गुरुवार, 10 अगस्त 2017

हां जीवन इसको कहते है |

जिंदगी
कब होगी पहचान हमारी
इतने सालो से है दूरी
क्या मजबूरी
जिन्दा तो है
पर क्या सचमुच
क्या जीवन इसको कहते है
पांव में छाले भाव में थिरकन
गले में हिचकी आँख में आंसू 
नीद नहीं और पेट में हलचल
ना पीछे कुछ ,ना आगे कुछ
बस अन्धकार है
क्या जीवन इसको कहते है
जीवन कब हमको मिलना है
या फिर ऐसे ही विदा करोगे
कुछ तो सोचो
हम दोनों क्या जुदा जुदा है
कुछ तो बोलो
और भविष्य के ही पट खोलो
या फिर कह दो
हां जीवन इसको ही कहते है |
जींना है तो हंस कर जी लो
या फिर दर्द गरल को पी लो
तेरे हिस्से में बस ये है
मैं भी तो मजबूर बहुत हूँ
तेरी खुशियों से दूर बहुत हूँ
चल अब सो जा
अच्छे सपनो में आज तो खो जा
कल फिर मुझसे ही लड़ना है
हां जीवन इसको कहते है |