रविवार, 31 जुलाई 2022

नई सज़ाएं

क्या कोई सत्ता 
और 
न्याय मिलकर 
ऐसी नई सज़ाये 
शुरु कर सकते है ? 
जीभ काट देने की सज़ा ? 
आंख फोड देने की सज़ा ? 
कलम तोड़ देने की सज़ा ? 
कीबोर्ड हटा देने की सज़ा?  
अक्षर खत्म कर देने की सज़ा ?
अशिक्षित रहने की सज़ा ?
दिमाग निकाल लेने की सज़ा ? 
वो सत्ता किसकी होगी 
वो न्याय किसका होगा 
आतंकित है मानवता 
उसकी कल्पना से भी 
उसकी सम्भावना से भी ।

शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

रहम कर मौला

दिल ,दिमाग़ ,कलम कीबोर्ड
साथ नही दे रहा है कुछ भी 
बहुत कुछ बोलना चाहता हूँ 
पर आवाज फँस जा रही है 
जब भी कलम उठाता हूँ 
अपने बोझ से गिर पडती है
दिल में जो झांकता  हूँ 
तो बस अंधेरा दिखता है 
दिमाग़ पर ज़ोर देता हूँ 
सर ज़ोर से फटने लगता है 
कीबोर्ड पर उँगलिया रखता हूँ 
तो उँगलियाँ झुलस जाती है 
ये क्या दौर आ गया है मौला 
रहम कर रहम कर रहम कर ।

रविवार, 24 जुलाई 2022

नदी में तैरती लाशें

नदी में तैरती लाशें 

जब लाइन लग गयी लाशों की
जब बोली लगने लगी लाशो की 
जब कंधे की क़ीमत हो गयी लाशो की 
जब लकड़ी ब्लैक होने लगी लाशो की 
जब टोकन मिलने लगे जलने को लाशो की 
तब
हाँ तब लाशें उठी और चल पड़ी 
नदियों की तरफ़ 
कि आग नही तो पानी ही सही 
जलेंगे नही तो कछुओं या किसी और 
जानवरों के भोजन के काम आ जाएँगे
आख़िर इनकी राख भी तो नदी में ही जाती है । 
वैसे भी कितना खर्च हो गया परिवारों का 
और खर्च को घर भी बिकवा दे क्या 
अपनो का 
और 
इन लाशो को तो अपने लेने ही नही आए 
लाश से रोग फैलता है 
पर लाश की सम्पत्ति और बैंक बैलेंस से नही 
इसलिए 
इन लाशों ने ख़ैरात से जलने से इनकार कर दिया 
और ख़ुद जाकर बह गयी नदी में 
किसी सरकार की कोई गलती नही 
गलती घर वाली की है 
की वो पैसे वाले क्यो नही 
और गलती लाशो की भी है 
की उसने अपनो को 
इतना कायर और स्वार्थी क्यो बनाया ।
नदी तो प्रतीक है इस व्यवस्था का 
और लाशें भारत की जनता का ।

हमको उंगली दिखा रहे है

आदरणीय Udaypratap Singh  जी की चार पंक्तियाँ पढ कर हमने भी लिख दिया चार ही पंक्तियाँ---

गलत जा रहे थे और गलत जा रहे है 
टोका तो हमको   उंगली दिखा रहे है 
गड्ढे मे गिरोगे   चमचे ताली बजाएंगे 
हम तो दुखी होंगे और आसू बहायेंगे ।

शनिवार, 23 जुलाई 2022

एलान कर दो कि डर गए हो



एलान कर दो कि डर गए हो 

ख़ुद ही एलान कर दो 
कि सबने ग़ुलामी मान ली है 
ख़ुद ही एलान कर दो 
कि सब डर गए हो  
ख़ुद ही एलान कर दो 
कि सबने सोचना बंद कर दिया है 
ख़ुद ही एलान का दो 
कि अब कोई सवाल नही पूछेगा 
ख़ुद ही एलान कर दो 
कि अब कोई चुनाव नही चाहिए 
चुन लिया है इसी आका को 
जब तक वो चाहे तब तक के लिए 
तुम्हारे पास और कोई चारा नही है 
तमाम क़ानूनी ग़ैर क़ानूनी हाथ 
लपकने को तैयार है
और कसने को तुम्हारी गर्दनो को 
मार दिए जागोगे तुम 
या सड़ा दिए जागोगे 
किसी काल कोठरी में 
इसलिए एलान कर दो 
अपनी गर्दनो को टूटने से पहले 
किसी काल कोठरी में जाने से पहले 
कि सब लोग डर गए हो 
और तैयार हो 
साहब हुज़ूर के रास्ते का 
पावड़ा बनने को सदा के लिए ।