गुरुवार, 30 मार्च 2023

पत्थरों को खूब खिलाओ अगर वो खा सके ?

क्या हम एक दिया उन घरों में जला सकते है 
जहा अंधेरा है हमेशा से 
और 
रोशनी पहुंची ही नहीं आजतक ?
क्या हम उनका पेट भरने में मदद कर सकते है 
जो बीनते है कूड़े से खाना जानवरो के साथ 
मनुष्य होकर भी 
जो चाटते है 
हमारी फेंकी हुई पत्तल 
हमारे जैसा और उसी की संतान होकर 
जिसकी हम है ? 
फिर जब कोई ऐसा न बचे 
तो 
पत्थरों और दीवारों पर खूब रोशनी करो 
पत्थरों को खूब खिलाओ अगर वो खा सके ?

दोनो कुत्ते

लोग आवारा कुत्तों से बहुत परेशान है :
आवारा कुत्तों से जो जानवर तो है ही 
मनुष्यो में भी हो गए है । 
चाहे जहा, चाहे जिसको 
चाहे जैसे काट लेते है ,
और कपड़े फाड़ देते है, 
देखा होगा कई वीडियो 
बच्चो बच्चियों को झिझोड़ते हुए 
दोनो तरह के कुत्तों का  
और 
दोनो का ही कोई इलाज नहीं  है 
क्योंकि ये सब कुत्ते हमारी पैदाइश है ।

उनको उनके घर में फिर से बसाए

अब क्यों परेशान है हम बंदरो से 
की वो उजाडे जा रहे है 
हमारा बगीचा हमारी फुलवारी
खा जाते है हमारी चीज छीन कर 
काट लेते है हमको आक्रमण कर 
हमने भी तो उजाड़ दिए उनके घर 
उनका बगीचा और जंगल 
खत्म कर दिया उनके भोजन के साधन  
बदर वही कर रहे है हमारे साथ 
जो हमने किया है लगातार उनके साथ 
आज बंदर है तो कल बाकी जानवर भी 
आक्रमण करेंगे इंसानी आबादी पर 
उनसे परेशान है 
तो 
उनको उनके घर में फिर से बसाए 
उनके लिए फिर से जंगल उगाए ।

सोमवार, 27 मार्च 2023

सूरज कल खुद ही मुस्करायेगा ।

सूरज कल खुद ही मुस्करायेगा ।

चलो हँसते है 
अपनी बेबसी पर 
किसी की सिसकियो पर 
चलो हसते है 
किसी की मौत पर 
किसी की बर्बादियो पर 
चलो हसते है 
उस बेटी की लूटी आबरू  पर 
उस माँ के गये सहारे पर 
चलो हँसते है 
उस बेवा के रूदन पर 
बहन की सूनी कलाईयो  पर 
चलो हसते है 
पथराई आंखो पर पिता की 
बच्चों के अंधेरे  मुस्तकबिल पर 
क्योकी हंसना ही जिंदगी है ।
यही गर फ़लसफ़ा है जिंदगी का 
तो ऐसे फलसफे को गर्त कर दो 
उठ सको तो उठो
चल सको तो चलो 
वर्ना घर से ही हुंकार भरो 
हर बेबसी और हर रूदन पर 
हर जुल्म पर जो ढाये जा रहे हो 
और हर कफन पर जो यूँ ही पहनाए जा रहे हो ।
अगर इन्सान हो तो उट्ठो 
हर गली से हर खेत और खलिहान से उट्ठो 
मुट्ठियाँ बांध लो और चल पडो 
बस 
जुल्म खुद ब खुद मिट जायेगा
अंधेरा खुद ब खुद छट जायेगा 
सूरज कल खुद ही मुस्करायेगा ।

