गुरुवार, 31 जनवरी 2013

मेरा अपना दोस्त ही क्यों न लौटा देते

कितने बदकिस्मत होते है वे
जिनका कोई साथी नहीं होता
उन गिने चुने लोगो में एक मै भी
कभी कोई साथी नहीं मिला मुझे
जब छोटा था तो
गरीब था, इसलिए अमीर नहीं बने
जो गरीब थे, वे अमीर समझ कर
साथी नहीं बनते थे
कितनी दोहरी जिंदगी थी मेरी
मैंने गरीब को दिखाया अपना
बिना जूतों वाला पैर स्कूल में
पर उसने विश्वास नहीं किया
अमीर को दिखाया, पिता का नाम
पर जेब देख कर, वो नहीं माना
इस तरह, मेरा कोई दोस्त नहीं बना
समाज व्यवस्था में, एक दोस्त बना
व्यवस्था की मजबूरी के कारण
वो मेरी पत्नी थी
पर जिसकी किस्मत में, दोस्त न हो
उसे पत्नी दोस्त भी क्यों और
ईश्वर ने छीन लिया, ये दोस्त भी
बिना दोस्त के जिंदगी क्या
पर सवाल तो अपनी जगह है की
मेरा कोई दोस्त नहीं है 
नकली दोस्तों
मै जनता हूँ की, मै बहुत अकेला हूँ
अपनों की भीड़ में भी
मेरा अपना दोस्त ही, क्यों न लौटा देते
जैसा भी था ,पर मुझे तो प्यारा था ।

कल रात वो मुझसे मिली सपने में

कल रात वो मुझसे मिली सपने में
दुनिया से जाने के इतने सालो बाद
कुछ नहीं बोली बस देखती रही
टुकुर टुकर मेरी तरफ
आँखे गीली थी
फिर झरना बन गयी 
फिर भी कुछ नहीं बोली
बस निहारती रही मुझे निरीहता से
मुझे बेबस और टूटता देख कर भी
कुछ नहीं कर पाने ,सहारा नहीं दे पाने
प्यार से सहला नहीं पाने की बेबसी से
फिर कातर निगाहों से मुझे देखा और
मुस्कराने की मुश्किल सी कोशिश की
और फिर हाथ हिलाती चली गयी
मै समझ नहीं पाया देख नहीं पाया की
मजबूत होकर रुकने का इशारा था
या फिर बुला गयी, मुझे भी अपने पास ।

मै सबसे अलग हूँ ।

पता नहीं क्यों आजकल
कुछ बिखरता रहता है हर वक्त 
कुछ टूटता रहता है अंदर अंदर
पता नहीं कहा से पैदा हो गया है
आंसुओ का सैलाब अंदर अंदर
निकलता है तो वेग के साथ
और रोकता हूँ तो उफनता हुआ
बांध बन जाता है
बांध जब सचमुच टूटेगा अंदर का
तो क्या वैसी ही तबाही फैलाएगा
जैसी फैलाता है जमीन पर बांध
बांध को कस कर रोकना ही होगा
चाहे रोकने में खुद को मिटना पड़े
पर बहुत कुछ हर क्षण
ख़त्म हो रहा है, छीज रहा है
अंदर अंदर
क्या सभी के साथ ऐसा ही होता है
क्या सभी अपनों बहुत अपनों
के ही मारे और सताए हुए होते है
नहीं न ! तभी तो लोग कहते है की
मै सबसे अलग हूँ ।