मंगलवार, 31 मार्च 2020

जब कोई मजदूर लिखता है

जब कोई मजदूर लिखता है 
तो मुझको मजबूर दिखता है 
गठरी या बच्चा है नहीं मालूम 
सत्ता से तो बहुत दूर दीखता है 
फोटो में जो केला लेके खड़ा है  
वो तो बहुत मशहूर दिखता है 
वो बच्चा रो रहा है भूख से देखो 
उसका बाप भी मजबूर दीखता है 

सोमवार, 23 मार्च 2020

जो तेरी छत पर बैठ गया वो मुझको मंजूर नहीं

जो तेरी छत पर बैठ गया वो मुझको मंजूर नहीं 
चाहे वो एक परिंदा है 
पर मेरी छत से दूर रहे 
तू मुसलमान मैं हिन्दू हूँ मेरा धर्म भ्रष्ट हो जायेगा 
वो तेरी छत पर बैठा है तो तेरे धर्म को लायेगा 
रे खबरदार तू रोक उसे उड़ने से पहले टोक उसे 
या गंगाजल मुझे लाने दे पहले उसको नहलाने दे 
बोला पक्षी कातर होकर तू किस किस को नहलाएगा 
गंगा में वजू किया उसने और मैंने भी डुबकी मारी है 
क्या गंगा को नहलाएगा या दूजी गंगा लायेगा 
पानी ,धूप ,हवा और फसले,
पक्षी ,चौपायो  की नस्ले 
इनमे हिन्दू पहचान जरा तय कर दे मुसलमान जरा 
तू लहू का मजहब तय कर दे 
किरणों में अपने रंग भर दे 
सारे ग्रंथो को पढ़ के बता तेरे इश्वर की जाति है क्या 
तू अज्ञानी टोकेगा क्या उड़ने से तू रोकेगा क्या 
प्रकृति जब खेल दिखाएगी 
तू खुद कही उड़ जायेगा 
किस जगह गिरेगा तू जाकर 
क्या तू बतला ये पायेगा 
खुद का तुझको कुछ पता नहीं 
तू दुनिया को क्या साधेगा 
अपनी सांसो का पता नहीं 
तू प्रकृति को क्या बांधेगा 
सबको स्वतंत्र ही जीने दे ये नदिया सूरज सब सबके है 
ये पृथ्वी जंगल और पहाड़ 
सब तूने नहीं बनाये है 
ये इतने थलचर और जलचर 
सब तूने नहीं बसाये है 
इनमे से तू भी एक अदद ये सब है तब ही तू भी है 
ये आसमान भी सबका है ये विधि विधान भी सबका है 
सब तेरे है तू सबका है गर इतना तू पहचान  गया 
तू भी कुछ पल का किस्सा है 
बस इतना ही तू जान गया 
तो अमन चैन छा जायेगा दुनिया खुशहाल बनाएगा 
तो अब बस तू इंसा बन जा नफरत की मत बीन बजा 
आ दुनिया को खुशहाल करे 
बस प्रेम से मालामाल करे ।
तेरी छत या उसकी छत सब झटके में गिर जाती है 
जब पृथ्वी करवट लेती है उसकी छाती फट जाती है 
तू देख चूका तब क्या होता 
सब वही दफ़न हो जाते है 
सब जाति धर्म या धन दौलत 
सब के सब मिट जाते है ।

गुरुवार, 19 मार्च 2020

टूटा पत्ता

पेड़ से टूटता है पत्ता 
उड़ता है इधर से उधर 
गिरता है जमीन पर 
हरा होता है 
तो 
कोई जानवर खा जाता है 
सूख जाता है 
तो 
रौद दिया जाता है पैरो से 
और 
मिट्टी मे मिल जाता है 
पेड़ से टूटती है डाल 
सूख जाती है कुछ दिन मे 
पतली होती है 
या कमजोर होती है 
तो जला दी जाती है 
मजबूत भी होती है
तो भी काट दी जाती है 
बना दी जाती है 
कुछ न कुछ 
किसी के बैठने को 
या 
सजावट की चीज बन जाती है 
घर से भागने वालो 
और 
इस पत्ते या डाल मे 
क्या फर्क होता है ?
कुछ भी नही न ।