शुक्रवार, 24 मार्च 2023

सिर्फ सन्नाटा और हिचकी ।

आहट सुनाई पड़ रही है ?
आपातकाल की 
या समय पूर्व चुनाव की 
और 
किसी भी तरह ,किसी भी हालत में 
जीत ,जीत और केवल जीत 
ताकि फिर सब स्थाई हो सके
मनमानापन हो या तानाशाही 
कोई सामने नहीं हो 
ना विपक्ष ,न संविधान और लोकतंत्र 
महात्मा से लेकर शहीदे आजम तक 
नेता जी से लेकर बिस्मिल तक 
सब की आत्माएं 
बस टुकुर टुकुर ताक रही है 
पर आंखो में आसू के कारण 
कुछ साफ साफ दिख नही रहा है 
तो एक दूसरे से पूछ रहे है 
कि कुछ देखा क्या कुछ सुना क्या 
अपने भारत का हाल 
पर जवाब में सिर्फ सन्नाटा और हिचकी ।

सोमवार, 20 मार्च 2023

सबको भेड़ बनाओ

किसी भी तरह से 
सबको डराओ 
क्योकी 
जो नही डरते 
वो सत्ता के लिए 
खतरा बन जाते है 
और 
डरे हुये लोग 
गुलामी मान लेते है 
बस यूँ ही 
इसलिये ऐसे या वैसे 
कैसे भी 
आवाम को डराओ 
उन्हे जीता जागता 
इन्सान मत रहने दो 
उन्हे 
हांके पर चलने वाली 
भेडे बनाओ 
और फिर जैसा चाहो
वैसा राज चलाओ ।

रविवार, 19 मार्च 2023

पकिस्तान के नाम पत्र आओ बैठो बात करे

पकिस्तान के नाम पत्र 

छोटी छोटी बाते छोडो 
ओछी हरकत 
बिना बात की नफरत छोडो 
आओ बैठो बात करे
सैतालिस से बहुत लड़ लिया 
हमसे नफरत बहुत कर लिया ,
आओ नई शुरुआत करे
  
इन सालो में क्या पाया है 
अमरीका की भीख पर जीना 
पाक बना क्या इसीलिए था   
आजादी से अब तक केवल 
मौत और बन्दूक का शासन 
देश बटा क्या इसीलिए था 
बटवारे से घटे ही हो तुम 
और हमने खुद आकाश छू लिया 
सारी दुनिया मान रही है
बंदूके दे भेज रहे अपने बच्चे 
की वे मेरे बच्चो को मारे 
बटवारा क्या इसीलिए था
  
याद करो हम लड़े रहे थे अंग्रेजो से 
हिन्दू ,मुस्लिम सिख, ईसाई 
तब  क्या सपने थे
उन अंग्रेजो के पैसो से 
हर बार लड़े तुम मुह की खाई 
पर मरने वाले दोनों ही अपने थे
तुमने तों घायल कर डाला 
अपने तन को मेरे मन को 
क्या मिला तुम्हे बस कुछ डालर
गर ना लड़ते ना बटते 
दोनों बाजू ना कटते 
कितनी ताकत होती 
अपनी क्या कहने थे

टैंक नहीं उस पैसे से 
नहरे बांध और टंकी बनाये 
जो प्यासे हो खेत औ घर 
पानी पहुचाये
जो भी पैसा खर्च हो रहा  
सेनाओ पर 
इससे बनें स्कूल फैक्ट्री 
जीवन को आसान बनाये
भूख गरीबी और बेकारी 
उधर है तो इधर भी 
दुनिया की सारी बीमारी 
उधर है तों इधर भी
लड़ना छोडो 
आओ मिल कर इन्हें भगाए 
जर्मनी ने तोड़ दिया 
अब हम भी दीवार गिराए

हमने हाथ बढाया है 
दिल से आवाज लगाया है 
तय कर के आओ 
आओ मिल कर  बात करे 
अब न समय बर्बाद करे ।

