मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

दिल्ली को घेरे गांधी

दिल्ली की सीमाओ पर
गांधी खुद खड़े है
गांधी जी के हत्यारे हत्प्रभ है 
कि 
वो अभी तक जिन्दा कैसे 
और 
फिर मारने की ताक मे है 
गांधी जी से नफरत करने वाले 
उन्हे असफल कर देना चाहते है 
पर गांधी तब नही हारे 
तो 
अब क्या हारेंगे 
जब फैल गये है 
पूरी दुनिया मे 
इंसानियत का सूर्य बन कर 
इन्कलाब की आवाज बन कर 
अहिंसा का मंत्र बन कर 
सत्याग्रह का हथियार बन कर ।

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

चल पडूंगा पूरी ऊर्जा के साथ

चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ--

मन बहुत असहज
सर पर द्वन्द का पहाड़
कुछ अकेलापन
और
कुछ अज्ञात भय
कुछ जीवन के हालत
बदलने के काल का विचलन
सचमुच
जब कोई पूरी नौकरी करके
अवकाश प्राप्त करता होगा
और
अचानक खाली हो जाता होगा
सब सुविधाओ और अधिकारों से
अचानक विमुक्त
और 
अकेले में याद आता अतीत
अतीत के वो सारे कृत्य
जो उस वक्त के नशे में किये
और 
अब नए धरातल पर
झकझोरते हुए 
खुद को अंदर तक
कुछ ऐसा ही तो हो रहा है
मेरे साथ भी
कितना मुश्किल हो रहा है
सामंजस्य बैठाना 
वक्त से
और 
अपने अतीत में झाँकना
मीठी यादो का गुदगुदाना
और 
बुरी का आहत कर देना 
और 
चीर देना आत्मा को
सचमुच कैसे रहते होगे
वो सारे लोग
कभी जीवन ऊचे पहाड़ की चढ़ाई सा
चढ़ने से पहले ही हांफने का एहसास
और 
कभी बर्फ की खायी सा
फिसलने से पहले ही
अंधी खोह में समां जाने का डर
पर सम्हाल जाऊंगा मैं
और
चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ
अपने कर्तव्य पथ पर
पर आज तो आज है
और 
कल का इन्तजार है
स्वर्णिम किरणों के साथ
जीवन में प्रवेश करने का |

गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

नशा गिरने का

उसे ऐसा क्यों लगता है 
कि 
वो गिर गया है 
और 
खुद में एक सवाल बन गया है 
जिसे सुलझाने का कोई यंत्र नहीं 
सुलझाते सुलझाते 
और उलझ जाता है वो 
अपने बनाये सवाल में 
फिर सोचता है कि 
वो अकेला तो नहीं गिरा 
खाई थी तभी तो गिरा 
पर खाई से 
दूरी भी तो हो सकती थी 
कितना दोगला है वो 
वो खुद गिरना चाहता है 
और गिरना चाहता है 
फिर भी 
खुद को धोखा देता है 
शर्मिंदा होने के अभिनय से 
और 
खुद को सवाल बना कर 
गिरना
उसका नशा बन गया गया है 
और 
उसकी नियति भी ।
पर कही तो ठहरेगा 
उस दिन सवाल भी ठहर जायेंगे 
और 
उसके द्वन्द भी ।