इसीलिए आज बाजार मे हूँ

इसीलिए आज बाजार में हूँ ।

सुनो सुनो सुनो ,
कोई मुझे भी खरीद लो 
जी बिकाऊ हूँ मैं 
जैसा भी हूँ
पर आज बाजार में हूँ 
बाजार का युग है 
इतना खोटा भी नहीं कि 
मेरी कुछ भी कीमत न ही 
बोली तो लगाओ 
कही से तो शुरू करो 
चलो तुम रोटी से शुरू करो 
चुपड़ी नहीं रूखी ही सही 
और तुम कपडे से 
उतरन भी चलेगी 
तुम नीद की जगह दोगे 
पर नीद कौन देगा 
पर बोलो ,जो चाहो बोलो 
इतना सस्ता इमांन कहा मिलेगा 
इतना सस्ता ज्ञान कहा मिलेगा 
और 
आज इंसान कहा मिलेगा 
तो बताओ कौन खरीदेगा मुझे 
जी हा
कसम खुदा की मैं बाजार में हूँ 
खरीद रहे हो बेपनाह हुस्न 
लोगो के इमांन 
लोगो के रहनुमा 
तो मुझमे क्या बुराई है 
इस ईमान से डर लगता है 
या फिर इंसान से डर लगता है 
अरे नहीं 
बिकाऊ है आज ये भी 
कोई तो बोलो 
मेरे इंसान और ईमान को 
कोई तो सिक्को में तोलो 
कोई नहीं बोलोगे 
तो रो पडूंगा मैं बेबसी पर 
फिर 
आंसू तो बिलकूल नहीं खरीदोगे 
अब हुस्न कहा से लाऊँ 
मैं भी दल्ला हो सकता हूँ 
ये कैसे समझाऊँ 
या फिर ये बनी हुयी इमेज 
मिटा के कैसे आऊँ 
तो उसके लिए 
किस लॉन्ड्री में जाऊं ।
कोई तो खरीद लो न मुझे ।
जी हां मैं आज बिकाऊ हूँ 
और 
इसीलिए आज बाजार में हूँ ।
और 
बिकने वाले हर इश्तहार में हूँ ।

सड़ी लाश

वो जब वो नही रहे-                                                     

उन्होने पढाया था 
हज़ारो को 
इसलिये बस गये थे 
उसी शहर मे 
और
उनकी कविताओ पर 
कितनी तालिया बजती थी 
और
उनके भाषण 
लगता था क्रांती कर देंगे 
और
वो कितना अच्छा अभिनय 
करता था / करती थी 
फिर ये सब गुम हो गये 
किसी ने नही देखा 
उसके दरवाजे की तरफ कभी 
जब वो नही रहे ओह्दो पर 
एक दिन 
जब बदबू परेशान करने लगी 
तब पडोसी परेशान हुये 
और 
शिकायत किया पुलिस को 
तब दरवाजा तोड 
निकाला गया कई दिन की 
सडी लाश को 
उस दिन लोगो ने भी कहा 
और अखबार ने भी लिखा 
कि 
ये वो थे / थी 
ऐसे थे और वैसे थे 
और 
लग गयी गिद्ध निगाहे 
उनके घर पर ।
कितनी कहानियां 
पसरी पडी है चारो ओर 
अपने अपने एवरेस्ट पर होने की 
और 
अज्ञातवास मे मिटने की ।

