मंगलवार, 28 जून 2016

रोटियों में आग है और आग से है रोटियां

रोटियों में आग है और आग से है रोटियां
आग में ही जल रही है ढेर सारी बोटियाँ
बोटियों और रोटियों की ये लड़ाई आम है
इस लड़ाई में राजनीती चलती है गोटियाँ ।
पेट में जब आग हो तो काम आये रोटियां
दिल में जब आग हो तो जल जाएँ बोटियाँ ।
क्रांति क्रांति का घोष गूंजता जब जनता में
ना रहती है रोटियां और न रहती है बोटियाँ ।
(पूरा कल करने की कोशिश होगी )

वो मुझसे मेरी धूप और सवेरा ले गया नीद की ख्वाईश थी तो अँधेरा ले गया ।

वो मुझसे मेरी धूप और सवेरा ले गया
नीद की ख्वाईश थी तो अँधेरा ले गया ।

शुक्रवार, 24 जून 2016

इस राजनीती की मंडी में ।

क्या कहा,किसने कहा और कब कहा,किससे कहा
क्यूँ याद करते हो साहब, इस राजनीती की मंडी में ।

शुक्रवार, 17 जून 2016

चलो मुझे गहरी नीद सो जाने दो ।

चलो अब बंद करता हूँ
खिड़कियाँ
कमरे की
और मन की भी
चिंतन की
और आँखों की भी
बुझा देता हूँ रौशनी
ताकि छा जाये अँधेरा
अंदर भी और बाहर भी
क्योकि
अँधेरा हमें सुकून देता है
और
हर चीज से
आँख बंद कर लेने का बहाना
सो जाता हूँ मैं भी
सोने दो लोगो को भूखे पेट
या फुटपाथ के थपेड़ों
और बारिश में
लगने दो आग
किसी की आबरू में
लूटने दो इज्जत या असबाब
मुझे क्या
मैंने तो गर्त कर लिया है
खुद को अँधेरे में
और बंद कर ली है खिड़कियाँ
ताकि
कोई चीख सुनाई न पड़े
और न दिखाई दे
बाहर के अँधेरे
मेरे अंदर के अँधेरे
अब मेरे साथी बन गए है न
चलो मुझे गहरी नीद सो जाने दो ।

रविवार, 12 जून 2016

अदानी अम्बानी के महलो में ठहाके लगा रहा था

मोदी जी ने डुगडुगी बजवाया
पूरे देश में मुनादी करवाया
की अब तो अच्छे दिन आ गए है
चारो और ख़ुशी के बादल छा गए हैं
सब पंद्रह पंद्रह लाख पा गए है
खाने से लेकर सब्जी तक और
डालर के दाम बहुत नीचे आ गए है
चीन हमारी जमीन छोड़ भाग गया है
पाक ने उस कश्मीर से बिस्तर बांध लिया है
क्या क्या बताऊ और क्या क्या दिखाऊ
बाहर निकलिए देखिये और
अपने हिस्से का अच्छा दिन ले जाइये
हमारे ऊपर अब सवाल मत उठाइए
ये सुन कर सब गरीब और बेकार जागे
अपना अपना थैला उठा कर बाहर भागे
पूछ आये हर संघी और भाजपाई दुकान पर
हर संघी और भाजपाई के मकान पर
कि भाई जी अच्छा दिन कहा है
सचमुच किसी को कही दिखा है                  
हर कोई कुटिलता से मुस्करा रहा था
बेचारा गरीब उदास हो वापस जा रहा था
और अच्छा दिन
अदानी अम्बानी के महलो में ठहाके लगा रहा था

बुधवार, 8 जून 2016

इंसान से अच्छा तो कांच है

इंसान से अच्छा तो कांच है
जब टूटता है
तो आवाज तो आती है
और
उफ़ निकली है
किसी की
कोई दौड़ता है उधर
कि क्या टूट गया
आवाज तो थी
पर किसके टूटने की
और
इंसान टूट जाता है
बुरी तरह
चूँकि कोई आवाज
नहीं आती
तो कोई नहीं दौड़ता
उसकी तरफ
उसका टूटना
उसके चेहरे पर
उभर आता है
पर किसके पास है वक्त
की चेहरे देखता रहे
और
रख दे पीठ पर हाथ सहारे को
और
सहला दे इतनी गहरी
चोट को
हा इंसान से अच्छा
और
खुशकिस्मत तो कांच है ।

अच्छा अब मैं इतिहास को मिटाता हूँ

अच्छा अब मैं इतिहास को मिटाता हूँ
जमी पे जमी और सच को बिछाता हूँ
कल आप को मैं भविष्य दिखलाता हूँ
दुश्मनो के सामने इक आइना लगाता हूँ ।

शुक्रवार, 3 जून 2016

खेतो और बगीचो में बारूद बोने वाले

खेतो और बगीचो में
बारूद बोने वाले
ये नए किसान
कहा से आ गए
इन खेतो और बगीचो में
यहाँ तो पैदा होती थी फसले
और
भारती थी पेट इन्सानों का
और
फलते थे फल मौसम के अनुसार
और
पेट भरने के साथ साथ
लड़ते थे इंसान में बीमारियो से
पर ये पेट क्या पूरा शरीर
उडा देने वाले
और साँसे छीन लेने वाले
मौत बाँटने वाले
खेतिहर किसने पैदा कर दिया
इसी समाज में और खेत में
रोकना ही होगा
इन नए किसानो को
और बचाना ही होगा
इंसानियत को
चाहे उसके लिए
बारूद से इन नए किसानो को ही
क्यों न उड़ा दिया जाये ।