हाँ मैं खुली किताब हूँ
जिसके अक्षर
वक्त की बारिश ने धो दिए है ।
कैसे पढ़े कोई
हाँ तुम खुली किताब हो
पर उसकी लिपि मुझे पढनी नहीं आती
तो हम पढ़े कैसे किताबे खुली है और
हवा में फड़फड़ा रहे है
इसके पन्ने उड़ जाने को आतुर
पर नियति के धागों ने
कस कर पकड़ रखा है
और खुली किताबे खुली होकर भी
अनबूझ और अपठनीय है
अपनी नियति और जिंदगी की तरह ।
जिसके अक्षर
वक्त की बारिश ने धो दिए है ।
कैसे पढ़े कोई
हाँ तुम खुली किताब हो
पर उसकी लिपि मुझे पढनी नहीं आती
तो हम पढ़े कैसे किताबे खुली है और
हवा में फड़फड़ा रहे है
इसके पन्ने उड़ जाने को आतुर
पर नियति के धागों ने
कस कर पकड़ रखा है
और खुली किताबे खुली होकर भी
अनबूझ और अपठनीय है
अपनी नियति और जिंदगी की तरह ।