रविवार, 25 जुलाई 2021

ईश्वर कैसा होता है

कितने महान है वो लोग
जो पत्थरो से सर मारते है 
और 
मानते है कि  
पत्थर चमत्कार करता है 
हा 
सच है की पहली आग 
लकड़ियो की रगड़ से 
या 
पत्थरो के टकराने से ही पैदा हुई 
पर 
उसका कारण तो वैज्ञानिक है 
उसमे चमत्कार कुछ भी नही 
और 
किसी अन्य लोक की
ताकत भी कुछ भी नही
मेरी दुवा है आप सबको कि 
सर टकराते रहो 
पर जरा सम्हाल कर
सर से खूँन निकलता है और
फिर उसे रोकने को
दवाई ,मरहम पट्टी 
और 
डाक्टर की जरूरत पडती है 
अगर अधिक निकल गया 
तो 
शायद कही और जाकर
हो सकता है 
दर्शन हो ही जाता हो परमात्मा का
पर तय नही 
क्योकि 
किसी ने लौट कर बताया नही 
कि ईश्वर कैसा होता है ।

जमाने जैसा हो गया हूँ

मिटा दिए है वो तमाम नम्बर 
जो नही उठे मेरी ज़रूरत में 
या 
यूँ ही जब हाल जानना चाहा 
भुला दिए है तमाम वो नाम 
जिन्हें मैं याद नही आया कब से 
वो चेहरे भी धुंधले कर दिए मैंने
जिन्होंने फेर ली निगाहें मुझसे 
हा 
अब मैं भी जमाने जैसा हो गया हूँ ?

हम कुम्भकर्ण है

लोकतंत्र खत्म हो जाये
हमको क्या 
संविधान खत्म हो जाये
हमको क्या  
तानाशाही आ जाये
हमको क्या 
जुबान सिल दिया जाये
हमको क्या 
हम भारत है 
पहले भी गुलाम हो गए
क्या फर्क पडा 
आज़ादी के लिए जो लड़े मरे
हमको क्या 
हमे बस थोडा सा खाना
थोडे से कपडे 
और 
एक कमरा मिल जाये 
और 
हम टीवी देखते खाते
सोते उसी मे दफन हो जाये
अभी हम सो रहे है
आवाज देकर 
जगावो मत हमे
हम इन्सांन नही कुम्भकर्ण है  ।

शनिवार, 17 जुलाई 2021

जहाँ कुछ प्यार है

चलो चले वहाँ 
दूर कही दूर ,
जहाँ कुछ आस है 
कुछ प्यार है 
और उम्मीदें कुछ ।

रिश्ते या बुलबुले

छोटे शहरो के 
शहद जैसे रिश्ते 
बड़े शहरो की 
जमीन पाते ही 
कड़वे हो गये
जो फेविकाल से
जुडे लगते थे 
बुलबुले हो गये ।

दीवारे

बहुत ही अपने 
जब संपन्न हो जाते है 
या चढ़ जाते है 
ऊंची पायदाने 
उग आती है 
ऊंची दीवारे 
अपनो के बीच 
रिश्तो मे,भावो मे ।

छोटे शहर और बड़े शहर

वही लोग 
जो छोटे शहरो मे  
कितने घनिष्ट 
और 
कितने अपने लगते है 
क्योकी खूब मिलते है 
सुख और दुख मे 
पर 
बड़े शहर मे आते ही 
बहुत दूर हो जाते है 
और बिला जाते है 
सारे रिश्ते और भावनायें 
नही मिलते सालो साल 
या 
संपन्न ज्यादा हो जाये 
तो 
छोटे शहर मे भी 
दीवारे उग जाती है 
रिश्तो के बीच ।

बुधवार, 14 जुलाई 2021

आसमान कुछ कह रहा है

आसमान कुछ कह रहा है 
अपनी बोली अपनी भाषा में 
ज़रा सुनिए इसका गीत 
इसका संगीत 
कितना मनभावन है 
कितना शीतल है 
इंतज़ार था इसी का 
कितने दिन से 
पृथ्वी को और हमको भी 
कि 
बादल झूम कर आए 
खूब झूम कर गाए 
हम सब झूम कर नहाए 
और पृथ्वी भी तृप्त हो जाए । 


शुक्रवार, 2 जुलाई 2021