गुरुवार, 17 मई 2012

वो समझा था कि वो सिकंदर है

वो समझा था कि वो सिकंदर है
पर समझा की सब मुकद्दर है ।
बड़ी देर लग गयी जान पाने में 
ये जानने में सामने समंदर है ।
क्या जानेंगे हम बाहर क्या  है 
जब जानते नहीं क्या अन्दर है । 
वो है मेरी है भी और नहीं भी है 
ये वो जाने सब उसके अन्दर है । 
बातें होती है तो बहुत बातें होती 
बातों का मतलब जाने  इश्वर है ।
मै कहना चाहता हूँ चाहत अपनी 
सोचता हूँ आँखे बोलें जो अन्दर है ।
वो क्या नासमझ है नहीं समझते है
मै क्या कहूँ की दिल में समन्दर है ।
लगता है जिंदगी यूँ ही बीत जाएगी 
वो भी अकेले है अकेला मेरा घर है । 



शनिवार, 12 मई 2012

क्या होगा मुल्क का जब सभी बिक जायेंगे ।

जमीन है नहीं पर कोठियों के सपने है
कोई भी अपना नहीं पर सब  अपने है ।
हमने सोचा न था कि हम बहक जायेंगे 
पर बहक गए है तो कारण भी अपने है ।
आसमान से आग बरसी जल गए हम 
पाँव में छाले है तो हम कैसे चल पायेंगे ।
लोग कहते है कि तुम इतने पीछे खड़े हो 
बेंच दें जमीर बहुत आगे हम चले जायेंगे।
हमें भी तमन्ना हो गयी बड़ा बन जाने की 
बेईमान नहीं हम बड़ा आदमी कहलायेंगे । 
लूट लो बस जर जमीन जोरू जो भी मिले 
फिर शान से चलो सभी नीचे नजर आयेंगे। 
कोठी कुत्ता कार और चमचे भी होंगे खूब 
फिर हम देश में काबिल महान कहलायेंगे ।
वाह रे ये देश ये समाज, तुझे सलाम मेरा 
अच्छों को थू थू और बुरों के गीत गायेंगे । 
क्या फर्क जमीन बिना कोठियों के सपने है
सब होगा आसान जब हम नंगे हो जायेंगे।
बस इसी की दौड़ है चली आज मुल्क में मेरे 
क्या होगा मुल्क का जब सभी बिक जायेंगे ।
चलो कोई तो जुबान खोलो नंगों को नंगा कहो 
कई वर्षों के गुलाम हम फिर वही बन जायेंगे ।
आओ नकाबों को उतारे इन्हें सचमुच नंगा करें 
जब नंगे होंगे ये असल में मुह क्या दिखलायेंगे ।



बुधवार, 9 मई 2012

कितने महंगे है ये हस्ताक्षर और इन्हें करने वाले लोग

मै चला था कि बस एक हस्ताक्षर होगा 
और दूर हो जाएगी मेरी सारी समस्याएं 
चहकने लगेगा मेरा परिवार और बच्चे 
लग जाएगी मेहदी एक बेटी के हाथों में 
पर नहीं जानता था कि कितने महंगे है 
ये हस्ताक्षर और इन्हें करने वाले लोग 
इन्सान नहीं है,बल्कि पैसे की मशीन है 
ये लोग बहुत बड़े हो गए है बहुत ऊंचे भी  
ये सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल करते है 
लोगो को ,उनकी भावनाओं,आस्थाओं को 
पर खुद हो गए है पत्थर केवल पत्थर
पत्थरों को क्यों सत्ता क्यों वैभव क्यों पैसा 
पत्थर क्या करेंगे इन चीजों का, क्या करेंगे 
ये चीजें तो इंसानों के लिए है इंसानों के लिए 
सत्ता होती है लोगो की लोगो द्वारा लोगो के लिए 
पर ये लोग तो खुद ही  बन गए है तीनों लोग  
फिर कहा बचते है मै ,आप या कोई और 
मै बड़े विश्वास से गया था अपना समझ कर 
पर लौट आया बेगाना बन कर लडखडाता हुआ 
ये भी जीवन का एक कड़वा सत्य है ,हा सत्य 
पर हार जाने के बजाय उन्हे हराना है मकसद .
जो इन्सान नहीं पत्थर बन गए है कठोर पत्थर 
सकल्पों को मांज लेना है तय कर लेना है कि 
लड़ाई अभी बाकी,है फैसलाकुन लड़ाई बाकी है 
उठूँ  बहुत चल लिया अब उन्हें चलता करना है 
यही है संकल्प ,यही है इरादा,बाकी अपने संकट 
वो छोड़ देता हूँ वक्त के हाथों में ,संघर्ष के हाथों में ।

शनिवार, 5 मई 2012

एवरेस्ट पर्वत पर झंडा फहराना है

पांव है थके थके पर दूर बहुत जाना है 
पर चलने की उमंग है मन में उत्साह है 
चलना ही जीवन है रुक जाना अंत है                                       
चल रहा हूँ मै लेकिन रास्ता अनंत है ।
जीवन संघर्ष है, पहाड़ की चढ़ाई है 
अपने पुरसार्थ क़ी अपनी कमाई है
चलना है,रुकना नहीं चलते ही जाना है ।
रास्ते  में कांटे हो, जंगल हो, पहाड़ हो 
रास्ते में बाधा कोई सिंह की दहाड़ हो 
चलते ही जाना है चलते ही जाना है  ।
आते है तो रोते हुए और सब हंसते है 
रास्ते में कभी मौन,हंसना भी रोना भी 
जाते हुए मौन खुद, बाकी सब रोते है 
कौन परवाह करे हंसने की रोने की 
मंजिल को पाना है चलते ही जाना है ।
मंजिल नहीं मंजिलें है जैसे हो सीढियाँ 
हौसले बनाये रख कदम कदम चलना है 
चलते ही जाना है चलते ही जाना है ।
रास्ता दिखाया था बड़ों ने आगे कभी 
वो तो चले गए अपनी अनंत यात्रा पर 
अब आगे चलना है रास्ता दिखाना है 
पीछे है हमारे जो उन्हें रास्ता बताना है 
मंजिलें दिखाना उन्हें काँटों से बचाना है 
यही है कर्त्तव्य बस यही वो आयाम है 
अपनों को धीरे धीरे वाम पर पहुँचाना है 
चलते हमें जाना है चलते हमें जाना है ।
गिरे, उठे ,चल दिए, पार की खाइयाँ 
लडखडाये फिसले भी पार की पहाड़ियां 
काँटों के चुभने की कभी परवाह नहीं 
बहुत तेज गिरे पर निकली आह नहीं  
पैर हो जमीन पर अहंकार दूर रहे 
किसे परवाह  कौन कौन क्या कहे 
बस यही सत्य है , यही संकल्प है
सारे सोपानों को ,मंजिलों को पाना है 
एवरेस्ट पर्वत पर झंडा फहराना है 
चलते ही जाना है चलते ही जाना  है ।