शनिवार, 14 नवंबर 2020

क्रांति का ये नया अंदाज होगा

ये देश जागीर है किसकी 
जनता की ,सत्ता की 
या 
पूंजीपति नौकरशाहो की 
तय होना अभी भी बाकी 
बहाता है किसान पसीना 
और 
मोटा हों जाता है बनिया
उसके श्रम पर 
व्यापारी और बिचौलिया 
बहाता है मजदूर पसीना 
और 
तिजोरी भरती इनकी 
सीमा पर मरता जवान है 
और 
सीना नेता का नपता है 
नेता नेता सब जपता है 
आखिर कौन है 
मुल्क का मालिक 
ये सब 
या 
फिर सब ,सारी जनता 
क्यों नहीं मिलता सबको सबका वाजिब हक 
कब बदलेगी 
ये सड़ी व्यवस्था 
और 
सचमुच का लोकतंत्र मिलेगा 
संभव बराबर सब होंगे जब 
समान शिक्षा सबको मिलेगी 
सामान चिकित्सा होगी सबको 
और 
सामान अवसर भी होगा तब
जरूरत है सम्पूर्ण क्रांति की 
गाँधी के रस्ते पर चल कर 
रक्तहीन हो पर समीचीन हो 
फैसलाकुन क्रांति 
कब आएगी 
कौन करेगा 
मैं निकलूं तुम भी निकलो 
सबको ही हम साथ मिला 
चलो हाथ से हाथ मिला ले 
जो शोषक है मिलकर उनको 
इस क्रांति का मर्म बता दे 
हर अंतिम का दर्द दिखा दे 
शायद वो भी समझ ही जाये 
वो भी हमसे हाथ मिलाये
वर्ना हमको तो उठना ही 
हर अंतिम को तो जगना ही 
मुट्ठी भींच अधिकार मांग लो 
हो सबका ही प्यार मांग लो 
वर्ना हक तो लेना ही है 
जिनके पास है देना ही है 
पांच गाँव जब न देता हो 
लड़कर अपना हिस्सा लेना 
पर उसका उसको दे देना 
नयी क्रांति का आगाज होगा 
सबका अपना कल भी होगा 
सबका अपना आज होगा 
क्रांति का ये नया अंदाज होगा

दीपक बन जलते रहना है ।



कहा अकेला हूँ मैं देखो
सूरज चाँद सितारे  मेरे
चिड़ियों का कलरव है मेरा
धूप है मेरी धूल है मेरी
बादल मेरे बारिश मेरी
घर की गर वीरानी मेरी
तो सडंको के शोर भी मेरे
बाज़ारों की हलचल मेरी
और नाचता मोर भी मेरा
छत मेरी दीवारें मेरी
घर में जो है सारे मेरे
बातें मेरी और राते मेरी
वादे मेरे और यादें मेरी
और किसी को क्या चाहिए
इतना तो सब कुछ घेरे है
जीवन क्या है बस डेरा है
आज यहाँ है और कही कल
कुछ साँसों का बस फेरा है
सभी अकेले ही आते है
सभी अकेले ही जाते है
कौन अकेला नहीं यह पर
भीड़ में है पर बहुत अकेले
मैं अकेला घिरा हूँ कितना
इतना सब कुछ पास है मेरे
लोगों के जीवन में देखो
विकट अंधेरे बहुत अंधेरे
उन सबसे तो मैं अच्छा हूँ
जीवन को अब क्या चाहिए
थोड़ी ख़ुशियाँ थोड़ी साँसे
मैं तो अब भी एक बच्चा हूँ
जल्द बड़ा भी हो जाऊँगा
फिर से खड़ा भी हो जाऊँगा
कैसा अकेला कौन अकेला
दूर खड़ा अब मौन अकेला
मेरे गीत और मेरे ठहाके
दूर रुकेंगे कही पे जाके
तब तक तो चलते रहना है
दीपक बन जलते रहना है ।

सोमवार, 9 नवंबर 2020

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

वो अकेले बुजुर्ग पड़ोसी

वो अकेले बुजुर्ग पडोसी 
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मेरे पड़ोस में रहते है