इसीलिए आज बाजार में हूँ ।

इसीलिए आज बाजार में हूँ ।

सुनो सुनो सुनो ,
कोई मुझे भी खरीद लो 
जी बिकाऊ हूँ मैं 
जैसा भी हूँ
पर आज बाजार में हूँ 
बाजार का युग है 
इतना खोटा भी नहीं कि 
मेरी कुछ भी कीमत न ही 
बोली तो लगाओ 
कही से तो शुरू करो 
चलो तुम रोटी से शुरू करो 
चुपड़ी नहीं रूखी ही सही 
और तुम कपडे से 
उतरन भी चलेगी 
तुम नीद की जगह दोगे 
पर नीद कौन देगा 
पर बोलो ,जो चाहो बोलो 
इतना सस्ता इमांन कहा मिलेगा 
इतना सस्ता ज्ञान कहा मिलेगा 
और 
आज इंसान कहा मिलेगा 
तो बताओ कौन खरीदेगा मुझे 
जी हा
कसम खुदा की मैं बाजार में हूँ 
खरीद रहे हो बेपनाह हुस्न 
लोगो के इमांन 
लोगो के रहनुमा 
तो मुझमे क्या बुराई है 
इस ईमान से डर लगता है 
या फिर इंसान से डर लगता है 
अरे नहीं 
बिकाऊ है आज ये भी 
कोई तो बोलो 
मेरे इंसान और ईमान को 
कोई तो सिक्को में तोलो 
कोई नहीं बोलोगे 
तो रो पडूंगा मैं बेबसी पर 
फिर 
आंसू तो बिलकूल नहीं खरीदोगे 
अब हुस्न कहा से लाऊँ 
मैं भी दल्ला हो सकता हूँ 
ये कैसे समझाऊँ 
या फिर ये बनी हुयी इमेज 
मिटा के कैसे आऊँ 
तो उसके लिए 
किस लॉन्ड्री में जाऊं ।
कोई तो खरीद लो न मुझे ।
जी हां मैं आज बिकाऊ हूँ 
और 
इसीलिए आज बाजार में हूँ ।
और 
बिकने वाले हर इश्तहार में हूँ ।

सारे रंगों का नाम ही हिंदुस्तान है

सभी रंग अपने है 
वो लाल हो ,केसरिया हो 
हरा हो या नीला 
बैगनी हो या पीला 
या जो भी हो 
जिसे जो पसंद 
वो लगालो 
दूसरे को पसंद 
तो उसपर भी डालो 
पर 
उसमें कोई खतरनाक चीज न हो 
और न इरादे हो खतरनाक 
जी हां 
खूब खेलो रंग और गुलाल 
पर न हो धरती खून से लाल 
ऐसा समाज बना लो 
जी हां 
ये इतने सारे रंगों का नाम ही 
हिंदुस्तान है 
जहा एक ही रंग है वो मिस्र ,
अफगानिस्तान और पाकिस्तान है ।
क्या वो एक रंग पसंद है 
या 
ये हिंदुस्तानियत का रंगारंग 
आप गले मिलो 
पर नफरत के खंजर को 
फेंक कर आओ 
हां आओ 
सभी रंगों को मिला कर 
होली मनाओ

वो जब वो नही रहे-

वो जब वो नही रहे-                                                     

उन्होने पढाया था 
हज़ारो को 
इसलिये बस गये थे 
उसी शहर मे 
और
उनकी कविताओ पर 
कितनी तालिया बजती थी 
और
उनके भाषण 
लगता था क्रांती कर देंगे 
और
वो कितना अच्छा अभिनय 
करता था / करती थी 
फिर ये सब गुम हो गये 
किसी ने नही देखा 
उसके दरवाजे की तरफ कभी 
जब वो नही रहे ओह्दो पर 
एक दिन 
जब बदबू परेशान करने लगी 
तब पडोसी परेशान हुये 
और 
शिकायत किया पुलिस को 
तब दरवाजा तोड 
निकाला गया कई दिन की 
सडी लाश को 
उस दिन लोगो ने भी कहा 
और अखबार ने भी लिखा 
कि 
ये वो थे / थी 
ऐसे थे और वैसे थे 
और 
लग गयी गिद्ध निगाहे 
उनके घर पर ।
कितनी कहानियां 
पसरी पडी है चारो ओर 
अपने अपने एवरेस्ट पर होने की 
और 
अज्ञातवास मे मिटने की ।

