गुरुवार, 31 जनवरी 2013

मै सबसे अलग हूँ ।

पता नहीं क्यों आजकल
कुछ बिखरता रहता है हर वक्त 
कुछ टूटता रहता है अंदर अंदर
पता नहीं कहा से पैदा हो गया है
आंसुओ का सैलाब अंदर अंदर
निकलता है तो वेग के साथ
और रोकता हूँ तो उफनता हुआ
बांध बन जाता है
बांध जब सचमुच टूटेगा अंदर का
तो क्या वैसी ही तबाही फैलाएगा
जैसी फैलाता है जमीन पर बांध
बांध को कस कर रोकना ही होगा
चाहे रोकने में खुद को मिटना पड़े
पर बहुत कुछ हर क्षण
ख़त्म हो रहा है, छीज रहा है
अंदर अंदर
क्या सभी के साथ ऐसा ही होता है
क्या सभी अपनों बहुत अपनों
के ही मारे और सताए हुए होते है
नहीं न ! तभी तो लोग कहते है की
मै सबसे अलग हूँ ।

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