मंगलवार, 31 मई 2022

एकाकीपन

बहुत उदास है दिन 
राते तो उदास ही है
काफी दिनों से 
पर आगोश में नीद के 
उदासी खो जाती है कही 
पर दिन की उदासियाँ 
और एकाकीपन 
इनसे जूझना नहीं आता 
अपने से भाग जाने की 
कला नहीं सीख पाया मैं 
अभिमन्यु की तरह 
एक कला से महरूम 
रह गया मैं भी 
वो चक्रव्यूह तोड़ने को 
था आतुर 
और मैं तलाश रहा हूँ 
कोई चक्रव्यूह 
जिसमें एकाकीपन और 
उदासी का एहसास न हो ।

मंगलवार, 17 मई 2022

रोज की जिंदगी और ये घर ।

रोज की जिंदगी और ये घर ।
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एक घर है
जिसके बाहर एक गेट 
और 
उससे बाहर मैं तभी निकलता हूँ 
जब शहर मे कही जाना हो 
या डॉक्टर के यहा जाने की मजबुरी 
फिर एक लान है 
जहा अब कभी नही बैठता 
किसी के जाने के बाद 
फिर एक बरामदा 
वहाँ भी आखिरी बार तब बैठा था 
जब बेटियाँ घर पर थी 
और बारिश हुई थी 
और 
मेरा शौक बारिश होने पर 
बरामदे में बैठ कर हलुवा 
और गर्मागर्म पकौड़ियां खाना 
और अदरक की चाय 
वो पूरा हुआ था आखिरी दिन 
हा
ड्रॉईंग रूम जरूर गुलजार रहता है 
वही बीतता है ज्यादा समय 
सामने टी वी , मेज पर लैपटॉप 
और 
वो खिड़की 
जिससे बाहर आते जाते लोग 
एहसास कराते है 
की आसपास इंसान और भी है 
अंदर मेरा प्रिय टी कार्नर 
जहा सुबह क्या 
दोपहर तक बीत जाती है 
नाश्ते चाय ,अखबार ,फोन 
और 
फेसबुक ट्विटर और ब्लॉगर में 
पता नही चलता 
कैसे बिना नहाए शाम हो जाती है 
उस कोने में 
बच्चो का कमरा न जाये तो अच्छा 
अब कौन याद करे और ! 
रसोई में जाना जरूरी है 
और बाथरूम में भी 
थोड़ा लेट लो वाकर पर 
और खुद को बेवकूफ बना लो 
की हमने भी फिटनेस किया 
पांच बदाम भी खा ही लो 
कपड़े गंदे हो गए मशीन है 
बस डालना और निकलना ही 
नाश्ता और खाना 
और 
कुछ अबूझ लिखने की कोशिश 
घृणा हो गयी ज्ञान और किताबो से 
जिंदगी बिगाड़ दिया इन्होंने 
पर बेमन से पढने की कोशिश 
कभी कभी आ जाता है कोई 
भूला भटका , 
उसकी और अपनी चाय 
और 
बिना विषय के समय काटना 
लो हो गयी शाम 
और 
कुछ पेट मे भी चला ही जाए 
बिस्तर कितनी अच्छी चीज है 
नीद नही आ रही लिख ही दे कुछ 
नीद दवाई भी क्या ईजाद किया है 
जीभ के नीचे दबावो 
और सो जाओ बेफिकर 
अब कल की कल देखेंगे 
छोटा पडने वाला घर 
किंतना बड़ा हो गया है
और 
छोटे से दिन हफ्ते जैसे हो गए है 
पर बीत जाता है हर दिन भी 
और घर के कोने में सिमट कर 
भूल जाती है बाहरी दीवारे ,कमरे 
आज भी बीत गया एक दिन 
और रीत गया जिंदगी से भी कुछ 
कही से बजी कोई पायल 
नही रात को एक बजे का भ्रम 
सो जाता हूँ 
ऐसे ही कल के इंतजार में अकेला ।
हा नितांत अकेला 
बस छत ,दीवारे और सन्नाटा 
ओढ़कर ।

