है मानवता 
उसकी कल्पना से भी 
उसकी सम्भावना से भी ।

ईश्वर कैसा होता है ।

कितने महान है वो लोग
जो पत्थरो से सर मारते है 
और 
मानते है कि  
पत्थर चमत्कार करता है 
हा 
सच है की पहली आग 
लकड़ियो की रगड़ से 
या 
पत्थरो के टकराने से ही पैदा हुई 
पर 
उसका कारण तो वैज्ञानिक है 
उसमे चमत्कार कुछ भी नही 
और 
किसी अन्य लोक की
ताकत भी कुछ भी नही
मेरी दुवा है आप सबको कि 
सर टकराते रहो 
पर जरा सम्हाल कर
सर से खूँन निकलता है और
फिर उसे रोकने को
दवाई ,मरहम पट्टी 
और 
डाक्टर की जरूरत पडती है 
अगर अधिक निकल गया 
तो 
शायद कही और जाकर
हो सकता है 
दर्शन हो ही जाता हो परमात्मा का
पर तय नही 
क्योकि 
किसी ने लौट कर बताया नही 
कि ईश्वर कैसा होता है ।

जो दिन भर हंसी चेहरे पर चिपकाता है

जो दिन भर हंसी 
चेहरे पर चिपकाता है 
अकेले मे रात को रोता 
फिर 
सुबह से मुस्कराता है 
वो भी एक इन्सा है 
जो खुद को 
और 
अपनो को बहलाता है ।
क्या कोई जानता है 
कि 
वो क्या कहलाता है ।

सपना देखता था

कितना बुद्धू था वो कि सपना देखता था 
और सपने मे सबको अपना देखता था 
उसे पता नही था कि सपने तो सपने होते है 
वो तो सोने मे कल्पनाओ की उड़ान होते है 
जागने पर वो कब अपने होते है 
ये सपने क्या से क्या बनाते है 
और कहा ले जाते है 
पर जब टूटते है तो किस कदर रुलाते है 
इसलिये छोडो सोते हुये सपने मत देखो 
हा देखो खुली आंखो से देखो खूब देखो 
हकीकत के आसपास देखो 
और हकीकत कभी धोखा नही देती 
न सपनो का न अपनो का 
अपनो की छोडो 
उस सपनो के पीछे लग जाओ 
जो तुम्हे बुलंदी पर ले जाते हो 
और 
तमाम तुमसे नफरत करने वालो को भी 
तुम्हारा अपना बनाते हो 
आओ सपना सपना खेले 
बनाये सपनो के लिए बुनियाद 
और 
अपनी इमारत बुलंद करने को चाहे जो झेले 
पर बुलंदी पर पहुच कर 
मेहनत और लगन के सफलता का झन्डा फहराए 
और 
ऐसे जंम जाये की फिर नीचे उतर कर ही ना  आये ।

बारिश



बारिश

बारिश  नहीं आयी
उफ़्फ़ कितनी गरमी है 
सूरज जला देगा क्या 
ये बारिश क्या करेगी 
आफ़त बन कर आयी है 
सब कुछ बहा देगी क्या 
देखो गिर गए 
कितनो के कच्चे घर 
और 
झोपड़ियाँ भी जवाब दे गयी 
अबकी बारिश समय पर आयी 
और उतनी ही आयी 
की अबकी खेत सोना उगलेंगे 
अभी बारिश तो आफ़त है 
भीग गया खेत और खलिहानों में सब 
अब साल कैसे बीतेगा 
कैसे होगी उसकी पढ़ाई और दवाई 
कैसे ब्याहेगा वो बिटिया 
बारिश आयी स्कूल की छुट्टी 
छप्प छप्प करते वो पानी में 
वो काग़ज़ की नाव बहाते 
वो बचपन कितना प्यारा लगता है 
उससे पूछो जो अभी है ब्याही 
और पति सीमा पर बैठा 
उन दोनो के मन की सोचो 
और 
वो दोनो भीग रहे है छत पर 
दोनो देख रहे दोनो को 
भीगा आँचल भीगा यौवन 
दोनो को है कितना जलाए 
वो मछरदानी पर प्लास्टिक बिछा रही है 
बालटी भगौने सब बिस्तर पर सज़ा रही है 
ख़ुद बैठी है पर बच्चों को 
इस कोने और उस कोने कर 
वो बारिश से बचा रही है 
पूरी रात नहीं वो सोयी 
सब झेला 
पर कभी नहीं क़िस्मत पर रोयी 
बारिश का मतलब उससे पूछो 
जो पूरा घर अब सुखा रही है 
बारिश तो अब ख़त्म हो गयी 
चरो तरफ हरियाली छायी

