गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

ये समन्दर का किनारा रेत है और कुछ नहीं ।

ये समंदर का किनारा
रेत है और कुछ नहीं
और
पानी हां पानी भी बहुत है
प्यास है खूब प्यास
पर पी सकते नहीं है ।
किस लिए फिर
इसकी चाहत
क्या मिलेगा
इन लहरों को गिनकर
या
इनसे टकरा कर
क्या मिलता है
इस रेत से दिल लगाकर
क्यों जाते है हम
इतनी दूर दूर
बस ये रेत देखने
लहरे गिनने
या
लहरों में गिर जाने को
मुझको तो
कुछ समझ न आया
सब माया है केवल माया ।
ये किनारा ,ये लहरे औ ये पानी
जो खारा है
आखो के पानी से भी क्या
ये बालू कितनी निर्मम है
मेरे जीवन से भी क्या ।
ये समन्दर का किनारा
रेत है और कुछ नहीं ।

घृणा

इतनी घृणा
और
इतना जहर
कहाँ रखते है लोग
की
उगलते भी नही
और
निगलते भी नही
और
अपनो को
पराया बना लेते है ।

बेतार संदेश

पिता हो ,माँ हो
बेटा या बेटी
पता नही कैसे
समझ जाते है
एक दूसरे का दर्द
और
अंदर अंदर छटपटाते है
एक दूसरे के लिए
कोई पैथी नही पहचानती
न कोई विज्ञान
इस बेतार संदेश को
गर
दर्द में शामिल रहे हो
कभी या ज्यादातर
और
दर्द भोगे हो साथ साथ
मजबूत चट्टान बनकर
एक दूसरे के लिए
और
जुड़े हो दिल और आत्मा से ।

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

रातें
कितनी स्याह होतीहै
क्यो होती है
इतनी स्याह रातें
ज्यो ही सूरज
पच्छिमी की खोह में
डुबकी लगाता है
पूरब से फैलने लगती है
स्याह रात
टिमटिमाते हुई
रोशनियां भी
जुगनू से ज्यादा
कुछ नही होती
कितनी भयानकता
समेटे होती है स्याह रात
जिंदगी गर्त हो जाती है
धीरे धीरे इसके आगोश में
और
कितना अकेलापन
तारी हो जाता है
जिसमे जिंदगी
सवाल बन जाती है
इन सवालो का
कोई जवाब नही होता
खुद से ही बाते करना
खुद को तसल्ली देना
खुद के अकेलेपन से लड़ना
और लड़ते लड़ते
नीद के लिए लड़ना
ताकि आंख बंद कर
अनदेखा कर सके
इस स्याह अंधेरे को
और अकेलेपन को
पर
कितना स्याह है सब कुछ
चलो आंखे बंद कर लेते है
और
सोच लेते है
की
अकेले नही है हम
तमाम सूरज उग गए है
हमारी जिंदगी में ।
उफ्फ ये स्याह अंधेरा !

कुछ सवाल है जो अनुत्तरित है

कुछ सवाल है
जो अनुत्तरित है
कुछ जवाब है
जो खुद
सवाल बन गए है
सिलसिला टूटता ही नही
न सवालो का न जवाबो का
क्रिया और प्रतिक्रिया जारी है
पर कही तो कोई दीवार होगी
या
होगा इस सफर का डेड एंड
जो रोक देगा क्रिया को
और प्रतिक्रिया को भी
और
फिर सब होगा शांत शांत ।

सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

घृणा की इंतहा

वर्दी पहन कर
कहाँ से आती है
इतनी घृणा
कि
जिन्हें जानते भी नही
पहचानते भी नही
जिन्होंने
कुछ बिगाड़ा भी नही
उतार देते है गोलियां
उनके सीनो में
उनके सर में
वो औरत हो ,बच्चा हो
बूढ़ा या मासूम बेटी
क्या
हाथ नही कांपते विल्कुल
और
नही दिखता इन चेहरों में
चेहरा अपनी बहन , बेटे ,बेटी
या भाई , बाप या बाबा का
और तब भी जब
कोई छोटी से बेटी भी
तन कर खड़ी हो जाती है
रायफल के सामने निहत्थी
कहाँ से आती है ये नफरत
और
कब खत्म होगी ये नफरत
ये हथियारों और मौत का खेल
इसे बंद करना ही होगा
और
बोना हीं होगा
इंसानों की जिंदगी में
प्रेम का गुलाब ,चंपा और चमेली ।

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

ये अंधेरा कितना अंधेरा

ये अंधेरा कितना अंधेरा
चारो ओर केवल अंधेरा
नही कही से सूरज दिखता
नही रोशनी कैसी भी
आगे जाए , कैसे जाए
कदम बढ़ाए गिर ना जाये
ठिठके ठिठके कब तक रहना
अनिश्चितता कब तक सहना
कोई तो हो जो राह दिखाये
वो स्वर्ग हो या नरक हो
वो भी मेरे साथ मे जाए
पर अब ऐसा कौन मिलेगा
जीवन मे कब कमल खिलेगा
जो था वो तो बिला गया
ना जाने वो कहा गया
अब तो बस जो है हम है
चाहे अंधेरा मिटा सकें
या खुद को ही गंवा सके
इसको तय करेगा कौन
प्रकृति मौन हम भी मौन ।