शुक्रवार, 13 मार्च 2020

होली

मेरी एक पुरानी कविता -

होली नहीं खेलता मै

होली नहीं खेलता मै
बचपन बीतने के बाद से
बचपन कब बीता और मै बड़ा हो गया
पता ही नहीं चला
क्योकि अपने जिनके कारण
हम बचपन पकडे रखना चाहते है
वे हाथ छोड़ झटक देते है बचपन को
साया देने वाले अधिकार को
खैर होली नहीं खेली बहुत साल से
तभी कोई आया हवा का झोंका बनकर
खाली जीवन में और अपने साथ लायी
एक मुट्ठी बदली और
बंजर जमीन पर नम हवा तथा
मुट्ठी भर बदली से निकली फुहार ने
उगा दिए कुछ पौधे
होली मै तब भी नहीं खेलता था
परन्तु रंगों से सराबोर हो जाता था
अच्छा लगता था
किसी का ठठा कर हँसना
खुद रंगा होकर सबको रंग देना
ठहाकों से तथा अपने रंगों से
मेरी बंजर जमीन पर उगे पौधे
जब एक दिन पहले तैयारी करते थे
कपड़ों की रंगों की तथा पिचकारी की
अगले सुबह ही उठकर शरीर पर मलते थे
तेल या क्रीम ,रंगों से बचने को
फिर रंग फेंकते थे ,बचते थे और
खुद रंग भी जाते थे सराबोर
फिर शीशे में खुद को पहचानना और
दूसरों को देख कर ठठा कर हँसना
फिर प्यार से गोद में बैठ कर अपने रंगों
से सराबोर कर  देना मुझे भी
कितना सुखद था ,कितनी ऊर्जा थी
कितना जीवन था ,जीवन का अर्थ था
फिर अचानक बुलावा आ गया किसी का
जहा से आई थी बदली
मै ही भूल गया था बादल आते है
बरसते है ,धरती को नमी देते है
कुछ बारिश रुक जाती है
जीवन बन कर जीवन के कुए में ,
तालाब में या  झील में
और कुछ को सूरज सोख लेता है वापस
और पहुंचा देता है वही हर बूँद को
जहा से उसे दुबारा तय करना होता है सफ़र
इस क्रिया को भूल जाना और
न पकडे जाने वाली चीज को
पकड़ कर रखने की कोशिश ही शायद
संबंध है ,संवेग है और अनबूझ पहेली भी
मै फिर अकेला निहार रहा हूँ
लोगो को होली खेलता होली की बात करता
मैंने भी सन्देश भेज दिया और हो गयी होली
धीरे धीरे मेरे पौधे भी अपनी नयी जमीन
तलाश लेंगे जहा वे विस्तार पा सके
और फिर मेरा भी सफ़र शुरू हो जायेगा
अपनी बदली को ढूढने और
उसमे समाहित हो जाने का  ।

रविवार, 8 मार्च 2020

होली है

आज होली है ,रंग लगाना है, लगालो, अच्छे अच्छे रंग डालो,

ये लाल रंग है ,लहू का भी लाल होता है, फैसला तुम्हारा,

किसी को बचाने के लिए रक्तदान करो या बेगुनाहों का रक्त बहालो,

या रुक जाये हर तरह का रक्तपात ऐसी कोई  व्यवस्था बनालो|

और  आप हरा रंग लाये हो ,लगता है कीचड में नहाये हो,

आओ पूरी धरती को फिर हरा भरा बनाये,हों भरपूर फसलें,

फलों के बगीचे ,फूलो की क्यारी नहीं तों गमले ही लगाये,

और नीला , नीला आसमान नीला समुद्र साफ हो नदियाँ,

साँस लेने लायक हवा ,पीने लायक हो पानी नहीं तों ,

खुद ही मिट जाओगे  तों होली कैसे मानोगे |

पीला है तुम्हारा रंग होली का अपनाओ नया ढंग,

गरीबी और बेबसी के कारण जो बेटी आत्महत्या करने या,

बिकने को तत्पर है ,उसे बचाने का तुम्हे  एक अवसर है,

उसके हाथ पीले कर,कफ़न से बचा लो पीली चुनरी ओढा दो ,                                                                 

जीवन में खुशहाली  और उसके घर में पीली होली सजादो |

तुम काला रंग ही लाये हो या तुम्हारा मन भी है काला ,

अपना  इरादा बतादो ,अपना असली चेहरा तो दिखादो ,

हो सके तों ये रंग समाज पर नहीं समाज के दुश्मनों पर डालो,

उन्हें ढूढ़ निकालो और बतादो काले इरादों के लिए नहीं है स्थान,

ये राम कृष्ण बुद्ध महावीर गाँधी के साथ सुभाष का हिंदुस्तान |

काला रंग और काला इरादा लेकर आओगे तों पछताओगे,

रंग के साथ हम खून की होली भी खेलना जानते है,

भूले तों नही ७१ और कारगिल ,अब आओगे तों मिट जाओगे, .

बाहर आसान पर अन्दर छिपे काले मन वालो से लड़ाई गंभीर है,

वे हमारे बीच छिपे ना पहचाने जाने वाले गुलाल और अबीर है,

आओ मिल कर सफाई का पानी डाले ,उन्हें ढूढ़ कर निकाले,

सियार का रंग उतर जायेगा ,समाज उन्हें रास्ते पर लायेगा |

फिर सभी रंगों को मिला कर इन्द्रधनुषी रंग बनाये,

उसी की होली खेलें, पूरे भारत को वही रंग लगायें,

अपना देश महान होगा जी हाँ ऐसा हिंदुस्तान होगा,

विश्व को रास्ता दिखायेगा फिर विश्व गुरु कहलायेगा,

आओ इन इरादों की चन्दन और रोली लगाओ,

हाथ का खंजर फेंक दो और गले से  लग जाओ | .