फूलों से अब लदी डालियाँ 
सबको ही अच्छी लगती है 
भूल गए सब क्या झेला था 
वो अच्छा या बहुत बुरा था 
फिर जीवन पटरी पर आया  
उफ़्फ़ 
ये बारिश कैसी बारिश ।

बुलडोजर अंधा होता है

बुलडोजर अंधा होता है 
और बहरा भी 
वो चलता है तो
किसी को नहीं छोड़ता 
चाहे वो गांधी हो 
जयप्रकाश या विनोबा 
इसलिए बुलडोजर को
पहले कदम पर ही रोक दो ।

मैतेई हो कुकी या नागा

मैतेई हो कुकी या नागा
क्या इंसान के अलावा कुछ है 
क्या फर्क है इन सब में ? 
फिर लड़ाई क्यों ?

आंसू ने आंख मिलाकर मुझसे की ये बात तू दिल वाला है तो मैं ही हूँ तेरी सौगात ।

आंसू ने आंख मिलाकर मुझसे की ये बात 
तू दिल वाला है तो मैं ही हूँ  तेरी सौगात ।

रहम कर रहम कर रहम कर ।

दिल ,दिमाग़ ,कलम कीबोर्ड
साथ नही दे रहा है कुछ भी 
बहुत कुछ बोलना चाहता हूँ 
पर आवाज फँस जा रही है 
जब भी कलम उठाता हूँ 
अपने बोझ से गिर पडती है
दिल में जो झांकता  हूँ 
तो बस अंधेरा दिखता है 
दिमाग़ पर ज़ोर देता हूँ 
सर ज़ोर से फटने लगता है 
कीबोर्ड पर उँगलिया रखता हूँ 
तो उँगलियाँ झुलस जाती है 
ये क्या दौर आ गया है मौला 
रहम कर रहम कर रहम कर ।

किस-किस के आगे शीश झुकाना पड़ता है,

किस-किस के आगे शीश झुकाना पड़ता है, 
दिल पर कितना बोझ उठाना पड़ता है 

काम नहीं चलता अब दीप जलाने से, 
हर जुगनू  को भोग लगाना पड़ता है 

रूह बहुत दुख पाती ऐसे जीने से, 
यारो जीते जी मर जाना पड़ता है. 

नौकरशाही मौज उड़ाती रहती है 
जनता को कर्ज़ चुकाना पड़ता है 

हमने भी देखे हैं रंग सियासत के, 
चोरो तक का साथ निभाना पड़ता है ।

प्रकृति का प्रकोप सहना है ।।

पहाड़ टूट रहे है 
जमीन धंस रही हैं
पुल टूट रहे है 
सड़के धंस रही है 
समुद्र उफन रहा है 
किसको कोसे 
प्रकृत को या खुद को 
पढ़ा था 
जब पृथ्वी पर बोझ बढ़ेगा 
पृथ्वी खुद ठीक कर लेगी 
प्रकृति की बरबादी का हिसाब 
प्रकृति हो तो लेगी 
या तो प्रकृति के साथ हो जाओ 
या फिर प्रकृति का कहर झेलो 
प्रकृति के साथ खेलो 
या प्रकृति से खेलो 
तय हमे करना है
प्रकृति की साथ रहना है
या प्रकृति का प्रकोप सहना है ।।

जिसके भी सामने झुका ये सर

जिसके भी सामने 
झुका ये सर 
वो बस वो ही 
जानता है 
अपना घाव और पीड़ा 
संसद के सामने 
लेटा था कोई 
तब से 
संसद ,उसकी परम्पराएं 
सिसक रही है
सुना है कि 
टूटने वाली है 
वह भव्य संसद 
जिसने देखा है
भारत की आज़ादी का
उगता सूरज
और सारा इतिहास 
अब 
फिर लेट गया कोई 
भारत की आस्था 
और 
विश्वास के सामने ?

