रविवार, 31 अक्तूबर 2021

बचा सको तो बचाओ अपनो को

संजय दत्त हो या आर्यन
सब परिवारों मे 
समय न होने
आपसी बातचीत 
और
आपसी विश्वास नही होने
बड़े और समाज तथा
कानून से बड़े होने के
एहसास का नरीजा है
सावधान रहिये 
कल हम और आप 
किसी के भी घर मे हो सकता है 
बिना गुनाह मे शामिल हुये 
पूरे परिवार को 
गुनाहगार बनते देखा है मैने
वो गुन्डे के मा बाप हो 
या बलत्कारी के 
वो डकैत के पिता हो 
या झूठे किसी मामले मे
फंस गये बच्चे के 
इसलिए 
आंखे खोल कर रखो 
जितना ज्यादा बच सको
बचाओ
बचा सको तो बचाओ अपनो
को
सिखा सको सिखाओ
अपनो को बचना गुनाह से 
और गुनाह के झूठे आरोप से भी ।

शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

जिंदगी अपनो की अमानत है

जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही 

लोग आत्महत्या कैसे कर लेते है 
कितना तकलीफदेह होता है 
जान कर जान देना
जहर पिया तो उसका डर 
गोली चलाने मे कांपते हाथ 
और 
उसके दर्द का एहसास 
नस काटी तो दर्द 
और 
बहते खूँन की दहशत 
और 
फासी लगाया तो कितनी हिम्मत 
गर्दन लटक जाने 
सांस घुट जाने की तकलीफ ।
कैसे हिम्मत आती है 
और 
कर लेने के बाद 
आखिरी क्षणो मे 
सब किया वापस हो जाये का 
ख्याल आता है क्या 
क्या तब जिन्दगी से 
प्यार महसूस होता है ?
क्या तब इच्छा होती है 
कि 
लड़ले अंतिम लडाई पर ये नही ।
क्या ये क्या वो 
पर ये सब बतायेगा कौन ?
न ये न वो ।
और 
पीछे छूटो का दर्द , 
असहाय स्थिति , 
अनिश्चित कल 
और 
मौन मौन बस मौन ।
मत करो ऐसा 
जिसका कोई जवाब नही 
जिसका कल कोई हिसाब नही ।
लडो और खूब लडो 
क्योकी जिन्दगी सिर्फ तुम्हारी नही 
अपनो की भी अमानत है ।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

राजनीति व्यापार हो गयी

राजनीति व्यापार हो गयी 
हर कोई माल कमाता है 
बाप ने कितनी मेहनत की 
और बेटा मौज उड़ाता है  ।

रविवार, 17 अक्तूबर 2021

मुल्क को बस सताए जा रहे है

बाते बस बाते बनाये जा रहे है

सभी को बस सताए जा रहे है

जहन्नुम जिंदगी को कर दिया है 

बेशरम    मुस्कराये   जा रहे है

वादे क्या किये थे तब सभी से

अब  जुमले   बताये  जा रहे है

कोविड से तो लाखो मर गये थे  

ये  तो भाषण सुनाये जा रहे है 

लाखो मजदूर निकले थे घरो से 

उन पर डंडा बजाये जा रहे है 

चेहरे पर शिकन इनके कहा है 

मौत के वजहें  गिनाये जा रहे है

गांधी को रोशनी दुनिया ने माना

ये गोडसे को चमकाए जा रहे है ।

 

मैंने कहा मिलते नहीं

मैंने कहा मिलते नहीं 

उसने कहा की क्यों मिले 

मैंने कहा बस चाय पर 

उसने कहा काफी पसंद 

मैंने कह वो ही सही 

उसने कहा रहने ही दो 

मैंने कहा ऐसा भी क्या 

उसने कहा ऐसा भी क्या 

कि ये भी सही वो भी सही 

टिकते नहीं तुम चाय पर 

तो भरोसा तुम पर क्यों 

कल भी टिकोगे या भगोगे 

मैंने कहा वादा रहा 

उसने कहा ज्यादा रहा 

जाने ही दो तुम भी चलो 

किसी और को देखो कही

उससे मिलो पर अब टलो 


 



शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

नदी में तैरती लाशें

नदी में तैरती लाशें 

जब लाइन लग गयी लाशों की
जब बोली लगने लगी लाशो की 
जब कंधे की क़ीमत हो गयी लाशो की 
जब लकड़ी ब्लैक होने लगी लाशो की 
जब टोकन मिलने लगे जलने को लाशो की 
तब
हाँ तब लाशें उठी और चल पड़ी 
नदियों की तरफ़ 
कि आग नही तो पानी ही सही 
जलेंगे नही तो कछुओं या किसी और 
जानवरों के भोजन के काम आ जाएँगे
आख़िर इनकी राख भी तो नदी में ही जाती है । 
वैसे भी कितना खर्च हो गया परिवारों का 
और खर्च को घर भी बिकवा दे क्या 
अपनो का 
और 
इन लाशो को तो अपने लेने ही नही आए 
लाश से रोग फैलता है 
पर लाश की सम्पत्ति और बैंक बैलेंस से नही 
इसलिए 
इन लाशों ने ख़ैरात से जलने से इनकार कर दिया 
और ख़ुद जाकर बह गयी नदी में 
किसी सरकार की कोई गलती नही 
गलती घर वाली की है 
की वो पैसे वाले क्यो नही 
और गलती लाशो की भी है 
की उसने अपनो को 
इतना कायर और स्वार्थी क्यो बनाया ।
नदी तो प्रतीक है इस व्यवस्था का 
और लाशें भारत की जनता का ।


सोमवार, 11 अक्तूबर 2021

ये रस्सियाँ

ये रस्सियाँ ----

आज तक समझ मे नही आया 
कि 
क्यो औरतों को 
रस्सियो से बांध दिया जाता है 
उनके गर्दन मे रस्सी
उनकी कमर मे रस्सी 
उनके हाथ मे रस्सी 
और
उनके पांव मे रस्सी 
जो 
उनकी खूबसुरती को 
बदसूरत बना देती है 
वैसे तो 
कुछ कमजोर पुरुष भी
रस्सियो मे बंध जाते है
अपनी अज्ञानता से 
या फर्जी आस्था से 
पर 
क्या बनाया या बिगाडा
किसी का इन रस्सियो ने
सिवाय गुलाम बनाने के
पहले जानवर गुलाम बने और 
रस्सियो मे बंध गये 
और 
अब कुछ इन्सान भी
कब मुक्ति मिलेगी 
इन इन्सानो को 
इन रस्सियो से 
ये सवाल आज मेरा है 
पर कल सबका होगा 
जानवर भी 
कहा बधना चाहते है रस्सियो मे 
और कोशिश करते रहते है 
तोड देने की 
पर इन्सान ने तो
इन रस्सियो को 
खुशी से कबूल किया है 
तो 
इन्हे कब और कौन तोड़ेगा ? 
इन्सान स्वाभाविक
नैसर्गिक सुन्दरता के
साथ कब जिएगा ?