रविवार, 15 फ़रवरी 2015

हाँ मैं खुली किताब हूँ

हाँ मैं खुली किताब हूँ
जिसके अक्षर
वक्त की बारिश ने धो दिए है ।
कैसे पढ़े कोई
हाँ तुम खुली किताब हो
पर उसकी लिपि  मुझे पढनी नहीं आती
तो हम पढ़े कैसे  किताबे खुली है और
हवा में फड़फड़ा रहे है
इसके पन्ने  उड़ जाने को आतुर
पर नियति के धागों ने
कस कर पकड़ रखा है
और खुली किताबे खुली होकर भी
अनबूझ और अपठनीय है
अपनी नियति और जिंदगी की तरह ।

अपने के नाम पत्र ---

अपने के नाम पत्र ---

आप खुश है न
आप जैसा छोड़ कर गए थे
अपने हो या घर हो या सपने
मैंने सम्हाल कर रखा है न
आप तो नहीं हो सकता था मैं
पर कोशिश तो किया सामर्थ्य भर
बड़ी जैसे बाकी दो की माँ हो गयी है
और छोटी ने घर को घर बना रखा है
बेटा हम सबका सहारा हो बन गया है
बेटियों की शादी होने वाली है
बस यही समाचार नया है
एक की तय हो गयी है
बहुत अच्छा बेटा और परिवार है
दूसरे की भी शायद जल्दी हो जाएगी
आप की दोनों बेटियाँ अपने घर जायेंगे
आप ने जो संस्कार दिए और व्यवहार
उससे ये अच्छा घर बनायेंगी
समाज को आप की ही तरह रास्ता दिखाएंगी
हां हां फिर आप का बेटा भी बहू लायेगा
पर आप की जगह तीनो को
रास्ता कौन दिखायेगा
आप ने कहा था न की अच्छी तरह रहिएगा 
तो मैं बहुत अच्छा हूँ और अच्छा ही रहूँगा
कोई तकलीफ होगी तो आप से कहूँगा
आप खुश है न
कुछ गलत तो नहीं हो रहा है न
जहा है वही से बच्चो को आशीर्वाद दीजिये
और रास्ता दिखाइएगा
हाँ जब शादी हो तो बच्चो पीछे बैठ जाइएगा
आप ने कहा था हर वक्त आसपास ही रहेंगी
पर ये नहीं पता की जो माँ समझाती है
वो आप बेटियों से कैसे कहेंगी
कन्यादान तो दोनों करते है न
मैं अकेले कैसे करूँगा
आप ने बताया ही नहीं
कि अपनी जगह कन्यादान को किसको कहूँगा
अच्छा आप आराम करिए सब हो जायेगा
आप का संबल रास्ता दिखायेगा
अब जिस दिन बेटियां विदा हो जाएँगी
तब अकेले में हम दोनों खूब बातें करेंगे
फोटो देख देख खुश होंगे और
कुछ ऐसा भी तो होगा जिस पर
पहले की तरह देर तक हँसेंगे
आप खुश हैं ना |
तो आज के लिए बस इतना ही |

आप खुश तो हाँ न
देखिये जो करने लॉयक था
उससे भी अच्छा किया मैंने
कहा से किया
आप जाने दीजिये न
बताइये आप खुश तो हैं न
कैसी है आप की बेटियां
सब अच्छा लग रहा है न
मैं अकेला !
वो तो ईश्वर ने तय कर दिया था
आप को बुला कर
और मुझे अकेला बना कर
अच्छा ज्यादा बात नहीं कर सकता
जुबान के साथ हाथ भी रुंध रहा है ।










शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

मजबूत हो गर आप चाहे जो खरीद लो

मजबूत हो गर आप चाहे जो खरीद लो
कलम हो जुबान हो या फिर जमीर हो ।

अंदाज क्या है लोगो की आशिकी का
गुलों की बात करते गोली  मार देते हैं ।

इतने झूठ बोल कर अपना बनाये रखना
बाजीगरी है कैसी और क्या खूब हुनर है ।

ना मैं थकूंगा न मैं हरगिज झुकूँगा

ना मैं थकूंगा न मैं हरगिज झुकूँगा
खुशफहमी न पालो नहीं मैं रुकुंगा
न जाने कितने झंझावातो को देखा
कितनी कठिन दिन रातो को देखा
न पहले रुका न अब मैं रुकुंगा
न पहले थका न अब मैं थकूंगा ।
चोटी  पर चढ़ कौन बसता वहां है
समन्दर में जा कौन रुकता वहां है
मैं भी सैलानी हूँ मैं क्यों बसूँगा
मेरा भी सफ़र है मैं क्यों रुकूंगा
ये जीवन है जब तक चलते ही जाना
आसमा पर उड़ना जमी पर भी आना
अंतिम सफ़र आसमा पर बसूँगा
जमी घूम ली तो यहाँ क्यों रुकूंगा
इश्वर होने की ग़लतफ़हमी है तुमको
मैं इंसा हूँ  खुद पर भरोसा है मुझको
हैं मेरे पांव अपने मैं उनसे चलूँगा
न पहले रुक था न अब मैं रुकुंगा
कोई खुद को भगवान माने तो माने
अपनी सारी शक्ति मुझ पर ही ताने
ऐसी शक्ति से मैं न हरगिज डरूंगा
न पहले रुका था न अब मैं रुकुंगा ।