हां जीवन इसको कहते है |



जिंदगी 

कब होगी पहचान हमारी 

इतने सालो से है दूरी 

क्या मजबूरी 

जिन्दा तो है 

पर क्या सचमुच 

क्या जीवन इसको कहते है 

पांव में छाले भाव में थिरकन

गले में हिचकी आँख में आंसू  

नीद नहीं और पेट में हलचल 

ना पीछे कुछ ,ना आगे कुछ 

बस अन्धकार है 

क्या जीवन इसको कहते है 

जीवन कब हमको मिलना है 

या फिर ऐसे ही विदा करोगे 

कुछ तो सोचो 

हम दोनों क्या जुदा जुदा है 

कुछ तो बोलो 

और भविष्य के ही पट खोलो 

या फिर कह दो 

हां जीवन इसको ही कहते है | 

जींना है तो हंस कर जी लो 

या फिर दर्द गरल को पी लो 

तेरे हिस्से में बस ये है 

मैं भी तो मजबूर बहुत हूँ 

तेरी खुशियों से दूर बहुत हूँ 

चल अब सो जा 

अच्छे सपनो में आज तो खो जा 

कल फिर मुझसे ही लड़ना है 

हां जीवन इसको कहते है |

संसद में ये बहस है कि बड़ा चोर कौन



संसद में ये बहस है 
कि बड़ा चोर कौन
संसद भी है मौन
सांसद भी मौन
ये बड़ी बहस है
निर्णय करेगा कौन
वोटर हैरान है
मानस परेशान है
मौन संविधान है
ये कौन सा विधान है
सब लोकतंत्र लोकतंत्र
खेल रहे है
हम तठस्थ बन कर
इन्हें झेल रहे है
फिर सवाल अपनी जगह
ही खड़ा हुआ
हमारी तटस्थता से बड़ा हुआ
कौन बड़ा चोर है
कुछ लोग या हम सब
क्योकि हम तठस्थ है
नून तेल में व्यस्त है
देश चाहे रहे या भाड़ में जाये
जहा कही माल हो
मेरे घर में आये
तब क्या सवाल है
काहे का मलाल है
कौन बड़ा चोर है
तोर है या मोर है
पर अब तय ये रहा
हम सब चोर है
या तो जागो खड़े हो
संसद से भी बड़े हो
या फिर सत्ता सौप दो
राजा रजवाड़े को
और खुद को सौंप दो
भेड़ वाले बाडे को
लोकतंत्र का खेल
हो गया है झेलमझेल
या संविधान बांच ले  
पुरसार्थ मांज ले
अपना ज्ञान जाँच ले
और तिरंगा थाम ले
बापू ,सुभाष नाम ले
देश के सवाल पर
जाति ,धर्म छोड़ दो
बस अपने स्वार्थों
का रुख जरा मोड़ दो
संसद जगा दो तुम  
भ्रस्टों को भगा दो तुम  
देश को मजबूत कर
मत डर ,मत डर ,मत डर  ।

किसी के भी सामने पैंट की जिप खोल देते हो?

क्या तुम 
कहीं-भी, किसी के भी सामने 
पैंट की जिप खोल देते हो?
सड़क! बाज़ार! पार्क! 
या अपने घर में भी!

कैसे ऐसा कर पाते हो,
जब बलात्कार करते हो?
कुछ लोग ऐसा कर सकते हैं
तुम्हारे किसी अपने के साथ भी 

क्या यह उस वक़्त मन में आता है?
फिर भी कर लेते सब कुछ!

