गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

कल बना कर रहूँगा अपने जैसा |

हो जाती है कुछ गलतियाँ
भूल जाओ उन्हें आगे बढ़ो
कुरेदोगे तो गलती ही होगी
ख़ुश रहना है तो आगे बढ़ो

कभी बहुत बीमार हो गए थे
कभी लगी थी बहुत सी चोटें
क्लास में फेल हो गए कभी
कभी छूट गयी थी ट्रेन कही

तो क्या सब याद रखते हो सब
घुटते रहते हो उन सब के लिए
क्या वापस ला सकते हो वो सब
पलट सकते हो घड़ी की सूइयां 

नहीं न, तो आगे बढ़ो जीत लो
हर वो किला अपने इरादों का
पहन लो अपने धुले हुए कपडे
और कस कर जूते निकल पडो

बना लो जिंदगी को यूँ खुशनुमा
भूल कर की कहा और कब गिरे
और सोच कर की कल तो मेरा है
कल बना कर रहूँगा अपने जैसा | 

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

तुम भी डूब कर फिर चमक सकते हो |

आप कितने भी मजबूत हो
आप के इरादे कितने भी अटल
पाँव कितने भी अभ्यस्त
और हाथ कितने भी हुनरमंद
मन कितना भी वश में
और दिमाग कितना भी तीक्ष्ण
पर फर फिर भी
जीतने वाले घुड़सवार की तरह
हर युद्ध फतह करने वाले योधा जैसे
हर कुश्ती जीतने वाले पहलवान जैसे
सारी पहाड़ियाँ चढ़ चुके पर्वतरोही जैसे
किसी कमजोर छण में
आप भी धराशायी हो ही जाते है |
पर गिर कर फिर सम्हल जाना
अगर जानते आप
तो फिर
भविष्य आप का भविष्य होता है
और
गिरने की कमजोरी से कमजोर हुए
या नहीं निकल पाए
इस एहसास से
तो घुटन भविष्य का गला घोट देती है |
इसलिए भूलो हर फिसलन को
और हर मार्ग के वरोध को
बना लो फिसलन को भी एक सुगम मार्ग
और अवरोधों को दूर झाँकने की सीढ़ी
सीख लो गलतियों से सबक
और चल पड़ो
अपनी गंतव्य को पूरे मनोवेग के साथ
देखो वो डूब कर उगता हुआ सूरज
तुम्हे आवाज लगा रहा है
और कह रहा है
की
तुम भी डूब कर फिर चमक सकते हो |

चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ

मन बहुत असहज
सर पर द्वन्द का पहाड़
कुछ अकेलापन
और
कुछ अज्ञात भय
कुछ जीवन के हालत
बदलने के काल का विचलन
सचमुच
जब कोई पूरी नौकरी करके
अवकाश प्राप्त करता होगा
और
अचानक खाली हो जाता होगा
सब सुविधाओ और अधिकारों से
अचानक विमुक्त
और अकेले में याद आता अतीत
अतीत के वो सारे कृत्य
जो उस वक्त के नशे में किये
और अब नए धरातल पर
झकझोरते हुए खुद को अंदर तक
कुछ ऐसा ही तो हो रहा है
मेरे साथ भी
कितना मुश्किल हो रहा है
सामंजस्य बैठाना वक्त से
और अपने अतीत में झाँकना
मीठी यादो का गुदगुदाना
और बुरी का आहत कर देता
और चील देता आत्मा को
सचमुच कसे रहते होगे
वो सारे लोग
कभी जीवन ऊचे पहाड़ की चढ़ाई सा
चढ़ने से पहले ही हांफने का एहसास
और कभी बर्फ की खायी सा
फिसलने से पहले ही
अंध खोह में समां जाने का डर
पर सम्हाल जाऊंगा मैं
और
चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ
अपने कर्तव्य पथ पर
पर आज तो आज है
और कल का इन्तजार है
स्वर्णिम किरणों के साथ
जीवन में प्रवेश करने का |

रविवार, 6 दिसंबर 2015

मेरे घर मे झांक झांक मुझको शर्मिंदा मत करना

मेरे घर में झाँक झाँक मुझको शर्मिंदा मत करना
मैंने खुद को मार दिया मुझको जिन्दा मत करना
देखो फटी है जेब औ डिब्बे खाली है
फ्रिज जैसा कुछ सारे खाने खाली है
भूख लगी जब अपने गम खा लेता हूँ
प्यास लगे तो आँखो में इतना पानी है ।
आँखो में यूँ झांक झांक मुझको शर्मिंदा मत करना
मैंने खुद को मार दिया है मुझको जिन्दा मत करना
हम तो संग चले थे पंख लग गए तुमको ही
मेरे छालो को कब मुड़ कर तुमने देखा ही
तुम दौड़े और तुमने तो आसमान छू लिया
मैं ऐसे गिरा मुझको कोई जमीन मिली ना
मेरे फटे चीथडो में झाँक अब शर्मिंदा मत करना

मैंने खुद को मार दिया