वो अकेले बुजुर्ग इंसान

बहुत दिनो क्या सालो से

जानता हूँ उन्हें मैं

और

बहुत अच्छी है उनसे पहचान

पहले उनका घर भरा भरा था

फिर

धीरे धीरे खाली होता चला गया

कुछ चाहे और कुछ अनचाहे

अचांनक अकेले हो गए वो 
कभी बैठने लगे मेरे साथ

और बताने लगे

अपनी पूरी बात

पहले

उनके पास बहुत लोग आते थे

जब वो कुछ थे

और बहुत लोग

उनकी उंगली पकड़ कर

क्या क्या हो गए

तब तो हालत ये थी

किसी के घर मौत भी

हुयी हो

तो फोन करता था

की आप जल्दी आइये

अर्थी उठने वाली है

आप का ही इन्तजार है

शादी हो या कुछ

कितने लोग बुलाते थे

वो लोग जो कहते थे कि 

आप का ज्ञान रौशनी देता है

और आप के बिना तो

कार्यक्रम हो ही नहीं

सकता

पर दिन बदलते ही वो सब कही बिला गए

अब कोई नहीं आता 
कोई नहीं बुलाता

सबको बना दिया

पर ये जहा के तहा रह

गए

जब कोई उनका अपना

धोखा देता या

कर देता पीठ पर वार

तो ये रहते थे बहुत दुखी

और बेक़रार

फिर झाड कर गम की धूल

लग जाते थे फिर उसी काम में

पर

तमाम झटको से भी नहीं टूटे थे वो

मैने देखा है

बहुत ही संघर्ष किया उन्होने

पर जब अपने साथ थे

क्या मजाल उनके चेहरे पर

शिकन भी आई हो कभी

लेकिन

बहुत उदासी पसर आई उनकी आंखो मे

जब से अकेले हो गए वो

उनके बच्चे भी चले गए दूर

अपनी अपनी जरूरी वजहों से

उनकी सहमती और ख़ुशी के साथ

बहुत प्यार करते है

उनके बच्चे उन्हे और उनकी चिंता भी 

पर मजबूरिया अपनी जगह है

ढाल लिया इस बुजुर्ग ने खुद को हालात में

अक्सर देखता हूँ

उन्हें सुबह बाहर निकल कर 
लान से

तुलसी की पत्तियां तोड़ते

बताते है

की उनसे अच्छी चाय

कोई नहीं बना सकता है

सेंक लेते है ब्रेड और

काट लेते है कोई फल

हो जाता है उनका नाश्ता

बताते है

की वो बहुत हेल्दी नाश्ता करते है

नौकर चाकर क्या खिलाएंगे ऐसा

अक्सर दिखते है कपडे फैलाते और उतारते

मैंने कहा 
क्यों खुद करते है ये सब

और इस उम्र में

बोले कसरत भी है 
और पैसे की बचत भी

मैंने पुछा की आप को क्या कमी

तो बस मुस्करा कर रह गए

मंगाते है खाना है कभी कभी

शायद दो दिन में एक बार

मैंने पूछा की आप को तो

ताज़ा और गर्म खाने की आदत थी

बोले खाना ज्यादा होता है

और

फेंकना सिद्धांत के खिलाफ है

कितनो को तो ये भी नहीं मिलता है

और

क्या बिगड़ता है खाने का फ्रिज में

अंग्रेज तो बहुत दिन तक फ्रिज का ही खाते है

मैंने पुछा की पहले तो आप कहते थे

रोज नए नए रेस्टोरेंट में जाऊंगा

और

नए नए पकवान खाऊंगा

तो बोले तबियत का भी ध्यान रखना है न

और

अकेले जाना अच्छा भी नहीं लगता

और रोज जाने मे खर्चा भी कितना हो जायेगा

कभी कभी बहुत खुश होते है

जब आने वाला होता है उनका कोई बच्चा

घर की सफाई ,बिस्तर की चादर

और सब तैयारी में लगे रहते है

कई दिन तक

फिर जब तक बच्चे साथ होते है

दिखते ही नहीं है बाहर कई दिन

बच्चो के जाने के बाद कई दिनों तक

कुछ गुनगुनाते रहते है

और

बच्चो के यहां से आने के बाद भी

कई दिन उदास होते है

तब पूछना पड़ता है क्या हुआ

बोले की एक तो अकेला होने के कारण

न आराम और न चैन से बाथरूम ही जा पाते है

बज जाती है तभी घंटी

कौन देखे की कौन है

और 
हमेशा कुछ न कुछ हो जाता है

कभी दूध गर्म करते है

और बाहर कोई आ गया

और दूध गिर जाता है पूरा 
चाय भी

कभी सब्जी जल जाती है

तो कभी रोटी खाक हो जाती है

पुछा की फिर क्या करते है आप

बोले अगर दिन में होता है 
तब तो हो जाता है

पर जब रात में जल जाती है

तो खा लेते है मुट्ठी भर चना

या अगर ब्रेड है तो वो

नहीं तो एक कप दूध पीकर सो जाते है

और

बोले उस दिन सुबह बहुत ही अच्छा लगता है

हल्का हल्का

पर प्लीस मेरे बच्चो से कभी कह मत देना

की मैं भूखा भी सोता हूँ 
वो सब वैसे ही मेरी बहुत चिंता करते है

परेशांन रहने लगेंगे

उन लोगो के खुश रहने