रोक लो हर उस कदम को जो युद्ध भूमि को जाता हो ।

बहुत साल पहले की बात है 
भारत में महाभारत हुआ था 
भाईयो ने भाईयो को दुत्कारा था 
तो भाईयो ने भाईयो को मारा था 

जमीन लाशों से पटी थी 
बचे थे बच्चे और विधवाएं 
युद्ध भूमि में रोए थे युधिस्ठिर 
किस पर राज करूं? इनपर !.

कल्पी थी तब द्रौपदी 
ये मैने क्या कर दिया 
कैसे आंख मिलाऊं मैं 
अपनो की विधवाओं से 

जब जब भी महाभारत होगा 
यही होता रहेगा तब तब 
जमीं की भूख नहीं मिटेगी 
लाशों से, न प्यास खून से 

इसलिए रोक सको तो रोको 
किसी भी अट्टहास को 
जमीन की भूख को 
और कैसी भी धूत क्रीड़ा को 

तोड़ दो हर उस सपने को 
जो तानाशाह बनाता हो 
रोक लो हर उस कदम को 
जो युद्ध भूमि को जाता हो ।
+++++++++++++++++++

आज वालो से :

ये तो बता कि महाभारत की याद में
कौन सा विभीषिका दिवस मनाए 
महाभारत की याद में कौन सा झंडा फहराये 
महाभारत की याद में कौन सी रूदाली गाए  ?

मैं लिखना चाहता हूं



मैं लिखना चाहता हूं 
फिलिस्तीन और इजराइल पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
यूक्रेन और रूस पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
मणिपुर और मेवात पर 
मैं लिखना चाहता हूं 
दुनिया की हर हिंसा और मौत पर 
अपने आंसुओ कि स्याही बना कर 
लिखना चाहता हूं मैं 
पर ये क्या हिंसा सोचते ही 
आंसू लाल हो गए सुर्ख लाल 
मेरे हाथ कांपने लगे ओठ लरजने लगे 
गिर गई कलम मेरे हाथ से 
और गिर कर बंदूक बन गई 
नही उठा रहा हूं ये बंदूक मैं 
कि
मेरे भीतर का भी जानवर न जाग जाए 
नही लिख रहा में अब कुछ भी 
और आंसू भी तो गायब है 
कौन मेरा कोई सगा मरा है 
मैं क्यों परवाह करू इन सबकी 
जब मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक देगी 
तब उठा लूंगा मैं ये कलम या बंदूक ।

