शनिवार, 27 नवंबर 2021

खाली हाथ बिना जेब जल जाना है

आज शमशान घाट पर 
बैठा देख रहा था 
और सोच रहा था 
जीवन का सच 
वो पैसे के पीछे भागते रहे 
बहुत कमाया 
पर 
जीवन तो नही बचा पाये 
उन्होने लकडी ली ढेर सारी 
और 
घी के कनस्तर के कनस्तर उडेल दिये 
पर चिता बड़ी मुश्किल से 
बड़ी देर मे जली 
और 
वो बस किसी तरह जला पाया 
पर चिता धधक कर जल उठी 
कितने कन्धे थे उसके साथ जो गरीब था 
पर सिर्फ नौकर साथ थे 
जो अमीर था 
शमशान भी समाज का आइना है 
कोई औरत या बेटी अकेली 
या दो ले आते है अपने को 
ठेल पर डाल कर 
और 
गिड़गिड़ाते है मदद को 
तो किसी की भीड
भर देती है शमशान को 
यद्द्पि जलते दोनो है 
लकडी मे 
पर 
किसी के पास चन्दन 
तो किसी के पास कुछ भी नही 
शमशान भी गैर बराबरी का स्थान है 
समाज दिखता है यहा 
और समाज का सच 
जिन्दगी का सच तो होता ही है 
कि 
खाली हाथ बिना जेब 
नंगे जल जाना है यहा सभी को ।

भविष्य पढो

इतिहास पढ कर क्या करोगे 
भविश्य पढो 
उसी मे हित है सबका 
मानवता का 
समाज का 
और 
देश तथा दुनिया का 
इतिहास पढो 
तो 
केवल इसलिये 
कि 
किन कारणो से 
मानवता को कष्ट हुआ 
मानवता का नाश हुआ 
बस वो नही होने देना है ।

सोमवार, 22 नवंबर 2021

संघर्ष ही जीवन है

कुछ लोग 
संघर्ष करते है 
जीवन भर 
जीवन के लिये
और 
एक छत के लिये  
जो संघर्ष 
खा जाता है
आधी जिन्दगी 
कुछ लोग 
संघर्ष करते रहते है 
अपनी ही दीवारो से
अपनी बनाई छत से 
बचे हुये जीवन भर
उनका जीवन जीवन कहा 
बस संघर्ष होता है ।

रविवार, 21 नवंबर 2021

अंग भी बोलते है कभी

हम कितना बोलते है रोज 
और 
हमारा शरीर सुनता है और 
मानता है हर बात 
पर 
कभी कभी शरीर का कोई अंग 
थोडा सा बोल देता है 
तो 
नही सुन पाते है हम 
और 
किस कदर पस्त हो जाते है ।
फिर दवाई चीर फाड और 
पता नही क्या क्या ।

चिडिया उड़,मैना उड़ ।

हम दोनो खेलते थे 
अपने बच्चो के साथ 
चिड़िया उड़ तोता उड़ 
मैना उड़ घोडा उड़ 
उंगली उठा कर उड़ा देते थे 
या उगली रखी रह जाती थी 
हार जाता था कोई 
घोडा हाथी उड़ पर 
पर उस दिन 
हार गये हम सब 
उंगली नही 
साथी ही उड़ गया 
अनंत आकाश मे 
देह को छोड़ कर 
और 
तब से चिडिया ने 
उड़ना बंद कर दिया 
उगली स्थिर हो गयी 
जहा की तहा 
तब से नही खेला 
चिडिया उड़,मैना उड़ ।

शनिवार, 20 नवंबर 2021

भगवान नाराज होंगे

मैने कुछ लोगो को 
बातो मे बता दिया 
कि 
किस तरह 
तमाम लोगो ने 
मेरा इस्तेमाल किया 
और 
फिर धोखा दिया 
पीठ पर वार किया 
तो 
उन बेचारो ने भी 
तय किया 
कि 
वो भी इस विधान 
और 
परम्परा को क्यो टूटने दे 
भगवान नाराज होंगे ।

शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

टूटा पत्ता

पेड़ से टूटता है पत्ता 
उड़ता है इधर से उधर 
गिरता है जमीन पर 
हरा होता है 
तो 
कोई जानवर खा जाता है 
सूख जाता है 
तो 
रौद दिया जाता है पैरो से 
और 
मिट्टी मे मिल जाता है 
पेड़ से टूटती है डाल 
सूख जाती है कुछ दिन मे 
पतली होती है 
या कमजोर होती है 
तो जला दी जाती है 
मजबूत भी होती है
तो भी काट दी जाती है 
बना दी जाती है 
कुछ न कुछ 
किसी के बैठने को 
या 
सजावट की चीज बन जाती है 
घर से भागने वालो 
और 
इस पत्ते या डाल मे 
क्या फर्क होता है ?
कुछ भी नही न ।