पूरा उपदेश देते है

कह देता हूँ किसी से कि जरा हाथ बढ़ाना 
नासमझ मुझको अपाहिज ही मान लेते हैं , 
मान कर कमजोर मुझको वे उपदेश देते है 
अज्ञानी मान कर मुझको पूरा ज्ञान देते है |

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

वो सामान्य भी नहीं हो पाते

मेरी कविता -

क्यों ! 
कुछ लोगो के जिम्मे होताहै
केवल विष पीना,
गोली खाना ,
सूली चढ़ना
या 
केवल आलोचित होना 
बार बार
उनमे से कुछ तों 
महान हो जाते है
इतिहास के पन्नो में
परन्तु ऐसा भी तों होता है 
की कुछ लोग
रोज खाते है 
गोली लोगो के इरादों की
पीते है विष 
लोगो की भावना की
चढते है सूली 
लोगो की निगाहों की
खाते है केवल 
आलोचना का खाना
पीते है गाली का पानी
सम्हल भी नहीं पाते है 
की
दोहराई जाती है 
यही कहानी
और 
बार बार 
दोहराई जाती रहती है
उसके जीवन भर
और 
महान क्या 
सामान्य भी नहीं हो पाते है
कोई विज्ञानं या मनोविज्ञान
इनकी कहानी 
सुलझा नहीं पाता है
और 
वे अपनी जिंदगी
सुलझाते सुलझाते 
इतने उलझ जाते है
की 
मकड़ी के जाले में 
फसे नजर आते है
और 
वह क्या उसका भविष्य भी
भविष्य के गर्भ में होता है
ऐसा गर्भ !
जिसे 
अल्ट्रासाऊंड भी नहीं बता पाता है .

ईश्वर क्या है

मेरी कविता : 

ईश्वर क्या है ? 

जो अज्ञात था है और रहेगा 
या 
प्रकृति ही ईश्वर है 
क्योंकि 
पत्थर पेड़ और 
विभिन्न पशु पक्षी को माना 
हमने ईश्वर ,
जो हमारा नुक़सान कर सका 
या 
जिससे हम डरे उसे माना ईश्वर 
फिर हम समझदार हो गए 
तो गढ़ने लगे ईश्वर के स्वरूप 
ईश्वर ने सब कुछ बनाया 
पर 
हम बनाने लगे अपने अपने ईश्वर 
ईश्वर एक डर है 
ईश्वर हमारा लालच है 
ईश्वर जीने की इच्छा है 
ईश्वर मौत का डर है 
ईश्वर हथियार बन गया हमारा 
ईश्वर व्यापार बन गया हमारा 
किसी ने नही देखा ईश्वर 
किसी से नही मिला ईश्वर 
पर 
डीह बाबा , सम्मो माई 
जियुतिया माई से लेकर 
संतोषी माता तक 
और 
साई बाबा से लेकर 
तमाम पत्थरों तक फैल गए ईश्वर 
फिर ईश्वर बनने का चस्का 
इंसानो में भी लग गया 
पहले सब डरते थे बुरा करने से 
जब ईश्वर अज्ञात था 
या 
उसके प्रतीक दुर्गम जगहों पर थे 
मनुष्य ने अपने स्वार्थ में गली गली 
चौराहे चौराहे पर बैठा दिया ईश्वर 
तो डर ही ख़त्म हो गया 
ईश्वर के ठेकेदारों ने निकाल दिए रास्ते 
हमेशा पाप और बुरा करो 
पर बीच बीच में कही नहा आओ 
पूजा करते रहो कराते रहो 
और जिसको जो ठीक लगे 
उस धर्म स्थान पर जाते रहो 
पाप धुल जाएगा 
और 
इस व्यवस्था से बढ़ने लगा पाप 
जब कोई एक रावण कंस जडीज था 
तो अवतार ले लेता था ईश्वर 
कहानिया तो यही बताती है 
पर जब बुरो की फ़ौज हो गयी 
तो 
अपने आसमान में छिप गया ईश्वर 
बेचारा किस किस से लड़े ईश्वर 
और 
किस शक्ल में आए दुनिया में 
कि लोग स्वीकार ले उसे ईश्वर 
क्योंकि 
इंसान ने गढ़ दिए है हज़ारो 
और 
ईश्वर से परिचय का दावा करने वाले 
ख़ुद भी बन बैठे है ईश्वर 
जिसे देखा ही नही 
उसे क्या मानना ईश्वर 
ओकसीजन आज ईश्वर है 
और 
उसके लिए पेड़ ईश्वर है 
पानी भी ईश्वर है 
जी हाँ प्रकृति ही ईश्वर है 
इसलिए मंदिर मस्जिद नही 
प्रकृति को बचाओ 
ईश्वर अल्ला जहाँ है वही रहने दो 
अपने बचने के ठिकाने बनाओ । 
ईश्वर कल्पना है 
उस पर कहानी और कविता खूब लिखो 
पर प्रकृति के साथ दिखो 
ईश्वर शक्ति है तो उससे डरो 
और कोई पाप मत करो 
ईश्वर के ईश्वर मत बनो 
बन सकते हो तो भागीरथ बानो 
नदियों को बचाओ 
देवस्थलो के बजाय 
जीवन स्थलो पर पैसा लगाओ 
देवस्थलों के बजाय पेड़ उगाओ
ईश्वर ख़ुश होगा और जीने देगा 
वरना एक दिन पानी भी नही पीने देगा ।