लोकतंत्र का नपुंसक गुस्सा

लोकतंत्र का नपुंसक गुस्सा  

हा 
मुझे बचपन से गुस्सा आता था 
किसी इंसान को अपशब्दों के साथ
जाति के  संबोधन से 
मुझे गुस्सा आता था 
शाहगंज से लखनऊ होते आगरा तक 
मैं ट्रेन के दरवाजे पर 
या बाथरूम के पास बैठ कर आता था 
की
भीड़ ज्यादा है तो  
ट्रेन में डिब्बे क्यो नही बढ़ते 
मुझे गुस्सा आता था जब कोई 
दूसरों के मैले को उठा कर 
सर पर लेकर जाता था 
गुस्सा आता था जब दूर से फेंक कर 
किसी को खाना दिया जाता था 
गुस्सा आता था 
जब सायकिल के हैंडिल पर 
दो बाल्टियां 
और 
पीछे कैरियर पर मटका रख 
दो मील दूर पानी लेने जाता था 
शहर में 
गुस्सा आता था 
जब गांव जाने के लिए 
मीलो सर पर बक्सा रख कर 
चलना पड़ता था अंधेरे ने 
गुस्सा आता था 
जब गांव में बिजली भी नही थी 
गुस्सा आता था 
जब पुलिस अंकल किसी को 
बिना कारण बांध कर ले जाते थे 
माँ बहन की गालियां देते हुए 
और 
न जाने कितनी बातो पर गुस्सा आता था 
पर किसी भी चीज को 
बदल सकने की ताकत नही थी 
इस बच्चे में 
उसके बाद भी 
बहुत गुस्सा आता रहा रोज रोज 
और आज भी गुस्सा खत्म नही हुआ 
रामपुर तिराहे पर गुस्सा हुआ था मैं 
हल्ला बोल पर भी गुस्सा दिखाया था 
पर खुद शिकार हो गया 
हर बात पर जिस पर 
जिंदा आदमी को गुस्सा आना चाहिए 
मुझे तो गुस्सा आता रहा 
और 
मैं दुश्मनो में शुमार हो गया 
मुझे निर्भया ,दादरी ,मुजफ्फरनगर 
और 
रंगारंग कार्यक्रम पर भी गुस्सा आया 
पर 
ताली पिटती भीड़ में 
खो गया मेरा गुस्सा 
और में भी खो गया साथ साथ 
पानी पीकर या पानी के बिना 
लोगो के मर जाने पर भी आया गुस्सा 
संसद हो या मुम्बई 
मेरा गुस्सा सड़क पर आया 
लॉटरी हो या शहादत 
सड़क पर फूटा गुस्सा 
वो खरीदने अथवा मारने की धमकी 
नही रोक सकी मेरे गुस्से को 
धक्के खाती जनता और कार्यकर्ता 
भी बने मेरे गुस्से के कारण 
मुझे आज भी गुस्सा आता है 
बार बार बदलते कपड़ो पर 
अन्य देशों में मेर देश की बुराई पर 
पिटती विदेश नीति 
और अर्थव्यवस्था पर 
रोज शहीद होते सैनिको पर 
कश्मीर ,अरुणाचल और नागालैंड पर 
रोज के बलात्कार पर 
रोहतक से छत्तीसगढ़ तक पर 
गुस्सा आया है सहारनपुर पर मथुरा पर 
इंच इंच में होते अपराध पर 
थाने से तहसील होते हुये 
आसमान तक के भ्रष्टाचार पर 
भाषणों के खेप पर 
आसमान छूती महंगाई पर 
न जाने कितनी चीजे है 
गुस्सा होने को 
पर अब 
में देशद्रोही करार कर दिया जाता हूँ ।
और 
मेरा गुस्सा अपनी नपुंसकता 
और 
आवाज के दबने पर उफान मारता है 
पर 
मेरे छोटा हाथ , मेरा छोटा सा कद 
और साधारण आवाज 
सिमट जाती है कागज के पन्नो पर 
फेसबुक ट्विटर ,ब्लॉगर पर 
और दीवारों के बीच 
क्योकि इस देश मे गरीब के लिए 
गरीबी और बेकारी से लड़ने को भी 
धर्म या जाति की भीड़ चाहिए 
जो मेरे पास नही है 
और 
चाहिए धन काफी धन 
जो मंच सज़ा सके 
,रथ बना सके 
और मीडिया को बुला सके ।
जो मेरे पास नही है 
गुस्सा होकर बैठ जाता हूँ लिखने 
कोई कविता या कुछ विचार 
ताकि गुस्सा 
समय के थपेड़े में मर न जाये ।

