सोमवार, 22 जनवरी 2024

जानता हूं तुम मुझे नही वोट को ढूंढ रहे हो

चारो तरफ है कानफोडू शोर
कि राम आयेंगे राम आयेंगे 
राम है हतप्रभ की कहा गया मैं
मैं तो हूं कण कण में 
शबरी के बेर में केवट की नाव में 
पत्थर बनी अहिल्या में 
ये कलयुग वाले मुझे कहा ढूंढ रहे है 
सब जगह ढूंढ रहे है शोर मचा कर 
बस नही ढूंढ रहे है अपने मन में 
क्योंकि मन आइना होता है
जो शर्मिंदा कर सकता है
भाई से मुकदमा लड़ रहे भक्तो को
अपनी सीता को घसीटते हुए भक्तो को 
अहिल्याओ से बलात्कार करते भक्तो को 
शबरी और केवट की उपेक्षा करते भक्तो को 
मिलावट करते ,जहर बेचते 
मुंनाफाखोरी करते भक्तो को 
बच्चियों को देख कर 
आंख में नाखून उगा लेने वाले भक्तो को
अरे मूर्खो मैं तुम्हे कभी नही मिलूंगा 
मैं तो महल में नही जंगल में हूं
शबरी और केवट की झोपड़ी में हूं ।
महल मुझे रास नहीं आता है मेरा दम घुटता है 
और तुम मेरा दम घोट देना चाहते हो 
और चाहते हो कि में तुम्हे मिल जाऊं 
मैं जानता हूं तुम मुझे नही वोट को ढूंढ रहे हो ।।

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

जीवन का कोहरा

कितना भयानक
कुहरा हो जाता है 
अकसर आजकल 
कुछ भी नही दीखता
थोडा सा भी आगे 
पर 
ये कुहरा तो
इस मौसम मे होता है 
थोडे दिन 
कुछ लोगो के जीवन मे तो 
पता नही कब से 
कुहरा है 
कुछ भी स्पष्ट नही 
अगले पल का भी 
इस कुहरे से 
जीवन का कुहरा 
ज्यादा भयानक होता है

मंगलवार, 16 जनवरी 2024

अब इतनी ठंड क्यो लगती है

अब इतनी ठंड क्यो लगती है 
तब तो बिलकुल नही लगती थी 
जब होती थी एक हाफ़ शर्ट 
जब स्वेटर भी नही पहनते थे 
ना पैर में जूते और मोजे 
बस चप्पल पहन निकल लिए 
तब भी ठंड कहा लगी थी 
जब जनवरी की इसी ठंड में 
पहुँच गए थे शिमला 
फिर कुफ़री में बर्फ़ के पहाड़ पर 
कितना खेले थे बर्फ़ से 
कितने लेटे थे बर्फ़ में 
और कितने बर्फ़ के गोले बना कर 
मारे थे एक दूसरे को 
पर ठंड तो नही लगी थी 
बर्फ़ के गोले फेकने से गर्मी आयी थी 
जो पिघल गयी थी 
तब अब क्यो लग रही है ठंड ?

बुधवार, 10 जनवरी 2024

अभियुक्त

देश के मालिक नागरिक
कभी भी बन सकते है अभियुक्त 
आजादी मिल गई तो क्या
हक भी मांगोगे ?
मांगोगे रोटी और रोजगार 
कपड़ा और मकान 
और इतने बड़े अपराध में भी 
अभियुक्त नही बनोगे ?
निकलोगे सड़क पर हाथ लहराते हुए
और नारे लगाते हुए
और डालोगे खलल 
साहब बहादुर की नीद में 
फिर भी अभियुक्त नही बनोगे ? 
गीता में पढ़ाया है 
सिर्फ कर्म करो सत्ताधीशों के लिए 
और कोई इच्छा मत करो 
और 
ये नही मानने वाले को द्रोही माना जायेगा 
देशद्रोही ,धर्मद्रोही और राजद्रोही ।
अभियुक्त अभियुक्त और अभियुक्त ।

