बुधवार, 24 अगस्त 2016

मैं मर भी जाऊं तो

मैं मर भी जाऊं तो क्या होगा
शायद अगर हुआ तो
चार कंधे
कुछ लकड़ियाँ
और आग के शोले
कुछ क्षण की
कुच्छ सिसकियाँ
कुछ कहानिया
कुछ शिकायतें
कुछ झूठी अच्छाइयां
बहुत सी बुराइयाँ
क्या किया जीवन में
बेकार था कुछ न किया
जिम्मेदारियां भी छोड़ गया
नालायक था कुछ नहीं किया
बार बार बोर होकर भी
दोहराई जाती वही कहानियां
उठावनी हो गयी
घर वालो का बोझ कुछ कम हुआ
लो तेरही भी आ गयी
ये भी खर्च कवाएगी
कोई रिश्तेदार रुक न जाये
चलो सब चले गए
अब देखो कहां क्या क्या है
बाट लो किसका क्या है
और
चल पड़ेगी जिंदगी
अपने अपने रस्ते पर
एक कोने में टंगी तस्वीर
साल में एक बार शायद
बदलेगी माला
और हाथ जोड़ कर भागते हुए लोग
आज तो देर हो गयी इस चक्कर में
पता नहीं क्यों बने है ये रिवाज
इसलिए
मेरे लिए मेरी वसीयत है
की
कोई नहीं रोयेगा
बिजली में जला देना मुझे
किसी नदी में नहीं बहाना मुझे
मैं नहीं मानता कोई पूजा इसलिए
न कोई पूजा और न उठावनी तेरही
अगले ही पल से सब खुश रहो
और अपनी जिंदगी जियो
मेरे लिए न कभी कोई पारेशान हुआ
न किसी को होना है
वर्ना मैं परेशान हो जाऊंगा
कुछ नहीं है मेरे पास
की कोई लडे की किसका क्या
बस मेरी यादे कभी क्रोध लायेंगी
की नालायक बाप ने कुछ नहीं किया
यही मेरी वसीयत है ।
मैं चला जाऊंगा तो भी
कुछ नहीं होगा
सब जैसे था वैसे ही चलेगा ।
बस मेरा आशीर्वाद ही मेरी वसीयत है
जो किसी काम नही आएगी
इसलिए मैं रहूँ या न रहूँ
कोई फर्क नहीं पड़ता
दुनिया ऐसे ही चलती है ।
और मैं भी चुपचाप ऐसे ही चला जाऊंगा
शायद लावारिश होकर
की किसी को कोई कष्ट ही न हो ।

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

हां जीवन इसको कहते है |

जिंदगी
कब होगी पहचान हमारी
इतने सालो से है दूरी
क्या मजबूरी
जिन्दा तो है
पर क्या सचमुच
क्या जीवन इसको कहते है
पांव में छाले भाव में थिरकन
गले में हिचकी आँख में आंसू
नीद नहीं और पेट में हलचल
ना पीछे कुछ ,ना आगे कुछ
बस अन्धकार है
क्या जीवन इसको कहते है
जीवन कब हमको मिलना है
या फिर ऐसे ही विदा करोगे
कुछ तो सोचो
हम दोनों क्या जुदा जुदा है
कुछ तो बोलो
और भविष्य के ही पट खोलो
या फिर कह दो
हां जीवन इसको ही कहते है |
जींना है तो हंस कर जी लो
या फिर दर्द गरल को पी लो
तेरे हिस्से में बस ये है
मैं भी तो मजबूर बहुत हूँ
तेरी खुशियों से दूर बहुत हूँ
चल अब सो जा
अच्छे सपनो में आज तो खो जा
कल फिर मुझसे ही लड़ना है
हां जीवन इसको कहते है |