बुधवार, 18 दिसंबर 2019

मुनादी हो गयी है



मुनादी हो गयी है 
कि 
घर से बिल्कुल न निकले 
फिर भी निकले 
तो जिम्मेदारी आप की है 
क्योकी 
लाठी ,बदूके लिए सत्ता खडी है 
जेल के फाटक अब  खुलेंगे 
देश की जनता की खातिर 
किया होगा गांधी ने                   सत्याग्रह या प्रदर्शन 
पर गांधी नही 
गोडसे ही खड़ा है 
चुकी अब ये सत्ता मे है 
इसलिए ये जनता से बडा है 
लोकतंत्र और आज़ादी 
या संविधान ये क्या जाने 
उसे ये क्यो माने 
जब दी जा रही थी               
कुर्बानियां इनकी खातिर 
तो 
ये गांधी के खिलाफ खड़े थे 
अब भी जेहन वही है 
अब भी इनका मन वही है 
भूल मत जाना जलियावाला
और भी सब 
सत्ता के पास अब भी                         ताकत वही है 
वर्दी और बन्दूके वही है 
मुनादी हो गयी है                  
मुह अब हर्गिज न खोले
और          
कलम भी तोड दे सब 
वरना !
मुनादी हो गयी है ।

मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ

चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ

मन बहुत असहज
सर पर द्वन्द का पहाड़
कुछ अकेलापन
और
कुछ अज्ञात भय
कुछ जीवन के हालत
बदलने के काल का विचलन
सचमुच
जब कोई पूरी नौकरी करके
अवकाश प्राप्त करता होगा
और
अचानक खाली हो जाता होगा
सब सुविधाओ और अधिकारों से
अचानक विमुक्त
और अकेले में याद आता अतीत
अतीत के वो सारे कृत्य
जो उस वक्त के नशे में किये
और अब नए धरातल पर
झकझोरते हुए खुद को अंदर तक
कुछ ऐसा ही तो हो रहा है
मेरे साथ भी
कितना मुश्किल हो रहा है
सामंजस्य बैठाना वक्त से
और अपने अतीत में झाँकना
मीठी यादो का गुदगुदाना
और बुरी का आहत कर देना 
और चीर देना आत्मा को
सचमुच कैसे रहते होगे
वो सारे लोग
कभी जीवन ऊचे पहाड़ की चढ़ाई सा
चढ़ने से पहले ही हांफने का एहसास
और कभी बर्फ की खायी सा
फिसलने से पहले ही
अंधी खोह में समां जाने का डर
पर सम्हाल जाऊंगा मैं
और
चल पडूंगा फिर पूरी ऊर्जा के साथ
अपने कर्तव्य पथ पर
पर आज तो आज है
और कल का इन्तजार है
स्वर्णिम किरणों के साथ
जीवन में प्रवेश करने का |

रविवार, 8 दिसंबर 2019

आग

#आग#

आग!
जब 
मनुष्य को मिली 
तों
बदल गया 
उसका जीवन.                                                                                
बदली 
मानव सभ्यता ,
होती गई तरक्की 
उतरोत्तर
आग जली 
मिला लोहा ,
अविष्कार दर 
अविष्कार
जीवन का 
सब कुछ पानी 
और
आग के 
इर्द गिर्द ही तों है
वही आग आज 
दावानल बनी 
और
मचा दिया कोहराम
कुछ देर पहले 
जो बहा रहे थे 
पसीना
कि 
घर के चूल्हों में 
आग जल सके  
उसकी तैयारी थी 
बेटी के विवाह की,
बच्चा दवाई का 
इंतजार कर रहा था
इंतजार था 
किताबो का 
और
बूढी अम्मा को  
दर्शन को जाने का
इन्ही सपनो
संघर्षो के लिए
वे 
बहा रहे थे पसीना
कि !
नागिन तरह लपकी आग ,
जहर कि तरह 
उगल दिया 
ढेर सा धुआं
पसीना बहा 
और सूख गया 
लहू ने 
संघर्ष किया 
और जल गया
हाथ पैर 
आग के लिए 
संघर्ष करना जानते थे
लेकिन 
आग से 
बिलकुल नहीं
लेकिन 
अब स्कूल नहीं 
जा पायेगा बचपन
अब कब मिलेगी रोटी 
ऐसे क्यों जली आग 
कि
कई घरो में 
नहीं जलेगी 
कई दिन तक
समय से 
पहले सज गई चिता ,
ये थी
किस बात कि सजा ,
पसीना बहाने की?
अपना बहा रहे थे ,
दूसरे का
अपनी तिजोरी में तों 
नहीं भर रहे थे 
यदि 
लगनी ही थी आग 
तों लगती 
काले धन वाले कि                
तिजोरी में
जिसमे बंद है 
किसी के ख्वाब               
किसी कि रोटी 
किसी की बेटी  
या लग जाती                                  इन्सान के 
अनत संघर्ष में ,
नफ़रत ,अज्ञान ,
भूख ,अशिक्षा,
आतंक,भ्रस्टाचार ,
व्यभिचार ,बेकारी                  लाचारी ,बीमारी 
और बदकारी में
पर किसे जला दिया ?
जो खुद संघर्षरत थे 
और
बहुतो के संघर्ष को                          व्यापकता दे दी .
आग भी आज कि                          व्यवस्था हो गई है
जो गरीब को                        
मारती ,दुत्कारती                                         
और देती अपमान
बेईमानो को धन
गौरव, कुर्सी,सत्ता
मान और सम्मान
इस आग से तों 
बिना आग भले ,
विकास चले 
ना चले 
पर 
ऐसे कोई ना जले।

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

रिमझिम फुहारों के साथ

काश 
रिमझिम फुहारों के साथ 
हम भी बह जाते
या 
लगती एक मेज बाहर 
और
सज जाती उस पर 
पकौड़ियाँ तरह तरह की 
सूजी का हलवा 
और 
अदरक वाली चाय 
फुहारों की बूंदे 
आती चेहरे पर 
या नंगे पैरों पर 
और 
सिहरन दौड़ जाती 
सिमट जाता अस्तित्व 
पिघल जाने को 
काश !