नारी तुम देवी हो

नारी तुम तो देवी पर मंदिर में 
नारी तुम तो श्रद्धा हो पर पन्नो में 
नारी तुम तो शक्ति हो नवरात्रि में 
नारी तुम तो सीता हो रामायण में 
नारी तुम तो सावित्री हो 
पति के लिए लड़ जाने वाली 
ये अलग बात है कोई पति नही लड़ा 
पत्नी की खातिर 
तुमको खुश रहने को क्या  कम है 
तुम मंदिर में पूजी जाती 
नवरात्रि में घर घर आती 
पर नारी तुम क्या हो तुम भी जानती 
बर्तन कपड़े चूल्हा पोछा और बिस्तर है 
इतना ही संसार तुम्हारा वरना डंडा 
जिस दिन द्रोपदी बन केश बांध लोगी तुम 
उस दिन हा उस दिन तुम शक्ति हो जावोगी ।

गुरुवार, 4 जनवरी 2024

इतने बाण लग चुके

कुछ लोगों के शरीर ही नही 
बल्कि आत्मा तक पर 
इतने बाण लग चुके होते है 
जमाने के 
कि 
कोई और बाण 
लगने की जगह ही 
नही बची होती है ।
अगर कोई चलेगा 
तो 
बाण पर ही लगेगा 
और 
उसे और गहरे तक 
पैबस्त ही कर देगा न 
घाव 
और कितना गहरा हो जाता है 
ऐसे में 
और दर्द भी कितना बढ़ जाता है 
उस बाण से ।

अगर राम जानते होते

राम को याद आ गई अपनी अयोध्या 
और उतर आए हाल चाल लेने 
देखा उन्होंने हलचल , नारो का शोर 
तो पूछ लिया किसी से 
क्या ये अयोध्या ही है 
जवाब मिला हा तो भागने लगे वापस 
पकड़ लिया नारा लगाती भीड़ ने 
पूछने लगे की कौन हो 
और ये बनवासी का वेश क्यों 
क्या किसी और धर्म के हो 
और कोई कांड करने आए हो वेश बदल कर 
राम बोले मैं राम हूं 
जिसका बहुत जोर से मारा लगा रहे हो
पर इतने गुस्से में क्यों हो तुम लोग 
ऐसा तो मेरा महल भी नही था 
जैसा तुम लोग बना रहे हो 
मुझे महल में रहना कहा पसंद
मैं तो बनवास में खुश था 
क्योंकि महल ने दिया बनवास 
और फिर छीन लिया सीता 
पर तुम लोग मेरी प्रतीमा 
इस महल में क्यों लगा रहे हो 
क्यों बहाया खून तुम लोगो ने और किया झगड़ा 
जबकि अयोध्या का तो मतलब ही था 
जहा युद्ध नही हो 
और क्या आडंबर कर रहे हो 
अरे अगर मैं महल में रहा होता 
तो बस होता एक राजा 
लेकिन बनवासी बनके बन गया में राम 
जिसकी कथा सुनते और सुनाते हो
भीड़ उग्र हुई की जरूर ये है कोई पाखंडी 
कोई हिंदू और राम विरोधी 
पर कोई हाथ उठाता
तभी प्रकट हो गए विराट रूप में हनुमान 
और भीड़ भागने लगी 
की ये कैसा विशाल बानर है 
कोई बोला बंदूक लाओ गोली चलाओ
राम बोले की जब तुम मुझे जानते नही हो 
तो व्यर्थ का ये सब आडंबर क्यों 
जब तुम मुझे मानते नही हो 
तो इसने साल झगड़ा क्यों
अगर जानते होते और मानते होते 
तो मेरा मंदिर और मूर्ति नही बनाते
बल्कि मुझे और हनुमान को अपनाते 
तब दंगा नही करते 
बल्कि राम बनने 
और सबको राम बनाने की कोशिश करते 
तब ये तनाव और शोर नही होता 
शोर और क्रोध मुझे पसंद नही है 
जाओ घरों में जाओ और सोचो 
मुझे मंदिर में नही अपने दिल में बैठाओ 
में वही मिलूंगा
अभी तो मैं चलूंगा 
क्योंकि घुटन हो रही है मुझे 
इस नकली राजनीतिक अयोध्या में 
चलो हनुमान 
और चले गए 
अनंत आकाश में राम और हनुमान भी 
चर्चा अब भी यही थी की कोई मायावी था 
बच के निकल गया 
हमारा कारज निस्फल करने आया था 
और साथ में मायावी बंदर भी लाया था 
वही खड़ा 
एक सचमुच का राम और हनुमान भक्त बोला 
अरे मूर्खो जो सच में सामने था 
और खुद को पाने का मार्ग बता रहा था 
तुम उसे दुत्कार रहे हो  
और जो है ही नही उसे सजा संवार रहे हो ।