सोमवार, 6 मई 2013

तुम सूरज हो ? कैसे सूरज ?

सूरज !
तुम सूरज हो ?
कैसे सूरज ?
किसके सूरज ?
तुम जब पूरब से उठते हो 
हमको तुम रोशन करते हो
पर ताप बहुत देते हो 
जिनके पास नहीं है छाया
उनको कितना झुलसाते हो
थोडा पच्छिम को क्या जाते
जाकर वही डूब जाते हो
पूरब पच्छिम का ये अंतर
तुमको भी मालूम नहीं था
पर जब तुम ऊपर होते हो
कितना तुम्हे घमंड होता है
आँख नहीं तुम पर उठती है
तुमने सोचा ,तुम न होगे
तो क्या होगा ?
दुनिया तब कैसे देखेगी
पर देखा तुमने
नन्हा दीपक खड़ा हो गया
तन कर औ, धीरे से बोला
मैं तो हूँ ना ,जाओ सूरज
अन्धकार अब मैं तोडूंगा
सूरज हो या व्यक्ति हो
कोई अंतिम नहीं यहाँ पर 
कुछ न रुकता किसी के कारण
सूरज हो या व्यक्ति हो
घमंड सबका टूटा है
तुम सूरज हो ,कैसे सूरज
सूरज का होना क्या होना
जब गिर जाते हो तुम भी
जाकर उस पच्छिम में
जिसके पीछे जाकर 
इन्सां भी भटका है
तो क्या फर्क है तुममे औ
इन्साँ में सूरज
तुम सूरज हो ,कैसे सूरज ।