चल पडूंगा पूरी ऊर्जा के साथ

चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ--

मन बहुत असहज
सर पर द्वन्द का पहाड़
कुछ अकेलापन
और
कुछ अज्ञात भय
कुछ जीवन के हालत
बदलने के काल का विचलन
सचमुच
जब कोई पूरी नौकरी करके
अवकाश प्राप्त करता होगा
और
अचानक खाली हो जाता होगा
सब सुविधाओ और अधिकारों से
अचानक विमुक्त
और 
अकेले में याद आता अतीत
अतीत के वो सारे कृत्य
जो उस वक्त के नशे में किये
और 
अब नए धरातल पर
झकझोरते हुए 
खुद को अंदर तक
कुछ ऐसा ही तो हो रहा है
मेरे साथ भी
कितना मुश्किल हो रहा है
सामंजस्य बैठाना 
वक्त से
और 
अपने अतीत में झाँकना
मीठी यादो का गुदगुदाना
और 
बुरी का आहत कर देना 
और 
चीर देना आत्मा को
सचमुच कैसे रहते होगे
वो सारे लोग
कभी जीवन ऊचे पहाड़ की चढ़ाई सा
चढ़ने से पहले ही हांफने का एहसास
और 
कभी बर्फ की खायी सा
फिसलने से पहले ही
अंधी खोह में समां जाने का डर
पर सम्हाल जाऊंगा मैं
और
चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ
अपने कर्तव्य पथ पर
पर आज तो आज है
और 
कल का इन्तजार है
स्वर्णिम किरणों के साथ
जीवन में प्रवेश करने का |

रविवार, 7 नवंबर 2021

गोवर्धन और कृष्ण

कृष्ण ने उठाया था गोवर्धन
बचाने को उन लोगो को 
जिनको खड़ा कर दिया था 
सबसे बडी सत्ता के खिलाफ 
बस यही तो कहा था कृष्ण ने 
कि 
उसे क्यो भोग लगाते हो 
जो खाता ही नही है 
जिसे भूख ही नही है 
और 
उदर भी नही है 
केवल वास लेता है वो 
उसे खिलाओ 
जिसे भूख है 
जिसे जरूरत है
लाओ मुझे खिलाओ 
मैं खाऊंगा 
कितना कमजोर था देवत्व 
की 
तुरन्त हिल जाता था उनका आसन 
और 
कितना क्रोध भरा था इनमें 
कैसे और क्यो देवता माने इन्हें
जो सहज इंसान भी नही 
बरसा दिया क्रोध 
उन सभी पंर 
जिन्हें खड़ा किया था कृष्ण ने 
सत्य के साथ 
पर 
कृष्ण भी तो कृष्ण थे 
प्रेम किया तो खूब किया 
राजनीति किया तो खूब किया 
युध्द भी खूब करवाया 
खूब मरवाया
और 
खूब बचाया 
खड़े हो गए यहाँ भी कृष्ण 
अपनो के साथ 
और 
उठा लिया गोवर्धन 
अपनी छोटी सी उंगली पर 
वो छोटी सी उंगली 
और 
उतना बड़ा पहाड़ 
कैसे टिक पाया होगा 
और 
कैसे उठाया होगा 
कितनी दुखी होगी 
उनकी उंगली 
शायद आज भी दर्द 
हो रही वो उंगली 
पर 
असम्भव को संभव करने का नाम 
ही 
कृष्ण है शायद 
लगता है 
की वो पहाड़ नही 
बल्कि पुरुसार्थ रहा होगा 
संकल्प रहा होगा 
इरादा रहा होगा 
और 
अडिगता रही होगी 
और 
आंख में आंख डाल कर 
खड़े हो गए होंगे कृष्ण 
सबसे आगे 
उंगली उठाकर चुनौती देते हुए 
और 
उनके संकल्प के सामने 
नही टिक पाया होगा 
इतना उथला से इंद्र
और 
भाग खड़ा हुआ होगा 
खूब तालियां बजी होंगी 
नाचे होंगे लोग 
कृष्ण को उठा कर कंधे पर 
गोपिया रीझ गयी होंगी कितनी 
और 
देख रही होंगी कनंखियो से 
कृष्ण को 
कृष्ण ने भी जरूर देखा होगा 
अठखेलियाँ 
और 
मंद मंद मुस्कराए होंगे कृष्ण 
पर 
कृष तुम कितने लंबे विश्राम पर हो 
या 
अपने गुण , अपनी जिम्मेदारी 
भूल गयो हो 
देखो 
कितने नकली देव 
क्या क्या जुल्म कर रहे है 
तुम्हारे लोगों पर 
तुम्हारी गोपिकाओं 
तुम्हारे बच्चो से 
क्या क्या सलूक हो रहा है कृष्ण 
तुम इतने बेदर्द तो नही हो सकते 
की 
लोगो का दर्द ही भूल जाओ 
आ जाओ न कृष्ण 
भारत ही नही दुनिया को 
एक और महाभारत की जरूरत है 
और 
जरूरत हैं 
आज के संदर्भ में 
एक नए ज्ञान और उपदेश की 
कब आवोगे कृष्ण 
और 
ये महापर्वत कब उठावोगे 
अपने इरादे और न्याय की 
उंगली पर ।
आओ न कृष्ण , अब उठ जाओ 
आ भी जाओ न कृष्ण ।