पिता हो ,माँ हो
बेटा या बेटी
पता नही कैसे
समझ जाते है
एक दूसरे का दर्द
और
अंदर अंदर छटपटाते है
एक दूसरे के लिए
कोई पैथी नही पहचानती
न कोई विज्ञान
इस बेतार संदेश को
गर
दर्द में शामिल रहे हो
कभी या ज्यादातर
और
दर्द भोगे हो साथ साथ
मजबूत चट्टान बनकर
एक दूसरे के लिए
और
जुड़े हो दिल और आत्मा से ।
पहचान उन सभी का मंच है जो जिंदगी को जीते नहीं जीने का निर्वाह करते है .वे उन लोगो में नहीं है जिन्हें जीवन मिला है या जीने का मकसद उनके साथ रहता है .बस जीने और घिसटने के बीच दिल वालो की कलम से और दिल से जो निकल जाता है वही कविता है .पहली कविता भी तों आंसू से निकली थी .आंसू अपने दर्द के हो या समाज के ,वे निकलेंगे तों कविता भी निकलेगी और वही दिलवालो की ;पहचान ;है
गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018
बेतार संदेश
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