एक मैदान था ।
चारो तरफ
सैनिक ही सैनिक थे ,
हुँकार थी ,
शोर था
टंकार थी
पंर
सन्नाटा था गहरा
और
कृष्ण ने रहस्य खोला
देखो सब मरे हुए है ।
कुछ ऐसा ही हैं
बस यूं ही ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है