रविवार, 30 जुलाई 2023

आतंकित है मानवता

क्या सत्ता और न्याय मिलकर 
ऐसी नई सज़ाये शुरु कर सकते है ? 
जीभ काट देने की सज़ा ? 
आंख फोड देने की सज़ा ? 
कलम तोड़ देने की सज़ा ? 
कीबोर्ड हटा देने की सज़ा?  
अक्षर खत्म कर देने की सज़ा ?
अशिक्षित रहने की सज़ा ?
दिमाग निकाल लेने की सज़ा ? 
वो सत्ता किसकी होगी 
वो न्याय किसका होगा 
आतंकित है मानवता 
उसकी कल्पना से भी 
उसकी सम्भावना से भी ।

रहम कर रहम कर रहम कर ।

दिल ,दिमाग़ ,कलम कीबोर्ड
साथ नही दे रहा है कुछ भी 
बहुत कुछ बोलना चाहता हूँ 
पर आवाज फँस जा रही है 
जब भी कलम उठाता हूँ 
अपने बोझ से गिर पडती है
दिल में जो झांकता  हूँ 
तो बस अंधेरा दिखता है 
दिमाग़ पर ज़ोर देता हूँ 
सर ज़ोर से फटने लगता है 
कीबोर्ड पर उँगलिया रखता हूँ 
तो उँगलियाँ झुलस जाती है 
ये क्या दौर आ गया है मौला 
रहम कर रहम कर रहम कर ।

गुरुवार, 27 जुलाई 2023

किस-किस को अब शीश झुकाना पड़ता है,

किस-किस को अब शीश झुकाना पड़ता है, 
दिल पर कितना बोझ उठाना पड़ता है 
काम नहीं चलता अब दीप जलाने से, 
हर पत्त्थर को भोग लगाना पड़ता है 
रूह बहुत दुख पाती इस जीने से, 
यारो जीते जी मर जाना पड़ता है. 
मौज उडाते हैं राजा के अधिकारी, 
पर जनता को कर्ज़ चुकाना पड़ता है 
हमने भी देखे हैं रंग सियासत के, 
भाई सबका साथ निभाना पड़ता है ।

मंगलवार, 25 जुलाई 2023

चलो अब मैं चुप हो जाता हूँ और

चलो अब मैं चुप हो जाता हूँ 
और
भींच लेता हूँ ओठो को 
चाहे खून क्यो न निकल पडे 
कुछ भी हो जाये मेरे सामने 
आंख मूद लूँगा मैं कस कर 
चाहे फिर दुखती रहे देर तक 
या 
दिखना कम क्यो न हो जाये 
कुछ भी हो हत्या अपहरण 
बलत्कार भ्रश्टाचार  
हो जाये चीर हरण व्यव्स्था का 
या आ जाये तानाशाही 
मिटा दिया जाये संविधान 
पर 
मैं कुछ नही लिखूंगा 
कुछ नही बोलूंगा 
बन जाऊंगा मैं शुतुरमुर्ग 
और 
शामिल हो जाऊंगा उन्ही मे 
निकाल कर फेंक दूंगा अपनी रीढ 
दफना दूंगा दिल दिमाग 
और चिंतन ।

हम इन्सांन नही कुम्भकरण है ।

लोकतंत्र खत्म हो जाये
हमको क्या 
संविधान खत्म हो जाये
हमको क्या  
तानाशाही आ जाये
हमको क्या 
जुबान सिल दिया जाये
हमको क्या 
हम भारत है 
पहले भी गुलाम हो गए
क्या फर्क पडा 
आज़ादी के लिए जो लड़े मरे
हमको क्या 
हमे बस थोडा सा खाना
थोडे से कपडे 
और 
एक कमरा मिल जाये 
और 
हम टीवी देखते खाते
सोते उसी मे दफन हो जाये
अभी हम सो रहे है
आवाज देकर 
जगावो मत हमे
हम इन्सांन नही कुम्भकरण है ।

मैं भी जमाने जैसा हो गया हूँ ?

मिटा दिए है वो तमाम नम्बर 
जो नही उठे मेरी ज़रूरत में 
या 
यूँ ही जब हाल जानना चाहा 
भुला दिए है तमाम वो नाम 
जिन्हें मैं याद नही आया कब से 
वो चेहरे भी धुंधले कर दिए मैंने
जिन्होंने फेर ली निगाहें मुझसे 
हा 
मैं भी जमाने जैसा हो गया हूँ ?