आँखो में नाखून

मेरी कविता 

आँखो में नाखून 

औरत को देखते ही 
आँखो में नाखून उगना कब से शुरू हुआ 
जब हम असभ्य और नंगे थे
या जब सभ्य हो गए 
और कपड़े पहनने लगे 
औरत को देखते ही 
उसे घायल कर देने के प्रवृति कब से आयी 
जब हमारे पास शब्द नहीं थे 
या जब भाषा गढ़ ली गयी 
औरत को देखते जी 
उसकी काया में प्रवेश कर जाने की उत्कंठा 
कब से हिलोरे लेने लगी 
जब हम कुछ नहीं जानते थे 
या जब गढ़ लिया था ईश्वर हमने 
औरत को अकेले पाते ही 
उसपर आक्रमण कर विजय पाने की इच्छा 
कब से बलवती हो गयी और कैसे 
किसी हिंसक पशु को देखकर 
या इंसान में ही पटकाया प्रवेश हो गया था 
हिंसक पशु का 
हिंसक पशु का इलाज तो पिंजरा है या मौत 
पर इनका ? 

तुम सूरज हो ?


मेरी कविता 

तुम सूरज हो ? 

तुम सूरज हो किसके सूरज 
कैसे सूरज क्यों अकड़े हो 
मुझमें तुममे क्या अंतर हैं
तुम कहा खड़े हो कैसे बड़े हो 
मैं भी अंधकार में सो जाता हूं
तुम भी तो कही खो जाते हो 
सुबह निकलता मैं बिस्तर से 
तुम भी कूद कर आ जाते हो 
पूरब में तुम कहा छुपे 
पश्चिम से आकर 
कल शाम तुम लाल हुए 
पश्चिम में जाकर 
मैने सोचा जल गए तुम 
डूब गए हो किसी खोह में 
या फिर गुस्से में लाल हो गए 
किस बिछोह में 
दीपक ने तुमको कल ललकारा 
अहंकार था उसने उतारा 
बोला था तुमसे वो 
तुम जाओ जाओ
जहां कही भी चाहो 
तुम अब घूम के आओ 
अंधकार पर में चढ़ लूंगा 
उसकी ताकत से लड़ लूंगा 
क्या तब तुम कुछ शर्माए थे 
उसकी लाली तब तुमपर थी 
मैं तो दर्शक बस दोनो का 
दोनो से आनंद है मेरा 
रात में दीपक साथ में रहता 
तुम्हरे संग हो जाता सवेरा 
मैं तुमको ना पूजू तो फिर तुम क्या हो 
तुम साथ में नही रहो तो मैं क्या हूं 
हम दोनो की तकदीर है कैसी 
पश्चिम की तासीर है कैसी 
पश्चिम में जाकर तुम भी डूब रहे हो 
पश्चिम को अपना कर मैं भी डूब रहा हूं 
चलो बहस अब खत्म करे मैं क्या तुम क्या 
जब तक मेरा साथ दे सको साथ रहो तुम 
अर्घ मेरा स्वीकार करो मेरे रहो तुम 
तुम ना होगे तो जीवन भी तो ना होगा 
चांद सितारे जुगनू दीपक सब बच्चे तेरे 
तुम हो तो वो सब भी है साथी मेरे 
तुम जाते हो तब ही हमको नीद है आती 
तुम आते हो सारी दुनिया तब जग जाती 
आने जाने का ये फेरा ही जीवन है 
उगने डूबने का क्रम ही तो जीवन है 
अच्छा सूरज बहुत काम है मैं चलता हूं 
फिर मैं तुमसे बात करूंगा 
अपनी आंखे नही तरेरो
क्योंकि अब हम दोस्त हो गए
मैं अब तुमसे नही डरूंगा ।



