गुरुवार, 17 जून 2021

सो जाओ व्यवस्था की तरह

सो जाओ इस व्यवस्था की तरह:

चलो अब बंद करता हूँ 
खिड़कियाँ कमरे की 
और मन की भी चिंतन की 
और आँखों की भी 
बुझा देता हूँ रौशनी 
ताकि छा जाये अँधेरा 
अंदर भी और बाहर भी 
क्योकि 
अँधेरा हमें सुकून देता है 
और हर चीज से 
आँख बंद कर लेने का बहाना 
सो जाता हूँ मैं भी 
सोने दो लोगो को भूखे पेट 
या फुटपाथ के थपेड़ों 
और बारिश में 
लगने दो आग किसी की आबरू में 
लूटने दो इज्जत या असबाब 
मुझे क्या मैंने तो गर्त कर लिया है 
खुद को अँधेरे में 
और बंद कर ली है खिड़कियाँ 
ताकि कोई चीख सुनाई न पड़े 
और न दिखाई दे बाहर के अँधेरे 
मेरे अंदर के अँधेरे 
अब मेरे साथी बन गए है न 
चलो मुझे गहरी नीद सो जाने दो 
इस व्यवस्था की तरह ।

बच्चा बन जाइए

घर मे परिवार होता है 
तभी वो घर होता है 
वर्ना तो बेजान दीवारे है
जिनमे आप कैदी है 
पर 
घर मे कोई छोटा सा बच्चा हो 
और 
बन जाइये बच्चा उसके साथ 
वाह 
क्या जिंदगी हो जाती है 
फिर मिल जाती जिंदगी 
और 
बचपन पोंछ देता है सारे गम 
सारी तकलीफे , बीमारी और वेचारगी 
बन गया हूँ मैं बच्चा आजकल 
सचमुच खूब जी रहा हूँ मैं 
भरपूर जी रहा हूँ मैं 
चुरा लेना चाहता हूँ खुशिया 
और इसकी यादे 
अगली बार फिर मिलने तक के लिए ।
आह जिंदगी वाह जिंदगी ।
बच्चा बन कर देखिये 
बच्चो से प्यार करिये 
खुद को बूढा मानने से इनकार करिये ।

सो जाओ व्यवस्था की तरह

चलो अब बंद करता हूँ 
खिड़कियाँ 
कमरे की 
और 
मन की भी 
चिंतन की 
और 
आँखों की भी 
बुझा देता हूँ रौशनी 
ताकि 
छा जाये अँधेरा 
अंदर भी और बाहर भी 
क्योकि 
अँधेरा हमें सुकून देता है 
और 
हर चीज से 
आँख बंद कर लेने का बहाना 
सो जाता हूँ मैं भी 
सोने दो लोगो को भूखे पेट 
या फुटपाथ के थपेड़ों 
और 
बारिश में 
लगने दो आग 
किसी की आबरू में 
लूटने दो इज्जत 
या असबाब 
मुझे क्या 
मैंने तो गर्त कर लिया है 
खुद को अँधेरे में 
और 
बंद कर ली है खिड़कियाँ 
ताकि 
कोई चीख सुनाई न पड़े 
और 
न दिखाई दे 
बाहर के अँधेरे 
मेरे अंदर के अँधेरे 
अब 
मेरे साथी बन गए है न 
चलो मुझे गहरी नीद 
सो जाने दो 
इस व्यवस्था की तरह ।

मंगलवार, 15 जून 2021

प्रकृती को ईश्वर माने

इस दौर मे कितने लोग 
थे हो गये 
कितने नंबर 
अब कभी नही मिलेंगे 
पर 
मिटाने की हिम्मत नही होती 
कि 
शायद फोन आ ही जाये 
कितनो से बात किया 
जो आखिरी थी 
कितनो को चाह कर भी
देख नही पाये 
कितनो को चाह कर भी
कन्धा नही दे पाये 
जी 
ये कहानी सिर्फ मेरी नही
घर घर की है 
जो फैली है
कन्याकुमारी से कश्मीर तक 
कैसे नाची मौत
और 
कितना लाचार कर दिया
मानवता को 
ना भगवान काम आये
ना अल्ला ना ईसा 
ना मंदिर काम आया 
ना मस्जिद ना कोई धर्म
फिर भी लड़े जा रहे है
सब उसके लिये 
जिसे किसी ने देखा नही
जो काम आया नही
इन्सान बन जाये तो
इंसानियत बचेगी 
और 
बचेगी शोध से
आविष्कारो से
और 
प्रकृति की रक्षा से 
इसलिए मानना है तो
प्रकृती को ईश्वर माने 
और 
इन्सान लड़ने के लिये
प्रेम से रहने के लिये है 
ये बात जाने ।

गुरुवार, 3 जून 2021

बारूद बोने वाले किसान

खेतो और बगीचो में 
बारूद बोने वाले 
ये नए किसान 
कहा से आ गए 
इन खेतो और बगीचो में 
यहाँ तो पैदा होती थी फसले 
और 
भरती थी पेट इन्सानों का 
और
होते थे फल मौसम के अनुसार 
और 
पेट भरने के साथ साथ
लड़ते थे इंसान में बीमारियो से 
पर ये पेट क्या पूरा शरीर 
उडा देने वाले 
और साँसे छीन लेने वाले 
मौत बाँटने वाले 
खेतिहर किसने पैदा कर दिया 
इसी समाज में और खेत में
रोकना ही होगा 
इन नए किसानो को 
और बचाना ही होगा
इंसानियत को 
चाहे उसके लिए 
बारूद से इन 
नए बारूद बोने वाले 
किसानो को ही 
क्यों न उड़ा दिया जाये 
इंसानियत बचाने को ।