ईश्वर कैसा होता है ।

कितने महान है वो लोग
जो पत्थरो से सर मारते है 
और 
मानते है कि  
पत्थर चमत्कार करता है 
हा 
सच है की पहली आग 
लकड़ियो की रगड़ से 
या 
पत्थरो के टकराने से ही पैदा हुई 
पर 
उसका कारण तो वैज्ञानिक है 
उसमे चमत्कार कुछ भी नही 
और 
किसी अन्य लोक की
ताकत भी कुछ भी नही
मेरी दुवा है आप सबको कि 
सर टकराते रहो 
पर जरा सम्हाल कर
सर से खूँन निकलता है और
फिर उसे रोकने को
दवाई ,मरहम पट्टी 
और 
डाक्टर की जरूरत पडती है 
अगर अधिक निकल गया 
तो 
शायद कही और जाकर
हो सकता है 
दर्शन हो ही जाता हो परमात्मा का
पर तय नही 
क्योकि 
किसी ने लौट कर बताया नही 
कि ईश्वर कैसा होता है ।

रविवार, 23 जुलाई 2023

एलान कर दो कि डर गए हो



एलान कर दो कि डर गए हो 

ख़ुद ही एलान कर दो 
कि सबने ग़ुलामी मान ली है 
ख़ुद ही एलान कर दो 
कि सब डर गए हो  
ख़ुद ही एलान कर दो 
कि सबने सोचना बंद कर दिया है 
ख़ुद ही एलान का दो 
कि अब कोई सवाल नही पूछेगा 
ख़ुद ही एलान कर दो 
कि अब कोई चुनाव नही चाहिए 
चुन लिया है इसी आका को 
जब तक वो चाहे तब तक के लिए 
तुम्हारे पास और कोई चारा नही है 
तमाम क़ानूनी ग़ैर क़ानूनी हाथ 
लपकने को तैयार है
और कसने को तुम्हारी गर्दनो को 
मार दिए जागोगे तुम 
या सड़ा दिए जागोगे 
किसी काल कोठरी में 
इसलिए एलान कर दो 
अपनी गर्दनो को टूटने से पहले 
किसी काल कोठरी में जाने से पहले 
कि सब लोग डर गए हो 
और तैयार हो 
साहब हुज़ूर के रास्ते का 
पावड़ा बनने को सदा के लिए ।
(सुधार के सुझावों का स्वागत है )

गुरुवार, 20 जुलाई 2023

ये बारिश कैसी बारिश ।

मेरी कविता  ——

बारिश

बारिश  नहीं आयी
उफ़्फ़ कितनी गरमी है 
सूरज जला देगा क्या 
ये बारिश क्या करेगी 
आफ़त बन कर आयी है 
सब कुछ बहा देगी क्या 
देखो गिर गए 
कितनो के कच्चे घर 
और 
झोपड़ियाँ भी जवाब दे गयी 
अबकी बारिश समय पर आयी 
और उतनी ही आयी 
की अबकी खेत सोना उगलेंगे 
अभी बारिश तो आफ़त है 
भीग गया खेत और खलिहानों में सब 
अब साल कैसे बीतेगा 
कैसे होगी उसकी पढ़ाई और दवाई 
कैसे ब्याहेगा वो बिटिया 
बारिश आयी स्कूल की छुट्टी 
छप्प छप्प करते वो पानी में 
वो काग़ज़ की नाव बहाते 
वो बचपन कितना प्यारा लगता है 
उससे पूछो जो अभी है ब्याही 
और पति सीमा पर बैठा 
उन दोनो के मन की सोचो 
और 
वो दोनो भीग रहे है छत पर 
दोनो देख रहे दोनो को 
भीगा आँचल भीगा यौवन 
दोनो को है कितना जलाए 
वो मछरदानी पर प्लास्टिक बिछा रही है 
बालटी भगौने सब बिस्तर पर सज़ा रही है 
ख़ुद बैठी है पर बच्चों को 
इस कोने और उस कोने कर 
वो बारिश से बचा रही है 
पूरी रात नहीं वो सोयी 
सब झेला 
पर कभी नहीं क़िस्मत पर रोयी 
बारिश का मतलब उससे पूछो 
जो पूरा घर अब सुखा रही है 
बारिश तो अब ख़त्म हो गयी 
चरो तरफ हरियाली छायी

फूलों से अब लदी डालियाँ 
सबको ही अच्छी लगती है 
भूल गए सब क्या झेला था 
वो अच्छा या बहुत बुरा था 
फिर जीवन पटरी पर आया  
उफ़्फ़ 
ये बारिश कैसी बारिश ।

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

वो रास्ता वो सफर बहुत ही मुश्किल था पर कैसे भी पहुंचना है ये हमारा दिल था ।

वो रास्ता वो सफर बहुत ही मुश्किल था 
पर कैसे भी पहुंचना है ये हमारा दिल था ।

वो क्या कहलाता है ।

जो दिन भर हंसी 
चेहरे पर चिपकाता है 
अकेले मे रात को रोता 
फिर 
सुबह से मुस्कराता है 
वो भी एक इन्सा है 
जो खुद को 
और 
अपनो को बहलाता है ।
क्या कोई जानता है 
कि 
वो क्या कहलाता है ।