गुरुवार, 12 मई 2022

उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश 

मेरा प्यारा है सबका प्यारा है सबसे न्यारा है

मेरा प्रदेश उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश  

भारत की ये शान है हा भारत की ये जान है 

ये भारत का मान है ये भारत की पहचान है

ये आन बान और शान है मेरा ये उत्तर प्रदेश

मेरा प्यारा है सबका प्यारा है सबसे न्यारा है  

उत्तर प्रदेश ------------ 

हम भारत के वासी है पर पास हमारे काशी है 

हम भारत के वासी है पर कान्हा के ब्रजवासी है

हम भारत के वासी है वो  राम मेरे बनवासी है 

देवो ने भी चुना जिसे हम है वही प्रदेश उत्तर प्रदेश  



बुधवार, 11 मई 2022

मौत और अकेलापन

मौत और अकेलापन 
________________
मौत कितनी 
खूबसूरत चीज होती है 
हो जाता है 
सब कुछ शांत शांत 
गहरी नींद 
तनावमुक्त ,शांत शांत 
न किसी का लेना 
न किसी का देना 
कोई भाव ही नही 
कोई इच्छा ही नही 
न डर ,न भूख ,न छल 
न काम न क्रोध 
बस शांति ही शांति 
विश्राम ही विश्राम
कोई नही दिख रहा 
और सब देख रहे है 
न रोटी की चिंता 
न बेटे और बेटी की 
न घर की चिंता 
न बिजलो और पानी की 
न बैंक की चिंता 
न टैक्स जमा करने की 
न काम की चिंता 
और न किसी छुट्टी की 
न किसी खुशी की चिंता 
न किसी की नाराजगी की 
निर्विकार ,स्थूल 
हल्का हल्का सब कुछ 
देखो 
कितना सपाट हो गया है चेहरा 
कोई पढ़ नही पा रहा कुछ भी
किसी को 
गजब का तेज लग रहा है 
बहुत कुछ है खूबसूरत 
पर मौत से तो कम 
और मुझे तो 
मौत से भी ज्यादा अक्सर
मजेदार लगता है अकेलापन 
सन्नाटा ही सन्नाटा 
कोई आवाज ही नही 
खुद की सांसो के सिवाय 
कोई भी नही खुद के सिवाय 
पंखे के आवाज तो 
कभी कभी फोन की 
और 
हा दब गया रिमोट 
तो टी वी की भी आवाज 
तोड़ देती है सन्नाटा 
और 
झकझोर देती है अकेलेपन को
पर 
गजब का मुकाबला है 
मौत और अकेलेपन का 
हा
एक फर्क तो है दोनो में 
मौत खूबसूरत होती है 
पर अकेलापन बदसूरत 
मौत शांत होती है 
पर अकेलापन 
अंदर से विस्फोटक ।
मौत के बारे में 
लौट कर किसी ने नही बताया 
उसका अनुभव 
पर 
अकेलेपन को तो 
मैं जानता भी हैं 
और पहचानता भी हूँ 
अच्छी तरह ।
मौत का अंत अकेलापन है 
और 
अकेलेपन का अंत मौत । 
इसलिए 
मौत से डरो मत उसे प्यार करो 
अकेलेपन से हो सके तो भागो 
और 
इसे स्वीकारने से इनकार करो ।

ईश्वर क्या है ?

