बुधवार, 9 दिसंबर 2015

चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ

मन बहुत असहज
सर पर द्वन्द का पहाड़
कुछ अकेलापन
और
कुछ अज्ञात भय
कुछ जीवन के हालत
बदलने के काल का विचलन
सचमुच
जब कोई पूरी नौकरी करके
अवकाश प्राप्त करता होगा
और
अचानक खाली हो जाता होगा
सब सुविधाओ और अधिकारों से
अचानक विमुक्त
और अकेले में याद आता अतीत
अतीत के वो सारे कृत्य
जो उस वक्त के नशे में किये
और अब नए धरातल पर
झकझोरते हुए खुद को अंदर तक
कुछ ऐसा ही तो हो रहा है
मेरे साथ भी
कितना मुश्किल हो रहा है
सामंजस्य बैठाना वक्त से
और अपने अतीत में झाँकना
मीठी यादो का गुदगुदाना
और बुरी का आहत कर देता
और चील देता आत्मा को
सचमुच कसे रहते होगे
वो सारे लोग
कभी जीवन ऊचे पहाड़ की चढ़ाई सा
चढ़ने से पहले ही हांफने का एहसास
और कभी बर्फ की खायी सा
फिसलने से पहले ही
अंध खोह में समां जाने का डर
पर सम्हाल जाऊंगा मैं
और
चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ
अपने कर्तव्य पथ पर
पर आज तो आज है
और कल का इन्तजार है
स्वर्णिम किरणों के साथ
जीवन में प्रवेश करने का |

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