सोमवार, 17 जुलाई 2023

दीवारे उग जाती है रिश्तो के बीच ।

वही लोग 
जो छोटे शहरो मे  
कितने घनिष्ट 
और 
कितने अपने लगते है 
क्योकी खूब मिलते है 
सुख और दुख मे 
पर 
बड़े शहर मे आते ही 
बहुत दूर हो जाते है 
और बिला जाते है 
सारे रिश्ते और भावनायें 
नही मिलते सालो साल 
या 
संपन्न ज्यादा हो जाये 
तो 
छोटे शहर मे भी 
दीवारे उग जाती है 
रिश्तो के बीच ।

ऊंची दीवारे अपनो के बीच

बहुत ही अपने 
जब संपन्न हो जाते है 
या चढ़ जाते है 
ऊंची पायदाने 
उग आती है 
ऊंची दीवारे 
अपनो के बीच 
रिश्तो मे,भावो मे ।

बुलबुले हो गये रिश्ते

छोटे शहरो के 
शहद जैसे रिश्ते 
बड़े शहरो की 
जमीन पाते ही 
कड़वे हो गये
जो फेविकाल से
जुडे लगते थे 
बुलबुले हो गये ।

सोमवार, 10 जुलाई 2023

भीड़ और मैं

मैं भीड़ में गुम हो जाना चाहता हूँ 
पर 
भीड़ और मेरे बीच इतनी दूरी है 
कि 
न मेरी आवाज उसे सुनाई पड़ती है 
और न मैं उसे दिखाई पड़ता हूँ 
मुझे भी नही दीखती है वो भीड़ 
बस सुनाई पड़ती है कानो में आवाज़ 
कही दूर से अपुष्ट ,अस्पष्ट 
और 
में ढूढने लगता हूँ उसे पागल जैसे 
पर 
भीड़ ने लगातार दूरी को कायम रखा है 
और मुझे धलेक रही है लगातार 
एकाकीपन की तरफ ।

रविवार, 2 जुलाई 2023

पकौड़े खाओ चाय पियो ग़म भुलाओ

हार गये 
कोई बात नहीं 
थोड़ी नीद सो लो 
फिर 
पकौड़े बनावावो
और 
अच्छी सी चाय 
उसमे हार डाल दो 
और फिर पी जाओ 
परशुराम,विष्णू का
मंदिर बनाओ 
काशी जाओ जल चढाओ
गांधी लोहिया जेपी से
मुह छुपाओ
अब 
जय श्री राम का नारा 
उनसे ज्यादा जोर से लगाओ ।

शनिवार, 1 जुलाई 2023

दोस्तीयाँ ऐसी ही होती है ।

कुछ सम्बंध और दोस्तीयाँ               
ओस की बूंद की तरह होते है 
बहुत ही अच्छे लगते है 
पर 
हालात के बदलते ही 
यानी 
तेज धूप मे अचानक कही खो जाते है 
हा 
कुछ सम्बंध या दोस्तीयाँ          
तवे पर गिरी 
पानी की बूँद की तरह होती है 
तवे से मिलते ही 
छन्न से आवाज करती है 
और 
विलीन हो जाती है 
और 
आजकल के सम्बंध 
और दोस्तीयाँ ऐसी ही होती है ।

सरकार सरकार

सरकार सरकार 
जी सरकार 
मेरी सरकार 
जी सरकार 
तेरी सरकार 
जी सरकार 
क्या सरकार
हाँ सरकार 
कुछ कर दो सरकार 
कर दिया जा 
नहीं हुआ सरकार 
कोई बात नहीं जा 
नारा लगा और बटन दबा
फिर सरकार बना
जी सरकार 
क्या सरकार 
कुछ नहीं सरकार 
बाबू ने पैसे लिए 
काम हो गया सरकार 
आप को वोट दिया 
आप की नही चलती सरकार 
चुप हो जा स्वार्थी
जी सरकार 
कुछ पूछू सरकार 
हाँ पूछ ढोल गंवार 
आप बोले की
आप की सरकार 
ये भी बोले की 
हमारी भी सरकार 
पर र र र
क्या अररर र मुह खोल 
कुछ तो बोल 
नहीं सरकार 
मर जाऊंगा सरकार 
बोल जल्दी बोल 
वर्ना मरेगा 
सरकार 
आप तो कुछ नहीं 
आप की बात भी नहीं
आप की कलम भी नहीं 
आप बेकार 
किस बात की सरकार 
सब बेकार 
न कोई सरकार 
नौकर है सरदार 
हाँ क्या सच है 
फिर से बना सरकार 
फिर देख सरकार 
ना सरकार ना सरकार ।