और मस्त रहने के दिन है

उस दिन बहुत दुखी थे

मैंने पुछा क्या हुआ

बोले

पता नहीं मैंने पिछले जन्म में

कितनो के साथ बुरा किया है

की जिनके लिए सब कुछ करता हूँ

वो सब पीठ पर वार कर चले जाते है

जाने दो पिछले जन्म का कर्जा ही चुका रहा हूँ

और

फिर जोर से ठठाकर हँसे

और चल दिए

मैंने कहा कहा चले

बोले किसी और को ढूढने

जिसका पिछले जन्म का कर्जा हो

कभी कभी जब बीमार हो जाते है

तो दिखलाई नहीं पड़ते

मिले तो पुछा क्या हो गया था

बोले कुछ नहीं

बताओ और क्या हो रहा है

बहुत कुरेदा

तो बोले मेरा दुःख तो

कोई बाँट नहीं सकता

लेकिन मैं अपने थोड़े से सुख

तो बाँट सकता हूँ

आइये कुछ अच्छी बाते करे

एक दिन कुच्छ ज्यादा परेशांन थे

मैंने पुछा आज क्या हुआ

बोले एक चिंता है

मुझे कुछ हो गया तो

दरवाजा तोडना पड़ेगा घर का

कितनी दिक्कत होगी न  बच्चो को 
कितने परेशान हो जायेंगे मेरे बच्चे

और खुला रखना भी मुश्किल है

और

उनकी आँखों से टपक गया कुछ

बाँध जो रुका था काफी दिनों से

शायद टूटना ही चाहता था

कि

वो इधर उधर देखने लगे

और खांसने लगे

खुद को रोकने को

और मुझे भरमाने को

फिर धीरे से उठ कर चले गए

कई दिनों से नहीं दिखे है वो बुजुर्ग

मुझे भी उनकी आदत पड़ गयी है

मैं लगातार ढूढ़ रहा हूँ

और

झांक आता हूँ उनके घर की तरफ

लेकिन बस सन्नाटा ही सन्नाटा 

मिलेंगे तो पूछुंगा उनके इधर के नए अनुभव

और

सुनुगा उनका खोखला ठहाका

और फिर मैं भी सर झुका कर

कुछ छुपा कर चला जाऊंगा

अपने घर की तरफ

जहा मेरे अपने इंतजार में होते है ।

रोज की जिंदगी और ये घर ।=================

रोज की जिंदगी और ये घर ।
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एक घर है
जिसके बाहर एक गेट 
और 
उससे बाहर मैं तभी निकलता हूँ 
जब शहर मे कही जाना हो 
या डॉक्टर के यहा जाने की मजबुरी 
फिर एक लान है 
जहा अब कभी नही बैठता 
किसी के जाने के बाद 
फिर एक बरामदा 
वहाँ भी आखिरी बार तब बैठा था 
जब बेटियाँ घर पर थी 
और बारिश हुई थी 
और 
मेरा शौक बारिश होने पर 
बरामदे में बैठ कर हलुवा 
और गर्मागर्म पकौड़ियां खाना 
और अदरक की चाय 
वो पूरा हुआ था आखिरी दिन 
हा
ड्रॉईंग रूम जरूर गुलजार रहता है 
वही बीतता है ज्यादा समय 
सामने टी वी , मेज पर लैपटॉप 
और 
वो खिड़की 
जिससे बाहर आते जाते लोग 
एहसास कराते है 
की आसपास इंसान और भी है 
अंदर मेरा प्रिय टी कार्नर 
जहा सुबह क्या 
दोपहर तक बीत जाती है 
नाश्ते चाय ,अखबार ,फोन 
और 
फेसबुक ट्विटर और ब्लॉगर में 
पता नही चलता 
कैसे बिना नहाए शाम हो जाती है 
उस कोने में 
बच्चो का कमरा न जाये तो अच्छा 
अब कौन याद करे और ! 
रसोई में जाना जरूरी है 
और बाथरूम में भी 
थोड़ा लेट लो वाकर पर 
और खुद को बेवकूफ बना लो 
की हमने भी फिटनेस किया 
पांच बदाम भी खा ही लो 
कपड़े गंदे हो गए मशीन है 
बस डालना और निकलना ही 
नाश्ता और खाना 
और 
कुछ अबूझ लिखने की कोशिश 
घृणा हो गयी ज्ञान और किताबो से 
जिंदगी बिगाड़ दिया इन्होंने 
पर बेमन से पढने की कोशिश 
कभी कभी आ जाता है कोई 
भूला भटका , 
उसकी और अपनी चाय 
और 
बिना विषय के समय काटना 
लो हो गयी शाम 
और 
कुछ पेट मे भी चला ही जाए 
बिस्तर कितनी अच्छी चीज है 
नीद नही आ रही लिख ही दे कुछ 
नीद दवाई भी क्या ईजाद किया है 
जीभ के नीचे दबावो 
और सो जाओ बेफिकर 
अब कल की कल देखेंगे 
छोटा पडने वाला घर 
किंतना बड़ा हो गया है
और 
छोटे से दिन हफ्ते जैसे हो गए है 
पर बीत जाता है हर दिन भी 
और घर के कोने में सिमट कर 
भूल जाती है बाहरी दीवारे ,कमरे 
आज भी बीत गया एक दिन 
और रीत गया जिंदगी से भी कुछ 
कही से बजी कोई पायल 
नही रात को एक बजे का भ्रम 
सो जाता हूँ 
ऐसे ही कल के इंतजार में अकेला ।
हा नितांत अकेला 
बस छत ,दीवारे और सन्नाटा 
ओढ़कर ।