ईश्वर क्या है ? 
जो अज्ञात था है और रहेगा 
या 
प्रकृति ही ईश्वर है 
क्योंकि 
पत्थर पेड़ और 
विभिन्न पशु पक्षी को माना 
हमने ईश्वर ,
जो हमारा नुक़सान कर सका 
या 
जिससे हम डरे उसे माना ईश्वर 
फिर हम समझदार हो गए 
तो गढ़ने लगे ईश्वर के स्वरूप 
ईश्वर ने सब कुछ बनाया 
पर 
हम बनाने लगे अपने अपने ईश्वर 
ईश्वर एक डर है 
ईश्वर हमारा लालच है 
ईश्वर जीने की इच्छा है 
ईश्वर मौत का डर है 
ईश्वर हथियार बन गया हमारा 
ईश्वर व्यापार बन गया हमारा 
किसी ने नही देखा ईश्वर 
किसी से नही मिला ईश्वर 
पर 
डीह बाबा , सम्मो माई 
जियुतिया माई से लेकर 
संतोषी माता तक 
और 
साई बाबा से लेकर 
तमाम पत्थरों तक फैल गए ईश्वर 
फिर ईश्वर बनने का चस्का 
इंसानो में भी लग गया 
पहले सब डरते थे बुरा करने से 
जब ईश्वर अज्ञात था 
या 
उसके प्रतीक दुर्गम जगहों पर थे 
मनुष्य ने अपने स्वार्थ में गली गली 
चौराहे चौराहे पर बैठा दिया ईश्वर 
तो डर ही ख़त्म हो गया 
ईश्वर के ठेकेदारों ने निकाल दिए रास्ते 
हमेशा पाप और बुरा करो 
पर बीच बीच में कही नहा आओ 
पूजा करते रहो कराते रहो 
और जिसको जो ठीक लगे 
उस धर्म स्थान पर जाते रहो 
पाप धुल जाएगा 
और 
इस व्यवस्था से बढ़ने लगा पाप 
जब कोई एक रावण कंस जडीज था 
तो अवतार ले लेता था ईश्वर 
कहानिया तो यही बताती है 
पर जब बुरो की फ़ौज हो गयी 
तो 
अपने आसमान में छिप गया ईश्वर 
बेचारा किस किस से लड़े ईश्वर 
और 
किस शक्ल में आए दुनिया में 
कि लोग स्वीकार ले उसे ईश्वर 
क्योंकि 
इंसान ने गढ़ दिए है हज़ारो 
और 
ईश्वर से परिचय का दावा करने वाले 
ख़ुद भी बन बैठे है ईश्वर 
जिसे देखा ही नही 
उसे क्या मानना ईश्वर 
ओकसीजन आज ईश्वर है 
और 
उसके लिए पेड़ ईश्वर है 
पानी भी ईश्वर है 
जी हाँ प्रकृति ही ईश्वर है 
इसलिए मंदिर मस्जिद नही 
प्रकृति को बचाओ 
ईश्वर अल्ला जहाँ है वही रहने दो 
अपने बचने के ठिकाने बनाओ । 
ईश्वर कल्पना है 
उस पर कहानी और कविता खूब लिखो 
पर प्रकृति के साथ दिखो 
ईश्वर शक्ति है तो उससे डरो 
और कोई पाप मत करो 
ईश्वर के ईश्वर मत बनो 
बन सकते हो तो भागीरथ बानो 
नदियों को बचाओ 
देवस्थलो के बजाय 
जीवन स्थलो पर पैसा लगाओ 
देवस्थलों के बजाय पेड़ उगाओ
ईश्वर ख़ुश होगा और जीने देगा 
वरना एक दिन पानी भी नही पीने देगा ।