कृष्ण ने उठाया था गोवर्धन



कृष्ण ने उठाया था गोवर्धन
बचाने को उन लोगो को
जिनको खड़ा कर दिया था
सबसे बडी सत्ता के खिलाफ
बस यही तो कहा था कृष्ण ने
कि उसे क्यो भोग लगाते हो
जो खाता ही नही है
जिसे भूख ही नही है
और उदर भी नही है
केवल वास लेता है वो
उसे खिलाओ जिसे भूख है
जिसे जरूरत है
लाओ मुझे खिलाओ, मैं खाऊंगा
कितना कमजोर था देवत्व
की तुरन्त हिल जाता था उनका आसन
और कितना क्रोध भरा था इनमें
कैसे और क्यो देवता माने इन्हें
जो सहज इंसान भी नही
बरसा दिया क्रोध उन सभी पंर
जिन्हें खड़ा किया था कृष्ण ने
सत्य के साथ
पर कृष्ण भी तो कृष्ण थे
प्रेम किया तो खूब किया
राजनीति किया तो खूब किया
युध्द भी खूब करवाया
खूब मरवाया और खूब बचाया
खड़े हो गए यहाँ भी कृष्ण
अपनो के साथ
और उठा लिया गोवर्धन
अपनी छोटी सी उंगली पर
वो छोटी सी उंगली
और उतना बड़ा पहाड़
कैसे टिक पाया होगा
और कैसे उठाया होगा
कितनी दुखी होगी उनकी उंगली
शायद आज भी दर्द कर रही वो उंगली
पर असम्भव को संभव करने का नाम
ही कृष्ण है शायद
लगता है की वो पहाड़ नही
बल्कि पुरुसार्थ रहा होगा
संकल्प रहा होगा इरादा रहा होगा
और अडिगता रही होगी
और आंख में आंख डाल कर
खड़े हो गए होंगे कृष्ण
सबसे आगे उंगली उठाकर चुनौती देते हुए
और उनके संकल्प के सामने
नही टिक पाया होगा इतना उथला से इंद्र
और भाग खड़ा हुआ होगा
खूब तालियां बजी होंगी
नाचे होंगे लोग कृष्ण को उठा कर कंधे पर
गोपिया रीझ गयी होंगी कितनी
और देख रही होंगी कनंखियो से
कृष्ण को
कृष्ण ने भी जरूर देखा होगा
अठखेलियाँ
और मंद मंद मुस्कराए होंगे कृष्ण
पर कृष्ण तुम कितने लंबे विश्राम पर हो
या
अपने गुण,अपनी जिम्मेदारी भूल गयो हो
देखो कितने नकली देव
क्या क्या जुल्म कर रहे है तुम्हारे लोगों पर
तुम्हारी गोपिकाओं तुम्हारे बच्चो से
क्या क्या सलूक हो रहा है कृष्ण
तुम इतने बेदर्द तो नही हो सकते
की लोगो का दर्द ही भूल जाओ
आ जाओ न कृष्ण
भारत ही नही दुनिया को
एक और महाभारत की जरूरत है
और जरूरत हैं आज के संदर्भ में
एक नए ज्ञान और उपदेश की
कब आवोगे कृष्ण
और ये महापर्वत कब उठावोगे
अपने इरादे और न्याय की
उंगली पर ।
आओ न कृष्ण , अब उठ जाओ
आ भी जाओ न कृष्ण ।

सूरज निकल आया

सब बादल छँट गये 
सूरज निकल आया 
उनकी कैद से 
अब सब कुछ 
साफ साफ दिख रहा है 
गद्ढे भी ,पत्थर भी 
रस्ते भी और मंजिल भी ।

इंतजार है इंतजार है इन्तजार है



इंतजार है इंतजार है इन्तजार है 

गर्म हवायें बहुत तपिश थी 
कितनी काली अंधियारी थी 
जुल्म ज़्यादती शोषण कितना 
और ग़ुलामी की ज़ंजीरे 
फिर वो रोटी बटी हर जगह 
गोली और धमाके गूंजे 
बिन तैयारी ही था सब कुछ 
थाली में थे गए परोसे ख़ुद के बेटे 
टुकड़े टुकड़े में ख़त्म हुआ सब 
हाँ गोली तो फेल हो गयी 
पर बोली को जगा गयी थी 
बहुत दिनो की चुप्पी थी फिर 
फिर गूंजा था जोश सभी का 
फिर आया था होश सभी को 
पर बाक़ी वो भूल नही की 
एक लँगोटी वाला आगे 
पीछे पूरा देश चला था 
ये हथियार कुछ नया नया था 
दुनिया हतप्रभ दुश्मन हतप्रभ 
इस हथियार का ना जवाब था 
पर जुल्मों का ना हिसाब था 
करो या मरो का नारा था 
चौरी चौरा ने रोक दिया ये 
फिर न कभी ये दोबारा था 
ना मारेंगे ना मानेगे 
युद्ध का नया ये नारा था 
सत्य अहिंसा का प्रयोग था 
सत्याग्रह और असहयोग था 
जिसका सूरज ना डूबा था 
चली अहिंसा डूब गया वो 
छटा अंधेरा सूरज निकला
आज हवाये कुछ ठंडी थी 
पर बँटवारे की आबाजे 
कान के पर्दे फाड़ रही थी 
धरती अपनी चिंघाड़ रही थी 
फिर फ़क़ीर ही निकला बाहर 
जान हथेली पर फिर लेकर 
कैसे कैसे थी शांति आयी 
पर बहुतो को कहा थी भाई 
वहाँ प्रार्थना हाथ जुड़ा था
आतंकी सामने खड़ा  था
जिसने कल तक साँस न ली थी 
उसने गोली खूब चलायी 
इंगलिश गोली इंगलिश पिस्टल
हाँ कायर को खूब थी भाई 
फिर से सूरज डूब गया था
फिर हवाये गर्म हुयी थी 
आज का मौसम फिर वैसा है 
वही अंधेरा वही कालिमा 
पर फ़क़ीर वो नही यहाँ है 
अब मौसम को कौन बचाए 
कौन उगाए फिर सूरज को 
ठंडी हवाये कौन चलाए 
इंतज़ार है इंतज़ार हाँ इंतज़ार है ।

