सोमवार, 29 अप्रैल 2019

दर्द है कि जाता ही नही

दर्द है
कि जाता ही नही
न मन का न तन का
न अपनी जलन का
न अपनी लगन का
न अपने कहन का
न उनके सुनन का
न उनके कहन का
न अपने सुनन का
न दिल की व्यथा का
न अपनी कथा का
न यादो का अपने
न वादो का अपने
इरादो का अपने
दवा भी नही है
दुवा भी नही है
ये किससे बताये
किसे हम सुनाये
आँसू छुपाये
या हिचकी दबाए
कटी जीभ अपनी
निकलता जो खू है
ये कैसे छुपाये
न आहो मे कोई
न चाहो मे कोई
निगाहो मे कोई
न राहो मे कोई
ये गम हम दबाए
कहा तक अब जाये
ये दर्द जो खू मे
कतरे कतरे लहू मे
चमड़ी के अंदर
औ चमड़ी के बाहर
ये जाता नही है ।

रविवार, 7 अप्रैल 2019

अभिशप्त सब कुछ

अभिशप्त आत्माएं
अभिशप्त वजूद
अभिशप्त वादे
अभिशप्त इरादे
अभिशप्त इच्छाये
अभिशप्त भविष्य
अभिशप्त रिश्ते
अभिशप्त भावनाए
सपोले ही चहुँ ओर
आस्तीन कैसे बचाए
अभिशप्त सब कुछ
ये सब
जाकर किसे दिखाये ।

वाह क्या खूब जिन्दगी है ।

जिन्दगी
खूबसूरत और खुशबूदार
फूलो की
रंग बिरंगी क्यारी है ।
कुछ पौधो मे काँटे है
तो क्या हुआ ?
रंग अपने जीवन मे भरो
और
खुशबू अपने दिलो-दिमाग मे ।
वाह क्या खूब जिन्दगी है ।

सब बादल छँट गये

सब बादल छँट गये
सूरज निकल आया
उनकी कैद से
अब सब कुछ
साफ साफ दिख रहा है
गद्ढे भी ,पत्थर भी
रस्ते भी और मंजिल भी ।

शनिवार, 6 अप्रैल 2019

ऐसा क्यो होता है अक्सर

ऐसा क्यो होता है अक्सर
कुछ लोगो के साथ
कि
जिस जमीन पर आप
बुनियाद बनाना चाहते है
वही दलदल निकल आती है
और
धंस जाता है खुद का वजूद
जिस पेड़ को मजबूत समझ
छप्पर का आधार बनाना चाहते है
वही इतना कमजोर निकल जाता है
कि
तनिक सा बोझ पडते ही
लचक जाता है
और
सब कुछ जमीदोज हो जाता है
पहाडी पर चढ़ते वक्त
पहला ही पत्थर
कमजोर निकल जाता है
और
पहले ही कदम पर घायल कर
चढाई छोड़ने को मजबूर कर देता है ।
खैर
हिम्मत तब भी नही हारते लोग
और
जारी रखते है खोज
एक मजबूत ,पुख्ता जमीन की
पूरी तरह लम्बे समय तक
मजबूती से खड़े रहने वाले पेड़ की
और
पहाडी पर घायल होकर भी
अन्तिम चोटी तक पहुचने के
सही मार्ग की ।