बुधवार, 15 मार्च 2023

बहुत दिनो के बाद चांद से बात हुयी ।



बहुत दिनो के बाद चांद से बात हुयी ।

शाम ढली थी और थोडी सी रात हुयी 
बहुत दिनो के बाद चांद से बात हुयी ।
कुछ रूठा सा चाँद अकड के बैठ गया 
कितना निहारा करता था चन्दा को  मैं 
गाँव देहरी या शहर का का आंगन था 
पर जाने फिर क्या हुआ दोस्ती टूट गयी 
जीवन के संघर्ष या फिर टूटा मन था 
याद किसे आती है चांद सितारो की 
जब रोटी ही चांद दिखाई पडती हो 
और सितारे नमक मे पड़े  दिखते हो 
जब भूख पेट की ख़ुद से याचना करती हो 
बच्चो की फीस उन्हे अपमानित करती हो 
पत्नी की कोशिश फटी साड़ियाँ ढकने की 
पूरा दिन जब मुफ्त इलाज खा जाता हो 
जब धक्कों से अपने जीवन का नाता हो 
छत भी छीनने का खतरा सर पर लटका हो 
तो कौन देखता चांद तुम्हे और कब देखे 
तुमने भी क्या किया अपने इस प्रेमी का 
जो बड़े देवता बने हुये तुम फिरते हो 
नही शिकायत का हक तुमको बिल्कुल है 
कहा देखना था तुमको थे तुम याद कहा 
वो तो यूँ ही बस नजर उठ गयी ऊपर को 
कि बादल मे क्या चमक रहा है देखो तो 
आंख मिल गयी तुमसे तो तुम ऐंठ गये 
लेके किस्सा देखा देखी का बैठ गये 
जाओ जाओ हमको भी अब परवाह नही 
एक चांद उगा देंगे हम चाहे जहा कही 
अब तुम नही मेरे बच्चे है चांद मेरे
तुम भी हो पर मेरे बच्चो के बाद मेरे ।

रविवार, 12 मार्च 2023

वो सब आगे निकल गए

वो सब आगे निकल गए 

जो जो काफ़ी दिन साथ चले 
गलबहिया करते हुए
एक दिन अचानक थोड़ा ठिठके
उनके पीछे होते ही 
मैं लहूलुहान हो गया 
छटपटाया और गिर गया 
और मुझे तड़पता छोड़ 
वो तेजी से आगे निकल गए 
ये कहानी आख़िरी कभी नहीं हुयी 
और गिनती अब तक नहीं रुकी ।

बुधवार, 1 मार्च 2023

धुप अन्धेरा है

धुप अन्धेरा है 
चारो ओर 
जमीन से आसमान तक 
क्या आसमान के परे भी
कुछ होगा 
जहा कुछ रोशनी होगी 
हमारे हिस्से की भी ।