वो दर्द दे कर चला गया ।



वो दर्द दे कर चला गया ।
ये दर्द है जो गया नहीं 

मैं तो तड़प के रह गया 
उसने लौट कर देखा नहीं 

मैं चीखता ही रह गया 
उसने कुछ भी सुना नहीं 

उसकी याद में बेहाल मैं 
उसने मुझे देखा नहीं 

मेरी निगाह है उसी राह पर 
पर वो इधर मुड़ा नहीं । 

खुश रहना कह के चला गया 
मेरे दर्द की ये दवा नही 

एक दिन सो जाऊंगा मैं 
उसको होगा पता नहीं ।

राम को याद आ गई अपनी अयोध्या

अभी लिखी कविता 

राम को याद आ गई अपनी अयोध्या 
और उतर आए हाल चाल लेने 
देखा उन्होंने हलचल , नारो का शोर 
तो पूछ लिया किसी से 
क्या ये अयोध्या ही है 
जवाब मिला हा तो भागने लगे वापस 
पकड़ लिया नारा लगाती भीड़ ने 
पूछने लगे की कौन हो 
और ये बनवासी का वेश क्यों 
क्या किसी और धर्म के हो 
और कोई कांड करने आए हो वेश बदल कर 
राम बोले मैं राम हूं 
जिसका बहुत जोर से नारा लगा रहे हो
पर इतने गुस्से में क्यों हो तुम लोग 
ऐसा तो मेरा महल भी नही था 
जैसा तुम लोग बना रहे हो 
मुझे महल में रहना कहा पसंद
मैं तो बनवास में खुश था 
क्योंकि महल ने दिया बनवास 
और फिर छीन लिया सीता 
पर तुम लोग मेरी प्रतीमा 
इस महल में क्यों लगा रहे हो 
क्यों बहाया खून तुम लोगो ने और किया झगड़ा 
जबकि अयोध्या का तो मतलब ही था 
जहा युद्ध नही हो 
और क्या आडंबर कर रहे हो 
अरे अगर मैं महल में रहा होता 
तो बस होता एक राजा 
लेकिन बनवासी बनके बन गया में राम 
जिसकी कथा सुनते और सुनाते हो
भीड़ उग्र हुई की जरूर ये है कोई पाखंडी 
कोई हिंदू और राम विरोधी 
पर कोई हाथ उठाता
तभी प्रकट हो गए विराट रूप में हनुमान 
और भीड़ भागने लगी 
की ये कैसा विशाल बानर है 
कोई बोला बंदूक लाओ गोली चलाओ
राम बोले की जब तुम मुझे जानते नही हो 
तो व्यर्थ का ये सब आडंबर क्यों 
जब तुम मुझे मानते नही हो 
तो इसने साल झगड़ा क्यों
अगर जानते होते और मानते होते 
तो मेरा मंदिर और मूर्ति नही बनाते
बल्कि मुझे और हनुमान को अपनाते 
तब दंगा नही करते 
बल्कि राम बनने 
और सबको राम बनाने की कोशिश करते 
तब ये तनाव और शोर नही होता 
शोर और क्रोध मुझे पसंद नही है 
जाओ घरों में जाओ और सोचो 
मुझे मंदिर में नही अपने दिल में बैठाओ 
में वही मिलूंगा
अभी तो मैं चलूंगा 
क्योंकि घुटन हो रही है मुझे 
इस नकली राजनीतिक अयोध्या में 
चलो हनुमान 
और चले गए 
अनंत आकाश में राम और हनुमान भी 
चर्चा अब भी यही थी की कोई मायावी था 
बच के निकल गया 
हमारा कारज निस्फल करने आया था 
और साथ में मायावी बंदर भी लाया था 
वही खड़ा 
एक सचमुच का राम और हनुमान भक्त बोला 
अरे मूर्खो जो सच में सामने था 
और खुद को पाने का मार्ग बता रहा था 
तुम उसे दुत्कार रहे हो  
और जो है ही नही उसे सजा संवार रहे हो ।

