गुरुवार, 17 जून 2021

सो जाओ व्यवस्था की तरह

चलो अब बंद करता हूँ 
खिड़कियाँ 
कमरे की 
और 
मन की भी 
चिंतन की 
और 
आँखों की भी 
बुझा देता हूँ रौशनी 
ताकि 
छा जाये अँधेरा 
अंदर भी और बाहर भी 
क्योकि 
अँधेरा हमें सुकून देता है 
और 
हर चीज से 
आँख बंद कर लेने का बहाना 
सो जाता हूँ मैं भी 
सोने दो लोगो को भूखे पेट 
या फुटपाथ के थपेड़ों 
और 
बारिश में 
लगने दो आग 
किसी की आबरू में 
लूटने दो इज्जत 
या असबाब 
मुझे क्या 
मैंने तो गर्त कर लिया है 
खुद को अँधेरे में 
और 
बंद कर ली है खिड़कियाँ 
ताकि 
कोई चीख सुनाई न पड़े 
और 
न दिखाई दे 
बाहर के अँधेरे 
मेरे अंदर के अँधेरे 
अब 
मेरे साथी बन गए है न 
चलो मुझे गहरी नीद 
सो जाने दो 
इस व्यवस्था की तरह ।

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