#आग#
आग!
जब
मनुष्य को मिली
तों
बदल गया
उसका जीवन.
बदली
मानव सभ्यता ,
होती गई तरक्की
उतरोत्तर
आग जली
मिला लोहा ,
अविष्कार दर
अविष्कार
जीवन का
सब कुछ पानी
और
आग के
इर्द गिर्द ही तों है
वही आग आज
दावानल बनी
और
मचा दिया कोहराम
कुछ देर पहले
जो बहा रहे थे
पसीना
कि
घर के चूल्हों में
आग जल सके
उसकी तैयारी थी
बेटी के विवाह की,
बच्चा दवाई का
इंतजार कर रहा था
इंतजार था
किताबो का
और
बूढी अम्मा को
दर्शन को जाने का
इन्ही सपनो
संघर्षो के लिए
वे
बहा रहे थे पसीना
कि !
नागिन तरह लपकी आग ,
जहर कि तरह
उगल दिया
ढेर सा धुआं
पसीना बहा
और सूख गया
लहू ने
संघर्ष किया
और जल गया
हाथ पैर
आग के लिए
संघर्ष करना जानते थे
लेकिन
आग से
बिलकुल नहीं
लेकिन
अब स्कूल नहीं
जा पायेगा बचपन
अब कब मिलेगी रोटी
ऐसे क्यों जली आग
कि
कई घरो में
नहीं जलेगी
कई दिन तक
समय से
पहले सज गई चिता ,
ये थी
किस बात कि सजा ,
पसीना बहाने की?
अपना बहा रहे थे ,
दूसरे का
अपनी तिजोरी में तों
नहीं भर रहे थे
यदि
लगनी ही थी आग
तों लगती
काले धन वाले कि
तिजोरी में
जिसमे बंद है
किसी के ख्वाब
किसी कि रोटी
किसी की बेटी
या लग जाती इन्सान के
अनत संघर्ष में ,
नफ़रत ,अज्ञान ,
भूख ,अशिक्षा,
आतंक,भ्रस्टाचार ,
व्यभिचार ,बेकारी लाचारी ,बीमारी
और बदकारी में
पर किसे जला दिया ?
जो खुद संघर्षरत थे
और
बहुतो के संघर्ष को व्यापकता दे दी .
आग भी आज कि व्यवस्था हो गई है
जो गरीब को
मारती ,दुत्कारती
और देती अपमान
बेईमानो को धन
गौरव, कुर्सी,सत्ता
मान और सम्मान
इस आग से तों
बिना आग भले ,
विकास चले
ना चले
पर
ऐसे कोई ना जले।
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