आओ न कृष्ण ।

आओ न कृष्ण ।

कृष्ण आज तुम्हारे घर पर हूँ
मथुरा वृंदावन में 
और तुम्हें ढूढ रहा हूँ ,
तुम कहा हो कृष्ण 
ना मथुरा मे मिले 
ना गोवर्धन के आसपास 
ना यमुना के किनारे 
और ना गोकुल ,
ना नन्दगाँव ,बरसाने मे 
तब कहा हो कृष्ण 
निधिवन और मधुवन भी सूना है 
भागकर गये थे द्वारका 
क्या वही कही बिला गये कृष्ण 
पर लोग तो तुम्हे यहा ढूढ रहे है 
कब आवोगे कृष्ण 
या अब तुम हो ही नही 
तुमने रचा था महाभारत 
या तुम सचमुच नही चाहते थे वो युद्द 
तो फिर हुआ कैसे वो युद्ध 
क्या सिर्फ तुम्हारे  उपदेश के लिये 
कि सामने जो भी है 
मत देखो कौन है बस उसे मारो 
और 
लाशो से पटी धरती को देख 
शायद युधिष्ठिर कांप उठे थे 
तुम भी कांपे थे क्या कृष्ण 
तुम तो इश्वर थे 
अवतार थे विष्णू के 
फिर क्यो नही रोक पाये 
अपनो का ही वीभत्स वध 
क्यो नही रोक पाये धूत क्रीड़ा 
क्यो नही रोक पाये एक नेत्रहीन का अपमान 
क्यो नही रोक पाये भरी सभा मे स्त्री का अपमान 
क्यो नही रोक पाये वो वध 
चाहे अभिमन्यु का हो या जयद्रथ का 
वो छल से किया गया वध 
तो क्या तुम भी सर्फ दर्शक थे 
या मिथ्या है कि तुम इश्वर हो 
वरना !
तो क्या तुम इन अनैतिकताओ के 
सारथी बनकर खो बैठे थे अपना देवत्व 
और शक्तिया 
और हो गये थे अशक्त 
तभी तो भागना पड़ा तुम्हे 
अपनी प्यारी नगरी छोडकर 
क्या तभी तुम शिकार हो गये एक बहेलिए के 
अगर हा तो एक बार प्रकट होकर ये बता दो 
ताकी करोड़ों लोगो का भ्रम टूट सके 
अगर ना तो भी प्रकट होकर बता दो 
कि तब क्यो हुआ वो सब 
और एलान कर दो 
कि अब 
वैसा कुछ भी नही होगा कृष्ण
तुम्हारी नगरी मे मुझे इन्तजार है 
तुम्हारे आने और एलान करने का ।
आओ न कृष्ण ।

शनिवार, 17 अगस्त 2024

जब जब भी महाभारत होगा

बहुत साल पहले की बात है 
भारत में महाभारत हुआ था 
भाईयो ने भाईयो को दुत्कारा था 
तो भाईयो ने भाईयो को मारा था 

जमीन लाशों से पटी थी 
बचे थे बच्चे और विधवाएं 
युद्ध भूमि में रोए थे युधिस्ठिर 
किस पर राज करूं? इनपर !.

कल्पी थी तब द्रौपदी 
ये मैने क्या कर दिया 
कैसे आंख मिलाऊं मैं 
अपनो की विधवाओं से 

जब जब भी महाभारत होगा 
यही होता रहेगा तब तब 
जमीं की भूख नहीं मिटेगी 
लाशों से, न प्यास खून से 

इसलिए रोक सको तो रोको 
किसी भी अट्टहास को 
जमीन की भूख को 
और कैसी भी धूत क्रीड़ा को 

तोड़ दो हर उस सपने को 
जो तानाशाह बनाता हो 
रोक लो हर उस कदम को 
जो युद्ध भूमि को जाता हो ।
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आज वालो से :

ये तो बताये कि महाभारत की याद में
कौन सा विभीषिका दिवस मनाए 
महाभारत की याद में कौन सा झंडा फहराये 
महाभारत की याद में कौन सी रूदाली गाए  ?

रविवार, 11 अगस्त 2024

फिर भी कर लेते सब कुछ!

क्या तुम 
कहीं-भी, किसी के भी सामने 
पैंट की जिप खोल देते हो?
सड़क! बाज़ार! पार्क! 
या अपने घर में भी!

कैसे ऐसा कर पाते हो,
जब बलात्कार करते हो?
कुछ लोग ऐसा कर सकते हैं
तुम्हारे किसी अपने के साथ भी 

क्या यह उस वक़्त मन में आता है?
फिर भी कर लेते सब कुछ!

बुधवार, 17 जुलाई 2024

चलो चले वहाँ दूर कही दूर ,जहाँ कुछ आस है कुछ प्यार है और उम्मीदें कुछ ।

चलो चले वहाँ 
दूर कही दूर ,
जहाँ कुछ आस है 
कुछ प्यार है 
और उम्मीदें कुछ ।

छोटे शहरो के रिश्ते

छोटे शहरो के 
शहद जैसे रिश्ते 
बड़े शहरो की 
जमीन पाते ही 
कड़वे हो गये
जो फेविकाल से
जुडे लगते थे 
बुलबुले हो गये ।

बहुत ही अपने जब संपन्न हो जाते है

बहुत ही अपने 
जब संपन्न हो जाते है 
या चढ़ जाते है 
ऊंची पायदाने 
उग आती है 
ऊंची दीवारे 
अपनो के बीच 
रिश्तो मे,भावो मे ।

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

वो सदमे में ही रहा होगा शायद

वो सदमे में ही  रहा होगा शायद

उसने कुछ नहीं कहा होगा शायद

कितना शोर और कितना धुआं था

उसने कुछ देखा सुना होगा शायद

लगी थी हाट सब कुछ बिक रहा था

कुछ छुपा और कुछ दिख रहा था 

वे सब आये थे जो सब खरीद लेते है

उनसे कुछ भी ना बचा होगा शायद

जो लोग जीत कर घरो को लौटे है

वहा तों  जश्न हो रहा होगा शायद  .

उधर वो जो ख़ाली उदास बैठा है 

वो मेले में लुट गया होगा शायद

है मेला या दंगा हमारा भ्रम तों नहीं

घर नहीं कही ठहर गया होगा शायद

इससे अच्छा तों अपना  पनघट था

ओ फिसलने से डर गया होगा शायद

समंदर तों हमेशा ही इतना गहरा था

किनारे पर धोखा हुआ होगा शायद|

सीख लिया समंदर की सवारी करना

कहा पहुंचोगे ना सोचा होगा शायद .

अन्दर इतना तूफ़ान सा क्यो है

अन्दर इतना तूफ़ान सा क्यो है 
मन इतना परेशांन सा क्यो  है 
न कोई बात है,न कोई भाव ही 
दर्द इतना मेहरबान सा क्यो है | 

दर्द मन में,दिमाग में,लहू में भी 
दर्द तन में,दिल औ वजूद में भी 
दर्द साँस ,धड़कन औ रूह में भी 
ये दर्द हुआ आसमान सा क्यूं है |